डॉ देवेंद्र मालवीय
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वर्तमान विधायक हो सकते है विधानसभा तीन के प्रत्याशी
जोशी बंधुओ में फुट के कारण वरिष्ठ नेता शुक्ला को तीन नंबर से लड़ाने के पक्ष में, महापौर चुनाव में एक नंबर से अत्यधिक वोटो से पिछड़े और तीन नम्बर से ली थी लीड…..
विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक इंदौर की घनी आबादी बाणगंगा, मरिमाता, कुशवाहा नगर, एयरपोर्ट तक के क्षेत्र को अपने में समाहित करती एक बड़ी विधानसभा है जहां लगभग 4.5 लाख वोटर है। इस विधानसभा में अनेकों गरीब बस्तियां, मिल मजदूरों के होने से सघन आबादी वाली बस्तियां है, सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र में अभी भी अनेकों इंडस्ट्रीज और कर्मचारियों होने से क्षेत्र आर्थिक मजबूती लिए हुए है। अपने आप में एक महत्वपूर्ण विधानसभा होने से यहां दोनों ही पार्टियों में मजबूत नेताओं की भरमार है नेताओं के लिए जहां टिकट का लेना एक बड़ी जीत है वहीँ चुनाव जीतना और विधायक बनना किसी राज्य को पाने के बराबर है।
बीजेपी
सुदर्शन गुप्ता -
चुनरी यात्रा और कई सामाजिक कार्यों से भारी जनाधार लिए हुए सुदर्शन गुप्ता क्षेत्र के हर परिवार में व्यक्तिगत पहचान रखने वाले नेता है, नरेंद्र तोमर से गहरे जुड़े हुए सुदर्शन गुप्ता पूर्व में विधायक रह चुके हैं, इस बार भी एक नंबर के अच्छे दावेदार हैं विधानसभा एक के प्रथम पंक्ति के नाम में इनका नाम शामिल है।
इनका माइनस यह है कि अपने बड़बोलेपन के कारण विधायक से पूर्व विधायक हो चुके हैं। हालांकि टिकट मिलने के बाद भी जीतने की राह असंभव की हद तक कठिन होगी, क्षेत्र में ही कई जगह पार्टी के लोग विरोध में है।
उषा ठाकुर -
कहते है सुश्री ठाकुर के कंठ में सरस्वती विराजमान है,ओजस्वी प्रवक्ता होने से तीन अलग-अलग जगह से विधायक रह चुकी है, मध्य प्रदेश सरकार में पर्यटन मंत्री हैं संघ की करीबी महिला नेत्री है महिलाओं के लिए बहुत सामाजिक कार्य करती हैं, विधानसभा एक से पुनः टिकट के लिए प्रयासरत अग्रिम पंक्ति में विराजमान है।
इनका माइनस यह है कि चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र की जनता को यह दिखना बंद हो जाती हैं और जनता दर-दर भटकती है, जो कार्यकर्ता तन मन धन से इनके लिए लगते हैं वह बाद में खुद को कोसते नजर आए हैं।
रमेश मेंदोला -
राजनीति के भीष्म पितामह बनते जा रहे हैं रमेश मेंदोला यूं तो विधानसभा 2 से निरंतर विधायक हैं पर पार्टी समीकरणों या राजनीतिक पंडितों के मुताबिक इस बार इन्हें विधानसभा क्षेत्र बदलना पड़ सकता है यदि एक नंबर से लड़ते हैं तो लोकप्रिय होने, जमीनी लोगों से जुड़ा होने और कमलेश खंडेलवाल का साथ मिलने से ब्राह्मण बनियों का वोट एवं व्यक्तिगत छवि के कारण जीत दर्ज करवा सकते हैं।
इनका माइनस यह है कि राजनीतिक प्रतिद्वंता के कारण सुदर्शन गुप्ता शुरू से विरोधी खेमे में रहे और वर्तमान विधायक संजय शुक्ला ब्राह्मण होने से वोटों का बंटवारा हो जाएगा, असामाजिक तत्वों से दोस्ती आदि कारण से नुकसान में विधायकी गंवाना पड़ सकती है।
