घर-घर जाकर हुआ था सर्वे

कोरोना की पहली लहर में जब संक्रमण की स्थिति बिगड़ी तो सर्वे टीम को उनके क्षेत्र के अनुसार जिम्मेदारी सौंपी गई थी। टीम घर-घर जाकर पता करती थी कि किसी सदस्य को सर्दी, खांसी, जुखाम व बुखार जैसे अन्य कोई लक्षण तो नहीं है। यदि इस प्रकार के लक्षण होते थे, तो टीम उसे एप पर अपलोड कर देती थी। अपलोड करने के बाद अस्पताल से 3 बजे तक टीम कोरोना संदिग्ध मरीज के घर पहुंचती और उसे अस्पताल व क्वारंटाइन सेंटर में रखती थी। सर्वे टीम के निरीक्षण के बाद जिन क्षेत्रों में कोरोना के अधिक मरीज होते थे, उसे कंटेनमेंट एरिया में बदल दिया गया था। इससे कि बाहरी व्यक्ति संक्रमित न हो और क्षेत्र के अलावा बाहर संक्रमण न फैले।

रजिस्टर पर हो रही इंट्री

एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि इस बार प्रशासनिक स्तर पर सर्वे करने का कोई निर्देश नहीं है। सामान्य सर्वे किया जा रहा है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता खुद घर-घर जाकर सर्वे कर रही हैं। रजिस्टर पर इंट्री की जाती है, लेकिन रजिस्टर देखने वाला कोई नहीं है। केवल इंट्री करने के बाद वह दफ्तर में रखा रहता है। यदि किसी मरीज को भेजते हैं तब भी उसे इलाज नहीं मिल पा रहा है। यहां तक कि एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कई दिनों से बीमार है, उसका सेंपल लेने के लिए तीन दिन बाद टीम पहुंची, लेकिन इलाज की अब तक कोई व्यवस्था नहीं की है।

बूथ भी नहीं बनाए

कोरोना संक्रमण को कंट्रोल करने के लिए संक्रमित क्षेत्रों में बूथ बनाए गए थे। इन पर डाक्टर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और पुलिस की लगातार ड्यूटी रहती थी। इससे कि किसी को भी समस्या होने पर तुरंत एंबुलेंस से उसे अस्पताल भिजवाया जा सके। कई लोगों को जांच कराने के लिए भी भटकना नहीं पड़ता था। इस बार एेसी कोई व्यवस्था नहीं हुई।