भोपाल । मध्य प्रदेश कृषि विभाग ने कान पकड़ी डिजिटल दुनिया में किसानों को कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिये ऑनलाइन आवेदन करने का सुनहरा अवसर दिया—लेकिन आवेदन के साथ “डिमांड ड्राफ्ट” यानी DD की धरोहर राशि जमा कराने का पुरानी दुनिया का अभ्यास जारी रखा, जिसने सरकार की डिजिटल पहल की अवधारणा पर जोरदार ठोकर मारी है।
हमेशा से ऑनलाइन, मगर DD अब भी ज़रूरी
पर्याप्त सब्सिडी और ई-लॉटरी की झिलमिलाहट के बीच, आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल दिखती है: आवेदन, पात्रता जांच, लॉटरी और अनुदान सीधा किसान के बैंक खाते में। लेकिन विभाग की ड्राफ्ट मांगने की पुरानी रेल अभी भी पटरी पर है। DD बनवाने, जमा कराने और अगर लॉटरी में ना चुने जाएँ तो वापस रद्द करने में किसानों का समय, पैसा और धैर्य तीनों नष्ट हो रहे हैं।
डी.डी.: बैंकों में ख़र्च और कमीशन का बोझ
डीडी बनवाने के लिए किसान को बैंक जाना पड़ता है। वहीं, “अनिवार्य कमीशन” का एंगल साथ आता है—बैंक चाहे सीधे बोलता नहीं, लेकिन कहा जाता है कि हर मोड़ पर उसकी कमिशन दर्ज हुई रहती है। फिर, यदि किसान लॉटरी में नहीं चुना गया, तो उसे:
1. विभाग से ड्राफ्ट लेने जाना पड़ता है,
2. फिर बैंक जाकर उसे कैंसिल कराने का आवेदन लिखना होता है,
3. और अंत में फिर से कमीशन दे कर ड्राफ्ट को रद्द करवाना होता है।
इसे दोबारा सोचिए—सरकार डिजिटल इंडिया को बढ़ावा दे रही हो, लेकिन व्यवस्था किसानों को “बैंक की कतार + कमीशन” के पुराने घोड़े पर दौड़ा रही हो।
पुराना राग—नया स्वर
यह केवल थोड़ी-सी प्रक्रिया की भूल नहीं है, बल्कि यह किसानों की डिजिटल पहुँच को जानबूझ कर पेचीदा बनाना है। जबकि सरकार कृषि कर्मण पुरस्कार जैसे सम्मान पा चुकी है—जिसका मतलब था कि प्रदेश का कृषि विभाग दक्षता और नवाचार में उदाहरण था, लेकिन इस तरह की व्यवस्थाएँ उस छवि को उलट कर रख देती हैं। कागज़ी नारों से बेहतर, व्यवहार में बदलाव ज़रूरी है।