इंटरव्यूअर: पूनम शर्मा, दैनिक सदभावना पाती
इंटरव्यू लेने वाली: मनीषा शर्मा, सीईओ, देवी अहिल्या कैंसर अस्पताल
कैंसर, एक ऐसी बीमारी जिसने लाखों जिंदगियों को प्रभावित किया है, आज न केवल चुनौती है बल्कि जागरूकता और सही उपचार से इसे हराने की उम्मीद भी है। इंदौर, भारत का सबसे स्वच्छ शहर, कैंसर केयर में भी अग्रणी बन रहा है। सीएचएल, चौथराम, बॉम्बे हॉस्पिटल, और धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल जैसे संस्थान कैंसर यूनिट्स स्थापित कर रहे हैं, वहीं सरकारी अस्पताल भी इस दिशा में सक्रिय हैं। दैनिक सद्भावना पाती के लिए पूनम शर्मा ने देवी अहिल्या कैंसर अस्पताल की सीईओ मनीषा शर्मा से विशेष बातचीत की, जिसमें इलेक्ट्रोहोम्योपैथी के जरिए कैंसर उपचार, अस्पताल की स्थापना, और जागरूकता के प्रयासों पर चर्चा हुई। यह साक्षात्कार डर नहीं, बल्कि उम्मीद और जागरूकता का संदेश देता है।
पूनम शर्मा (पीएस): नमस्कार, मनीषा मैम! दैनिक सदभावना पाती में आपका हार्दिक स्वागत। कैंसर आज एक गंभीर चुनौती है, और इंदौर में इसके उपचार के लिए कई पहल हो रही हैं। देवी अहिल्या कैंसर अस्पताल इस दिशा में अनूठा कार्य कर रहा है। सबसे पहले हमें बताएं, इस अस्पताल की नींव कब और कैसे रखी गई, और आपके कार्यकाल में क्या-क्या नवाचार हुए?
मनीषा शर्मा (एमएस): नमस्कार, पूनम जी, और दर्शकों को मेरा नमस्कार। देवी अहिल्या कैंसर अस्पताल की स्थापना 2003 में हुई थी, और इसका उद्देश्य शुरू में इलेक्ट्रोहोम्योपैथी पर आधारित उपचार और शोध था। हमारे संस्थापक श्री अजय हाडिया जी का विजन था कि इस पद्धति के जरिए कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज किया जाए। हमने एलोपैथी के टूल्स का उपयोग करते हुए इलेक्ट्रोहोम्योपैथी पर सतत शोध किया, और 2019 से यह अस्पताल पूरी तरह कैंसर उपचार और इलेक्ट्रोहोम्योपैथी के लिए समर्पित है। मेरे कार्यकाल में हमने उपचार प्रोटोकॉल को और मजबूत किया, मरीजों के लिए फ्रेंडली माहौल बनाया, और देश-विदेश से आने वाले मरीजों के लिए सुविधाएं बढ़ाईं।
पीएस: इलेक्ट्रोहोम्योपैथी एक अनूठी पद्धति है। आमतौर पर कैंसर का इलाज एलोपैथी, होम्योपैथी, या आयुर्वेद से होता है। यह पद्धति कैसे काम करती है, और किन मरीजों के लिए उपयुक्त है? साथ ही, कैंसर कितने प्रकार के होते हैं, और इसके कारण क्या हैं?
