विचार मंथन – हादसों पर रोक कब 

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लेखक-सिद्धार्थ शंकर
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बड़ा सड़क हादसा हुआ। हादसे में 16 लोगों की मौत हो गई है। तीन लोग घायल हुए हैं। घायलों को क्षेत्रीय अस्पताल कुल्लू  में भर्ती कराया गया। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में सड़क हादसे में एक दर्जन से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई। पिछले एक माह में यह चौथा बड़ा हादसा है। उत्तराखंड में मप्र के यात्रियों से भरी बस का खाई में गिरना रहा हो या इंदौर के पास बस हादसा, फिर उत्तराखंड में ही एक दुर्घटना और अब हिमाचल प्रदेश का वाक्या बता रहा है कि हादसों को लेकर कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं बन पाई है। ना ही चालक सजग हो रहे हैं और ना ही प्रशासनिक अमला। अमूमन हर रोज देश में सड़कों पर होने वाले हादसों में जो लोग मारे जाते हैं, उनमें से ज्यादातर की जान बचाई जा सकती थी, अगर सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखा जाता। लेकिन हकीकत यह है कि न तो सरकारी महकमे सड़कों के सफर को सुरक्षित बनाने के इंतजामों और नियमों को लेकर गंभीर रुख अपनाते हैं और न ही आम लोगों के स्तर पर अपने सुरक्षित सफर लेकर पर्याप्त सजगता दिखाई देती है। नतीजतन, बहुत मामूली वजहों से सड़कों पर होने वाले हादसों में लोगों की जान तक चली जाती है। जबकि अगर तय नियमों को लेकर लोगों की सजगता अव्वल तो हादसे की स्थिति से बचा सकती है और अगर किसी स्थिति में चूक हो भी गई तो कम से कम व्यक्ति की जान बच सकती है। पर अफसोस की बात यह है कि आम लोगों के स्तर पर बरती गई लापरवाही जहां हादसों का एक बड़ा कारण बनती है, वहीं संबंधित महकमे भी सड़क यातायात के नियम-कायदों को लेकर कई बार ढीला रवैया अख्तियार करते हैं। नियमों के पालन को लेकर इस तरह की उदासीनता अक्सर हादसों में तब्दील हो जाती है और नाहक ही लोगों की जान चली जाती है। सड़कों पर वाहनों की गति की जांच और लगाम लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने से भारत में बीस हजार से ज्यादा लोगों की जान बच सकती है। वहीं केवल हेलमेट पहनने को लोग अपने लिए अनिवार्य मानने लगें और यातायात महकमे की ओर से इस नियम का पालन सुनिश्चित किया जाए तो इससे पांच हजार छह सौ तिरासी जिंदगी बचाई जा सकती है। इसी तरह, वाहनों में बैठ कर सफर करने वाले लोगों के बीच सीट बेल्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर तीन हजार से अधिक लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा, शराब पीकर वाहन चलाने की वजह से सड़क हादसों की कैसी तस्वीर बनती है, यह किसी से छिपा नहीं है। गौरतलब है कि हर साल दुनिया भर में सड़क हादसों में साढ़े तेरह लाख से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है। इसमें से करीब नब्बे फीसद मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। अगर सड़क सुरक्षा के कुछ उपायों को ही ठीक से अमल में लाया जा सके, तो मरने वाले कुल लोगों में से लगभग चालीस फीसद तक लोगों को मरने से बचाया जा सकता है।
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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।