अधिवक्ता हिरेश पाण्डे की दमदार पैरवी: इंदौर में नाबालिग बलात्कारियों पर सत्र न्यायालय में वयस्कों की तरह चलेगा मुकदमा

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Indore Court News। इंदौर की द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश सुश्री सविता जड़िया ने दांडिक अपील क्रमांक 114/2025 में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए किशोर न्याय बोर्ड, इंदौर के 4 मार्च 2024 के आदेश को निरस्त कर दिया। इस मामले में दो नाबालिग अपराधियों पर 17 वर्षीय नाबालिग पीड़िता के साथ बलात्कार और अन्य गंभीर अपराधों का आरोप है। कोर्ट ने आदेश दिया कि दोनों बाल अपचारियों का मुकदमा अब वयस्कों की तरह सत्र न्यायालय (सेशन कोर्ट), इंदौर में चलेगा।

मामला परदेशीपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज अपराध क्रमांक 540/2023 से संबंधित है, जिसमें पीड़िता की ओर से उनकी माता ने बाल न्यायालय के आदेश के विरुद्ध जिला न्यायालय में अपील दर्ज की थी। अभियोजन के अनुसार, दोनों नाबालिगों ने 1 मार्च 2023 से 1 सितंबर 2023 के बीच पीड़िता को बहला-फुसलाकर ले जाकर, चाकू दिखाकर धमकाने और बलात्कार करने जैसे जघन्य अपराध किए। पीड़िता ने धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत बयान में बताया कि एक नाबालिग अपराधी ने चाकू दिखाकर उसके साथ कई बार बलात्कार किया, जबकि दूसरे ने उसे मारा और उसकी तस्वीरें इंटरनेट पर डालने की धमकी दी। इस अपराध के परिणामस्वरूप पीड़िता गर्भवती हुई और उसके नवजात शिशु की जन्म के दो दिन बाद मृत्यु हो गई।

अधिवक्ता हिरेश पाण्डे (Adv Hiresh Pandey) की दमदार पैरवी

अपील में पीड़िता की ओर से अधिवक्ता हिरेश पाण्डे (Hiresh Pandey) ने तर्क दिया कि किशोर न्याय बोर्ड ने धारा 15, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का गलत निष्कर्ष निकालते हुए वैधानिक त्रुटि की। उन्होंने कहा कि निर्भया कांड के ऐतिहासिक निर्णय के आधार पर 16 से 18 वर्ष की आयु के नाबालिगों पर जघन्य अपराधों के लिए वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है। अभियोजन पक्ष की ओर से अपर लोक अभियोजक श्री दिनेश खण्डेलवाल ने भी तर्क प्रस्तुत किए।

न्यायाधीश सुश्री सविता जड़िया ने अभिलेखों और तथ्यों का अवलोकन करने के बाद पाया कि दोनों नाबालिग अपराधियों की आयु घटना के समय क्रमशः 17 वर्ष, 26 दिन और 16 वर्ष, 10 माह, 24 दिन थी। कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों को अपराध की गंभीरता और उसके परिणामों का ज्ञान था। निर्भया कांड के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि दोनों नाबालिगों का प्रकरण वयस्कों की तरह सत्र न्यायालय में विचारण के लिए भेजा जाए।

कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति प्रिंसीपल मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड, इंदौर को सूचनार्थ भेजने और रिमांड पत्रावली वापस करने का निर्देश दिया। यह निर्णय पीड़िता को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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