नवरात्रि का तीसरा दिन- मां चंद्रघंटा देवी

Dr. Gopaldas Nayak
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Dr. Gopaldas Nayak
I am currently working in Government College Khandwa, I have been doing teaching work for the last several years and also writing work in various genres
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डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा

नवरात्रि का तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा की साधना को समर्पित होता है। उनका स्वरूप शांति, साहस और करुणा का प्रतीक है। माँ चंद्रघंटा का बीज मंत्र है—

“ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥”

(अर्थात— हे चंद्रघंटा देवी! आपको प्रणाम है, आप शांति, सौम्यता और वीरता की अधिष्ठात्री हैं, आप साधक के भीतर से भय और अशांति को दूर कर दिव्य साहस और आत्मविश्वास का संचार करती हैं।)

माँ चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्धचंद्र की भांति घंटा धारण किया गया है, जो सदैव हमें सतर्क और सजग रहने का संदेश देता है। यह घंटा केवल युद्ध का उद्घोष नहीं, बल्कि अन्याय और असत्य के विरुद्ध सजगता का प्रतीक है। उनका स्वरूप साधक को यह प्रेरणा देता है कि जीवन में संतुलन आवश्यक है—भीतर सौम्यता और बाहर अन्याय के विरुद्ध वीरता।

वर्तमान सामाजिक परिवेश में यह शिक्षा अत्यंत प्रासंगिक है। आज का समाज तनाव, भय और अव्यवस्था से गुजर रहा है। लोग आंतरिक शांति खोते जा रहे हैं और छोटी-सी चुनौती से घबराने लगते हैं। ऐसे समय में माँ चंद्रघंटा का संदेश है कि मन में शांति और विश्वास रखते हुए हमें अन्याय और असत्य के विरुद्ध डटे रहना चाहिए।

सामाजिक रिश्तों में भी यह संदेश लागू होता है। आज आपसी अविश्वास और असहिष्णुता बढ़ रही है। यदि हम माँ चंद्रघंटा के आदर्श को अपनाएँ तो पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सौम्यता और संतुलन आ सकता है।

इस प्रकार माँ चंद्रघंटा का बीज मंत्र हमें यह सिखाता है कि भयमुक्त होकर संयम और साहस के साथ जीवन जीना ही सच्ची साधना है। वर्तमान समय में यही मार्ग व्यक्ति और समाज को सामंजस्य, शांति और प्रगति की ओर ले जा सकता है।

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