केंद्र सरकार ऐसे बदलावों पर विचार कर रही है जिससे सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी को कम करना आसान हो जाए। अर्थव्यवस्था में क्रेडिट फ्लो को बनाये रखने की योजना का यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
नाम न उजागर करने की शर्त पर सूत्रों ने बताया की यदि प्रस्ताव पास हो जाता है तो सरकार सार्वजानिक क्षेत्र की बैंको में धीरे-धीरे अपनी हिस्सेदारी को 51% से 26% तक कर सकेगी, साथ ही सरकार मैनेजमेंट की प्रमुख नियुक्तियों पर अपनी पकड़ बनाए रखेगी।
नियम बनेगे आसान
प्रस्ताव के मुताबिक कुछ चिन्हित लेंडर्स के निजीकरण के लिए नियमों को आसान बनाया जा सकता है और कुछ में विदेशी निवेशकों को बड़ी हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति दी जा जा सकती है। प्रस्तावित संशोधनों के साथ, मोदी सरकार, सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों की सरकारी पूंजी पर निर्भरता को कम करना चाहती है, साथ ही योजना है की उनकी अर्ध-संप्रभु स्थिति को भी बरक़रार रखा जाए जो जमाकर्ताओं के पक्ष में रहती है।
लोगों का कहना है कि बातचीत अभी शुरुआती दौर में है और भविष्य में इसमें बदलाव संभव है। उनका कहना है कि संसद के समक्ष रखे जाने से पहले प्रस्तावों को कैबिनेट की मंजूरी चाहिए होगी। हालाँकि यह कदम 1969 में तत्कालीन सरकार द्वारा लागू की गई कुछ नीतियों को कमजोर जरूर करेंगे। इस पर टिप्पणी के लिए वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता से संपर्क नहीं हो सका।
निजीकरण के विरोध में बैंकों में हड़ताल
भारत में बैंकों के निजीकरण के मामले भयावह हो सकते हैं, जहां यूनियनों का अभी भी दबदबा है, हालाँकि वे पहले की तरह शक्तिशाली नहीं हैं। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी बैंकों के हजारों कर्मचारियों ने बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में शुक्रवार को दूसरे दिन भी हड़ताल जारी रखी।