क्यों सिमट रही है कांग्रेस! 

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(लेखक– डॉ श्रीगोपाल नारसन)  

सन 1984 में जिस कांग्रेस के लोकसभा में 404 सांसद थे ,आज वह 52 सांसदों पर क्यों सिमट गई है।इसी तरह एक एक कर राज्यो की सत्ता से भी कांग्रेस बाहर होती जा रही है।कई राज्यो में तो वहां की जनता कांग्रेस को लाना चाहती थी लेकिन कांग्रेस के नेता अपनी नासमझी या फिर आपस की लड़ाई से ऐसे निर्णय ले बैठते है जिससे लगता है अबोध कालिदास फिर से आ गया हो।
जो जिस डाल पर बैठा है उसे ही काटने में लगा है।कम से कम हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में तो यही दिखाई पड़ा कि कांग्रेस लोगो के दिलो में कमजोर नही है बल्कि कांग्रेस के कर्णधारों की अपनी कमजोरी है ,जो वे विरासत में मिली कांग्रेस की स्वर्णिम धरोहर को संभाल नही पा रहे है।
कांग्रेस की विफलता ही आम आदमी पार्टी के लिए वैकल्पिक अवसर का आधार बना है।जिसने पहले दिल्ली में और अब पंजाब में आम आदमी पार्टी को बंपर जीत दिलाई।कांग्रेस के कर्णधारों को महलों से निकलकर आमजन के लिए सहज और सुलभ बनना होगा।
घर के दरवाजे खुले रखने होंगे,बिलकुल पंडित नेहरू व इंदिरा गांधी की तरह।साथ ही चापलूस नेताओ से मुक्ति और जमीनी नेताओ से नजदीकी बढ़ानी होगी। तभी कांग्रेस मरने से बच सकती है। जिस कांग्रेस का गठन सन 1885 में एलन ऑक्टेवियन ह्यूम द्वारा किया गया।
जिन्होंने सन 1857 की गदर के समय वह इटावा के कलेक्टर रहते हुए खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और सन 1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया।  शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिल कर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया।
लेकिन सन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हए।इसी बीच महात्मा गांधी भारत लौटे और उन्होंने खिलाफत आंदोलन शुरु किया। शुरू में बापू ही कांग्रेस के मुख्य विचारक रहे। इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए।
चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराज पार्टी बना ली।साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्व युद्ध के बाद पार्टी में महात्मा गाँधी की भूमिका बढ़ी, हालाँकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने, लेकिन कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी।स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी।
महात्मा गांधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरू के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला सन 1967 तक लगातार चलता रहा।
पहले प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी।नेहरू की अगुवाई में सन 1952, सन 1957 और सन 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई।
सन 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी सन 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आखिरकार पंडित नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे।
गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी।एलेन ओक्टेवियन ह्यूम सन 1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे।
ह्यूम ने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए।
दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता कांग्रेस के साथ आ गए थे।आजादी के बाद सन 1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। सन 1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था।लेकिन सन 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता की कुर्सी छीन ली थी। हालांकि तीन साल के अंदर ही सन 1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई।
सन 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा।दादा भाई नौरोजी 1886 और 1893 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1887 में बदरुद्दीन तैयबजी तो सन1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के  अध्यक्ष बने थे।सन1889 से सन 1899 के बीच विलियम वेडरबर्न, फिरोज़शाह मेहता, आनंदचार्लू, अल्फ्रेड वेब, राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आगा खान के अनुयायी रहमतुल्लाह सयानी, स्वराज का विचार देने वाले वकील सी शंकरन नायर, बैरिस्टर आनंदमोहन बोस और सिविल अधिकारी रोमेशचंद्र दत्त कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
इसके बाद हिंदू समाज सुधारक सर एनजी चंदावरकर, कांग्रेस के संस्थापकों में शुमार दिनशॉ एडुलजी वाचा, बैरिस्टर लालमोहन घोष, सिविल अधिकारी एचजेएस कॉटन, गरम दल व नरम दल में पार्टी के टूटने के वक्त गोपाल कृष्ण गोखले, वकील रासबिहारी घोष, शिक्षाविद मदनमोहन मालवीय, बीएन दार, सुधारक राव बहादुर रघुनाथ नरसिम्हा मुधोलकर, नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर, भूपेंद्र नाथ बोस, ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहले भारतीय सदस्य बने एसपी सिन्हा, एसी मजूमदार, पहली महिला कांग्रेस अध्यक्ष एनी बेसेंट, सैयद हसन इमाम और नेहरू परिवार के  मोतीलाल नेहरू सन 1900 से सन 1919 के बीच कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
सन 1915 में अफ्रीका से लौटकर भारत आए मोहनदास करमचंद गांधी का प्रभाव  कांग्रेस की विचारधारा व आंदोलन तय करने में सन1920 के आसपास से साफ दिखना शुरू हो गया था।जो गांधी के जीवन के  बाद तक भी बना हुआ है।
सन 1920 से भारत की आज़ादी अर्थात सन 1947 के बीच के युग  में  कांग्रेस अध्यक्ष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे, जिन्होंने सन 1920 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। स्वराज संविधान बनाने में अग्रणी रहे सी विजयराघवचारियार, जामिया मिल्लिया के संस्थापक हकीम अजमल खान, देशबंधु चितरंजन दास, मोहम्मद अली जौहर, शिक्षाविद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1924 में बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी और यहां से कांग्रेस के ऐतिहासिक स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों की नींव पड़ी थी।
