अक्षय तृतीया का महत्व क्या है, जानिए क्या है इतिहास, क्यों मानते बेहद शुभ?

sadbhawnapaati
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प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया होती है। शास्त्रों में अक्षय तृतीया के दिन को बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी तथा नारायण की पूजा की मान्यता है। साथ ही ये प्रथा है कि कोई भी शुभ कार्य इस दिन बिना सोचे समझे किया जा सकता है, क्योंकि इस दिन किए हुए कामों का कभी क्षय नहीं होता। इस कारण अक्षय तृतीया के दिन लोग दान पुण्य के अतिरिक्त, सोने व चांदी के आभूषणों की खरीददारी तथा जमीन आदि कर खरीददारी करते हैं। इस वर्ष अक्षय तृतीया 14 मई 2021 को मनाई जाएगी। जानिए कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में जो युगों पहले अक्षय तृतीया के दिन घटी, जिसके कारण ये दिन और भी अधिक शुभ हो गया।

मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं:-  कहा जाता है कि वो अक्षय तृतीया का ही दिन था, जब भागीरथ के तप से गंगा माता स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान की खास अहमियत है ।

सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ:- प्रथा है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी तथा द्वापरयुग का समापन इसी दिन हुआ था। इस लिहाज से भी ये दिन बहुत शुभ माना जाता है ।

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इसी दिन होती है परशुराम जयंती:-प्रभु श्री विष्णु के दस अवतारों में से छठें अवतार माने जाने वाले प्रभु परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। उन्होंने महर्षि जमदग्नि तथा माता रेणुका के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। परशुराम सात चिरंजीवी लोगों में से एक हैं। कहा जाता है कि वे आज भी धरती पर विद्यमान हैं।

वेद व्यास ने महाभारत लिखने का किया आरम्भ:-प्रथा है कि अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर ही महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत लिखने का आरम्भ किया था, जिसमें गीता भी समाहित है। इस दिन गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है।

सुदामा ने श्रीकृष्ण से की थी भेंट:-अक्षय तृतीया को लेकर ये भी प्रथा है कि प्रभु श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा ने इसी दिन द्वारका पहुंचकर प्रभु से भेंट की थी तथा उन्हें कुछ चावल अर्पित किए थे। जिसे प्रेम पूर्वक ग्रहण करने के पश्चात् श्रीकृष्ण ने उनकी गरीबी को दूर कर दिया था तथा उनकी झोपड़ी को महल व गांव को सुदामा नगरी बना दिया था। उस दिन से अक्षय तृतीया के दिन दान की अहमियत बढ़ गई।

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