पॉक्सो एक्ट: सहमति से बने संबंधों की उम्र पर होना चाहिए विचार
नाबालिग मुस्लिम लड़कियों का निकाह: राष्ट्रीय महिला आयोग की याचिका पर केंद्र से 4 हफ्ते में मांगा जवाब
नई दिल्ली। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पॉक्सो एक्ट के तहत ‘सहमति से बने शारीरिक संबंधों की उम्र सीमा’ पर पुनर्विचार करने की बात कही है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने सहमति से बने शारीरिक संबंधों के मामलों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि विधायिका को साल 2012 में अमल में आए अधिनियम के तहत तय सहमति की उम्र पर विचार करने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र सीमा फिलहाल 18 साल तय है। 18 साल से कम उम्र में बने शारीरिक संबंध इस कानून के दायरे में आते हैं फिर चाहे ऐसे रिश्ते आपसी सहमति से ही क्यों न बने हों।
पॉक्सो एक्ट पर आयोजित एक कार्यक्रम में सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस कानून के तहत तय सहमति की उम्र पर फिर से विचार करने की बात कही। सीजेआई ने कहा आप जानते हैं कि पॉक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच सभी प्रकार के यौन संबंध अपराध हैं भले ही नाबालिगों के बीच सहमति से ही ऐसे संबंध क्यों न बने हों।
धर्म के उसूलों का हवाला देकर नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के निकाह को वैध करार देने वाले विभिन्न हाईकोर्ट के फैसलों को राष्ट्रीय महिला आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने राष्ट्रीय महिला आयोग की याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी कर सरकार को 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है
राष्ट्रीय महिला आयोग ने विवाह के लिए एक समान न्यूनतम आयु सीमा तय करने की गुहार के साथ हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें 15 साल की भी मुस्लिम लड़की के विवाह को जायज बताया गया है.आयोग की दलील है कि ये आदेश पॉक्सो एक्ट का उल्लंघन करता है. मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद यानी 8 जनवरी 2023 को होगी.