एमएस: कैंसर का निदान (डायग्नोसिस) आमतौर पर एलोपैथी के जरिए ही होता है, और इसके पारंपरिक उपचार में कीमोथेरेपी, रेडिएशन, और सर्जरी शामिल हैं। लेकिन इलेक्ट्रोहोम्योपैथी एक प्लांट-बेस्ड, हर्बल उपचार है, जिसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। हम पौधों से बनी दवाओं का उपयोग करते हैं, जो मरीजों को मौखिक रूप से और बाहरी अनुप्रयोग (एक्सटर्नल एप्लीकेशन) के लिए दी जाती हैं। यह उपचार शरीर के सात चक्रों पर काम करता है, जो हर अंग से जुड़े हैं। अगर चक्र संतुलित हैं, तो बीमारी नहीं होती, और असंतुलन होने पर बीमारी आती है। हमारा उपचार इन चक्रों को संतुलित करता है, जिससे मरीज को दर्द या तकलीफ नहीं होती।
कैंसर कई प्रकार के होते हैं, जैसे ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, आदि। इसके कारणों में बदलता लाइफस्टाइल, खानपान, तनाव, और पर्यावरणीय कारक शामिल हैं। हमारा उपचार सभी प्रकार के कैंसर और सभी स्टेज के मरीजों के लिए प्रभावी है, विशेष रूप से उन मरीजों के लिए जो अंतिम उम्मीद के रूप में हमारे पास आते हैं।
पीएस: आपने बताया कि ज्यादातर मरीज सेकंड, थर्ड, या फोर्थ स्टेज में आपके पास आते हैं, जब एलोपैथी के उपचार असफल हो चुके होते हैं। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी अन्य उपचारों से कैसे अलग है, और क्या इसमें दर्द होता है?
एमएस: एलोपैथी में कीमोथेरेपी, रेडिएशन, और सर्जरी दर्दनाक हो सकते हैं। कैंसर का निदान मरीज और उनके परिवार के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से भारी होता है। मरीज की मानसिक और शारीरिक स्थिति दिन-ब-दिन कमजोर होती जाती है। इसके विपरीत, इलेक्ट्रोहोम्योपैथी एक फ्रेंडली और होलिस्टिक उपचार है। हम सात चक्रों पर बाहरी अनुप्रयोग और हर्बल दवाएं देते हैं। यह उपचार 45-60 मिनट का होता है, और दिन में तीन बार किया जाता है। इससे मरीज को कोई दर्द नहीं होता। ब्लीडिंग, दस्त, या अन्य तकलीफें धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। पहले ही सत्र में मरीज का दर्द काफी हद तक कम हो जाता है। हमारा माहौल इतना सकारात्मक और घर जैसा है कि मरीज को लगता है कि वह अस्पताल में नहीं, बल्कि अपने घर में है।
पीएस: कैंसर किस आयु वर्ग में ज्यादा देखा जा रहा है? क्या यह लिंग के आधार पर अलग-अलग होता है? खासकर महिलाओं में ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर की बात होती है।
एमएस): कैंसर अब किसी आयु वर्ग तक सीमित नहीं रहा। हमारे अस्पताल में चार साल के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक भर्ती हैं। छोटे बच्चों को कैंसर देखकर मन बहुत दुखी होता है। लिंग के आधार पर, महिलाओं में ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर सबसे आम हैं। सर्वाइकल कैंसर विशेष रूप से तेजी से बढ़ रहा है, जिसका कारण बदलता लाइफस्टाइल, जैसे लंबे समय तक एक ही स्थिति में रहना, हो सकता है। पुरुषों में फेफड़े, प्रोस्टेट, और अन्य कैंसर देखे जाते हैं। कैंसर के बढ़ने का मुख्य कारण हमारा बदला हुआ लाइफस्टाइल, खानपान, और तनाव है।
पीएस: कैंसर मरीजों के लिए लाइफस्टाइल और खानपान में क्या बदलाव जरूरी हैं? क्या कुछ विशेष परहेज करने चाहिए?
एमएस): लाइफस्टाइल कैंसर के उपचार और रोकथाम में बहुत महत्वपूर्ण है। जिन मरीजों ने हमारी सलाह मानकर अपनी दिनचर्या बदली, वे दो-तीन महीनों में ही चमत्कारी परिणाम पा चुके हैं। मरीजों को सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक ही भोजन करना चाहिए। फल, सब्जियां, और मिलेट्स (जैसे ज्वार, बाजरा) से युक्त अल्कलाइन डाइट अपनानी चाहिए। मांसाहार पूरी तरह बंद करना जरूरी है। नियमित व्यायाम, तनाव प्रबंधन, और पर्याप्त नींद भी जरूरी हैं। महिलाओं में विशेष रूप से जागरूकता की कमी और संकोच के कारण ब्रेस्ट या सर्वाइकल कैंसर देर से डायग्नोज होता है। इसलिए, लक्षण दिखते ही डॉक्टर से परामर्श जरूरी है।
पीएस: इंदौर में कैंसर जागरूकता के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं? क्या आपकी कोई संस्था कैंप्स या अभियान चलाती है?
