नामीबिया से आने से पहले चीतों की  होगी स्वास्थ्य जांच

sadbhawnapaati
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कूनो राष्ट्रीय उद्यान में सितंबर माह में सुनाई देगी दहाड़

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में जल्द ही दक्षिण अफ्रीका के चीतों की दहाड़ सुनाई देगी। नामीबिया से कूनो उद्यान में चीतों को भेजने के लिए सोमवार को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक टीम ने उनकी स्वास्थ्य जांच की। यह जानकारी विंडहोक, नामीबिया में भारतीय उच्चायुक्त ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से दी है।

स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि चीतों के दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से सितंबर महीने कूनो में एक महत्वाकांक्षी पुनरुत्पादन परियोजना के हिस्से के रूप में आने की उम्मीद है, लंबी यात्रा और पर्यावरण के परिवर्तन के कारण इसे समायोजित करने के लिए सभी प्रक्रिया पूरी की जा रही है।

नामीबिया से आ रहे 8 चीते
भारत में सात दशक बाद नामीबिया से आठ चीते आ रहे हैं। इन्हें मध्यप्रदेश के श्योपुर स्थित कुनो नेशनल पार्क में रखा जाएगा। चीता प्रोजेक्ट के लिए इंडियन ऑयल ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को 50.22 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया है। यह राशि चीतों के आवास, प्रबंधन और संरक्षण, पर्यावरण विकास, स्टाफ के प्रशिक्षण और पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होगी।

748 वर्ग किमी में फैला है कूनो-पालपुर पार्क
कुनो-पालपुर नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह छह हजार 800 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले खुले वन क्षेत्र का हिस्सा है। यहां चीतों को बसाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। जिन आठ चीतों को लाया जा रहा है, उनमें चार नर और चार मादा है। चीता का सिर छोटा, शरीर पतला और टांगे लंबी होती हैं। यह उसे दौडऩे में रफ्तार पकड़ने में मददगार होती है। चीता 120 किमी की रफ्तार से दौड़ सकता है।

 1948 में आखिरी बार देखा गया था चीता
भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया राजा रामनुज सिंह देव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। इसके बाद 1952 में भारत में चीता प्रजाति की भारत में समाप्ति मानी।

1970 में एशियाई चीते लाने की हुई कोशिश
भारत सरकार ने 1970 में एशियाई चीतों को ईरान से लाने का प्रयास किया गया था। इसके लिए ईरान की सरकार से बातचीत भी की गई। लेकिन यह पहल सफल नहीं हो सकी। केंद्र सरकार की वर्तमान योजना के अनुसार पांच साल में 50 चीते लाए जाएंगे।

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