हालांकि यदि टिकट मिलती है तो दोनों ही उम्मीदवार आर्थिक मजबूती लिए हुए हैं बाहुबली हैं और क्षेत्र में प्रभुत्व रखते हैं मुकाबला रोचक होगा।
टीनू जैन -
समाजसेवी का तमगा लगाए टीनू जैन पूर्व में पार्षद रह चुके और युवा होने से टिकट की दावेदारी में अपना नाम शामिल करवा चुके हैं।
इनका माइनस यह है कि कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है, वरिष्ठों का सहयोग नहीं, अपने दम और कुछ आकाओं के दम पर राजनीति कर रहे हैं, जैन समाज में ही कई जगह विरोध भी है।
गोलू शुक्ला -
क्षेत्र के रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले शुक्ला अपनी कावड़ यात्रा के कारण जनाधार और बड़ी टीम लिए हैं, क्षेत्र से विधायक बनने के लिए योग्य दावेदार किंतु पार्टी ने उन्हें आईडीए उपाध्यक्ष बनाकर एक मीठी गोली दे रखी है। हालांकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि दो नंबर से संबंध विच्छेद हो इसलिए यह मीठी गोली दी गई है।
इनका माइनस यह है कि, इनके भाई संजय शुक्ला इसी विधानसभा से कांग्रेस के विधायक है जनता के सामने परिवार की परिपाटी स्पष्ट है।
कांग्रेस
संजय शुक्ला -
सुरेश पचौरी, दीपक बावरिया, जेपी अग्रवाल और कई नेताओं के खास, आर्थिक मजबूत करोड़पति शुक्ला वर्तमान में विधायक हैं और 2018 में भारी मतों से जीतने वाले शुक्ला इंदौर में कांग्रेस की ओर से महापौर प्रत्याशी रहे मजबूत छवि के नेता हैं, हंसमुख चेहरा और मीठे बोल उनकी खूबी है, ब्राह्मण वोटो का ध्रुवीकरण करने में माहिर चुनाव को किसी युद्ध से कम नहीं लेते हैं, धार्मिक आयोजनों और शिव भक्त की छवि बनाए हुए शिव पूजा-कथा में लगे रहते हैं, हजारों लोगों को अयोध्या की यात्रा करवा चुके हैं, जनता से सीधा रिश्ता बनाने की राजनीति पर चलते हैं हालांकि जोशी बंधुओं की आपसी फूट के कारण बड़े नेताओं में चर्चा है की इन्हे पार्टी तीन नंबर विधानसभा में प्रत्याशी बनाकर भी भेज सकती है, क्योंकि महापौर प्रत्याशी के दौरान इन्होंने यहां से लीड ली थी।
इनका माइनस यह है कि महापौर प्रत्याशी बनते ही अपने ही क्षेत्र से हजारों वोटों से माइनस हुए, जनता से सीधा रिश्ता रखते हैं पर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते है, विधानसभा को प्राइवेट लिमिटेड बनाते हुए खुद के वेतन भोगियों को रख काम करना पसंद करते हैं जिस कारण कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस करता है। जिन हजारों लोगों को अयोध्या की यात्रा कराई लौटने के बाद वही जनता अयोध्या में हुए कार्यों की तारीफ करते हुए बीजेपी के वोटर साबित हो रहे हैं जिसका नुकसान शुक्ला को मिल सकता है। क्षेत्र के दूसरे नेताओं से सामंजस्य की कमी इस बार विधायकी में रोड़ा बन सकती है।
केके यादव -
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं यदि पार्टी इस बार टिकट बदलती है तो यह एक दावेदार हैं पूर्व पार्षद रह चुके हैं वर्तमान में इनके सुपुत्र पार्षद है यादव समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं विधानसभा 1 में यादव समाज अधिक संख्या में है।