सरोजिनी नायडू, मद्रास के एडवोकेट जनरल रहे एस श्रीनिवास अयंगर, मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। गांधी के अनुयायी जवाहरलाल नेहरू  सन 1929 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे सरदार वल्लभभाई पटेल, नेली सेनगुप्ता, राजेंद्र प्रसाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गांधी के अनुयायी जेबी कृपलानी भारत को आजादी मिलने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन1948 और सन 1949 में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और यही वह साल था जब गांधी की हत्या हो चुकी थी. महात्मा गांधी का प्रभाव आज तक भी भारतीय राजनीति पर है, लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस का नेहरू युग शुरू हुआ।
पहले प्रधानमंत्री बन चुके पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में जिस साल संविधान लागू हुआ ।सन 1950 में कांग्रेस के अध्यक्ष  साहित्यकार पुरुषोत्तम दास टंडन थे।सन1951 से सन 1954 तक खुद नेहरू अध्यक्ष रहे। पंडित नेहरू युग में 1955 से सन 1959 तक यूएन धेबार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
सन 1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष  इंदिरा गांधी बनी थी। सन 1960 से सन 1963 तक नीलम संजीव रेड्डी, नेहरू के निधन के सन 1964 से सन 1967 तक कामराज कांग्रेस अध्यक्ष रहे। हालांकि नेहरू का निधन 1964 में हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का अगला इंदिरा गांधी युग लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद शुरू होता है।सन 1966 में पहली बार देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। कामराज के साथ उनका सत्ता संघर्ष काफी चर्चित रहा।
इसके बाद ही इंदिरा की लीडरशिप और उनके ‘आयरन लेडी’ होने के ख्याति मिलने लगी। इंदिरा गांधी के प्रभाव के समय में सन 1968से सन 1969 तक निजालिंगप्पा, 1970से सन 1971 तक बाबू जगजीवन राम ,1972से सन 1874 तक शंकर दयाल शर्मा और सन 1975 से सन 1977 तक देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
सन1977 से सन1978 के बीच केबी रेड्डी ने कांग्रेस को संभाला लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस टूटी तो सन 1978 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अध्यक्ष वे स्वयं  बनीं।कुछ समय को छोड़कर 1984 में अपनी हत्या के पहले तक इंदिरा ही अध्यक्ष रहीं।
कांग्रेस ने करीब 15 साल का इंदिरा गांधी युग देखा और इसके बाद राजीव गांधी युग शुरू हुआ, कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और सन 1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए थे। जब प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को लेकर संकट खड़ा हो गया था,क्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि नहीं दिखाई थी।इसी कारण सन 1992 से सन 1996 तक पीवी नरसिम्हा राव ने कांग्रेस का नेतृत्व किया ।
सन 1996 से सन 19 98 तक गांधी परिवार के वफादार सीताराम केसरी अध्यक्ष रहे।सोनिया गांधी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हुआ और सन 1998 से सन 2017 तक करीब 20 वर्षो तक सोनिया ही कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं।राहुल गांधी को सन 2017 में पार्टी की कमान सौंपी गई, लेकिन सन 2019 के आम चुनावों में बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश की और कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के नेता को होना चाहिए।लेकिन इस पर सहमति नहीं हुई। तब से कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ही ने कांग्रेस का नेतृत्व कर रही है।
सन 1991,सन 2004, सन 2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की।आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई। लगभग 50 नई पार्टियां इस संगठन से निकल कर बनीं। इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कईयों का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता पार्टी में विलय हो गया। कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन सन 1967 में हुआ।
जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम कांग्रेस (आर) रखा। सन 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया।इसी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अस्तित्व को बचाये रखना इस समय सबसे बड़ी चुनौती है।पहले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की टीम हर मोहल्ले, वार्ड और बूथ स्तर पर हुआ करती थी।
कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष की भी बड़ी अहमियत होती थी।इंदिरा गांधी के समय तक कांग्रेस के सत्ता में रहते संगठन को तवज्जो मिलती थी।कांग्रेस का ब्लाक अध्यक्ष बीस सूत्रीय कार्यक्रम का भी ब्लाक स्तर पर सरकार की तरफ से उपाध्यक्ष, व ब्लाक स्तरीय पदाधिकारी उक्त कार्यक्रम समिति के सदस्य होते थे।इसी प्रकार जिले में कांग्रेस का अध्यक्ष बीस सूत्रीय कार्यक्रम समिति का जिला उपाध्यक्ष बनाये जाते थे।ताकि शासन प्रशासन के कामों को कराने की शक्ति पार्टी अध्यक्षों के पास हो।
लेकिन जब से यह परंपरा बंद हुई है और पार्टी के हकदारों के बजाय अवसरवादी पदों पर काबिज होने शुरू हुए है तभी से संगठन बिखरता चला गया और कांग्रेस कमजोर होती चली गई। कांग्रेस का जहाज पूरी तरह से डूब जाए उससे पहले ही कांग्रेस के कर्णधारों को जाग जाना चाहिए और कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश में जुट जाना चाहिए।जिसकी देश को जरूरत है।

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