हाटपिपलिया में पशु एम्बुलेंस सेवा की पोल खुली, पशुपालकों में रोष
देवास ज़िले की हाटपिपलिया तहसील में ‘पशु एम्बुलेंस सेवा’ की बदहाल स्थिति सामने आ रही है। पशुपालकों का कहना है कि कई महीनों से न तो एम्बुलेंस उपलब्ध हो रही है और न ही पशु चिकित्सक समय पर पहुंच रहे हैं। इसके चलते दर्जनों मवेशी इलाज के अभाव में तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे हैं।
टोल-फ्री नंबर 1962 की हकीकत
राज्य सरकार द्वारा प्रचारित टोल-फ्री नंबर 1962 पर कॉल करने पर कॉल सेंटर एम्बुलेंस उपलब्ध होने की जानकारी देता है और संबंधित चिकित्सक का मोबाइल नंबर भी साझा करता है। लेकिन जब पशुपालक चिकित्सक से संपर्क करते हैं, तो उन्हें बताया जाता है कि एम्बुलेंस खराब पड़ी है। सवाल उठता है कि अगर एम्बुलेंस खराब है, तो कॉल सेंटर को यह सूचना क्यों नहीं दी गई? इससे पशुपालकों का समय और भरोसा दोनों बर्बाद हो रहा है।
व्यवस्थागत खामी या तकनीकी चूक?
खराब एम्बुलेंस की जानकारी कंट्रोल रूम तक न पहुंचना और कॉल सेंटर द्वारा गलत जानकारी देना एक गंभीर व्यवस्थागत खामी को दर्शाता है। पशुपालकों द्वारा प्राप्त चिकित्सक के नंबर पर संपर्क करने पर चिकित्सक कोई ठोस जवाब देने से बचते हैं और देवास के वरिष्ठ अधिकारियों से बात करने की सलाह देते हैं, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों का कोई संपर्क नंबर तक उपलब्ध नहीं कराया जाता।
अनुत्तरित प्रश्न
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खराब एम्बुलेंस की सूचना कंट्रोल रूम तक क्यों नहीं पहुंचाई गई?
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कॉल सेंटर पर गलत जानकारी क्यों दी जा रही है?
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यदि चिकित्सक स्वयं कुछ नहीं जानते, तो इस सेवा का नियंत्रण किसके पास है?
पशुपालकों का टूटता भरोसा
यह लापरवाही न केवल पशुपालकों का विश्वास तोड़ रही है, बल्कि सरकार की ‘पशु सेवा’ की साख पर भी सवाल उठा रही है। पशुपालकों को समय पर सहायता न मिलने से उनके मवेशियों की जान जा रही है, जिससे उनकी आजीविका पर भी असर पड़ रहा है।
मांग: तत्काल जांच और कार्रवाई
पशुपालकों ने इस मामले की तत्काल जांच की मांग की है। दोषियों पर सख्त कार्रवाई और एम्बुलेंस सेवा में पारदर्शिता बहाल करने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि इस व्यवस्थागत खामी को दूर कर पशुपालकों को समय पर और प्रभावी सेवा प्रदान की जाए, ताकि उनकी मेहनत और मवेशियों की जान को बचाया जा सके।