इनका माइनस यह है कि बड़बोले नेता के रूप में पहचाने जाते हैं और इसी कारण खुद पार्षदी का चुनाव हार चुके हैं। उनके पुत्र की जीत का अंतर भी बहुत ज्यादा नहीं रहा, जीत की गारंटी के दावेदार नहीं है।
कमलेश खंडेलवाल -
कांग्रेस के अच्छे नेता रहे हैं समाजसेवी के रूप में अच्छी पहचान बना चुके दिग्विजय सिंह के खास समर्थक माने जाते थे। 2018 के समय मजबूत दावेदार रहे फिर निर्दलीय चुनाव लड़कर अपने आप को नेता के रूप में स्थापित कर चुके हैं।
इनका माइनस यह है कि कांग्रेस में अच्छी पोजीशन होने के बावजूद टिकट न मिलने से उपेक्षित होकर बीजेपी का दामन थाम लिया अब न घर के रहे न घाट के।
दीपू यादव -
पूर्व विधायक भल्लू यादव के पुत्र दीपू यादव अपने पिता की विरासत संजोए हुए हैं यादव समाज में मजबूत पकड़ रखने वाले दीपू कांग्रेस के प्रत्याशी रह चुके हैं, यदि संजय शुक्ला को विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 3 में भेजा जाता है तो दीपू प्रबल दावेदार हो सकते हैं यादव बाहुल्य क्षेत्र होने से फायदा मिल सकता है।
इनका माइनस यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी रहते हुए भारी मतों से हारने के रिकॉर्ड में शामिल है, सक्रिय राजनेता नहीं है अन्य समाजों में स्वीकार नहीं है संगठनात्मक क्षमता की कमी है पिता के अच्छे कामों को भुना नहीं पाए।
गजेंद्र वर्मा -
युवा नेता कमलनाथ के हनुमान और शिक्षाविद की छवि लिए वर्मा क्षेत्र में एक स्वच्छ नेता की पहचान बनाए हुए हैं। चुनाव और कार्यकर्ता प्रबंधन में माहिर है, पूरे इंदौर के पहलवानों, शिक्षाविदों की टीम वर्मा के साथ है, प्रजापति समाज में सर्वमान्य है। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के छात्र नेता रह चुके वर्मा पहलवान के नाम से प्रसिद्ध है खिचड़ी वितरण का आयोजन करके जनता से जुड़े वर्मा क्षेत्र में पार्थिव शिवलिंग निर्माण करके हर गली मोहल्ले में कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर चुके हैं।
इनका माइनस यह है कि कमलनाथ के खास हैं,अन्य गुटों में स्वीकार नहीं है युवा और पहलवान होने के कारण राजनीतिक चाटूखोरिता से परे है, गुस्सैल स्वभाव नुकसान का कारण है।
गोलू अग्निहोत्री -
आर्थिक रूप से मजबूत अग्निहोत्री पूर्व में पार्षद रह चुके हैं ब्राह्मण समाज में स्वीकार है व्यापारियों में अच्छी पकड़ रखते हैं व्यक्तिगत टीम अच्छी है।
इनका माइनस यह है कि वर्तमान परिदृश्य में छवि धूमिल हो चुकी है डब्बा कारोबार इत्यादि में लिप्तता के कारण जनता से नराजगियां बहुत है जीत के दावेदार नहीं है।
निष्कर्ष – दैनिक सदभावना पाती अखबार अपने पत्रकारिता के अनुभव और मीडिया सूत्रों के आधार पर यह कॉलम जिसका नाम “राजयोग” है प्रकाशित करता है, विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक में कांग्रेस की ओर से संजय शुक्ला, गजेंद्र वर्मा जीत सकते हैं वहीं बीजेपी से उषा ठाकुर, रमेश मेंदोला, सुदर्शन गुप्ता, गोलू शुक्ला जीत सकते हैं।
कुल मिलाकर यहां एकतरफा जीत का माहौल किसी का भी नहीं है विधानसभा चुनाव 23 में यह सीट टक्कर मुकाबले के साथ रोचक रिजल्ट देगी।