एमएस): हमारी कैंसर केयर फाउंडेशन जागरूकता के लिए काम करती है। हम जगह-जगह कैंप्स लगाते हैं, जहां बच्चों, महिलाओं, और बुजुर्गों को कैंसर के लक्षण, बचाव, और उपचार के बारे में बताया जाता है। इन कैंप्स में जांच और निदान की सुविधा भी होती है। विश्व कैंसर दिवस पर हम रीगल चौराहे से राजवाड़ा तक रैली निकालते हैं। हमारा लक्ष्य लोगों को यह समझाना है कि असामान्य लक्षण, जैसे गांठ, ब्लीडिंग, या लगातार दस्त, दिखें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
पीएस: कैंसर का इलाज महंगा माना जाता है। निम्न और मध्यम वर्ग के मरीजों के लिए क्या सुविधाएं हैं? क्या आयुष्मान योजना या सब्सिडी लागू होती है?
एमएस): कैंसर का इलाज वाकई महंगा हो सकता है, और यह बीमारी अमीर-गरीब नहीं देखती। हमारे अस्पताल में उपचार के लिए बहुत ही किफायती शुल्क, 50,000 से 60,000 रुपये के बीच, 7-दिवसीय प्रोटोकॉल के लिए है, जिसमें भोजन, आवास, और दवाएं शामिल हैं। अतिरिक्त सुविधाएं, जैसे विशेष कमरे, शुल्क के आधार पर उपलब्ध हैं। आयुष्मान योजना या सब्सिडी अभी हर्बल उपचार के लिए लागू नहीं होती, लेकिन श्री अजय हाडिया जी का सिद्धांत है कि कोई भी मरीज खाली हाथ नहीं लौटेगा। हम जरूरतमंद मरीजों को छूट देते हैं ताकि उपचार सभी के लिए सुलभ हो।
पीएस: आपका सक्सेस रेट क्या है, खासकर जब ज्यादातर मरीज थर्ड या फोर्थ स्टेज में आपके पास आते हैं?
एमएस): हमारे पास ज्यादातर मरीज तब आते हैं, जब डॉक्टर उन्हें घर ले जाने और सेवा करने को कहते हैं। ऐसी स्थिति में हम दो-तीन दिनों में मरीज की तकलीफें, जैसे दर्द, ब्लीडिंग, या दस्त, 50-60% तक कम कर देते हैं। मॉर्फिन या अल्ट्रासिड की जरूरत धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। कई मरीज, जो स्ट्रेचर पर आते हैं, चलकर और हंसते हुए घर जाते हैं। हमारा सक्सेस रेट इस मायने में 100% है कि हम मरीजों को नया जीवन और उम्मीद देते हैं।
पीएस: अंत में, हमारे पाठकों के लिए आपका कोई संदेश?
एमएस): मेरा संदेश है कि कैंसर से डरने की जरूरत नहीं, बल्कि जागरूकता और समय पर निदान जरूरी है। अगर आपको कोई असामान्य लक्षण दिखे, जैसे गांठ, ब्लीडिंग, या लगातार दस्त, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अपनी डाइट को संतुलित करें—फल, सब्जियां, और मिलेट्स लें, मांसाहार से बचें, और सुबह 9 से शाम 7 बजे तक ही भोजन करें। नियमित व्यायाम और तनावमुक्त जीवनशैली अपनाएं। 60-80% बीमारियां सही डाइट और जीवनशैली से रोकी जा सकती हैं।
पीएस): बहुत-बहुत धन्यवाद, मनीषा मैम, इस प्रेरणादायक और जागरूकता भरी बातचीत के लिए। आपने कैंसर से जंग को न केवल आसान, बल्कि उम्मीद से भरा बनाया है। पाठकों से अनुरोध है कि इस जानकारी को शेयर करें और जागरूकता फैलाएं। नमस्कार!
एमएस): धन्यवाद, पूनम जी। मेरी शुभकामनाएं आपके पाठकों के साथ हैं। कैंसर से डरें नहीं, जागरूक रहें और समय पर उपचार लें। नमस्कार!
(यह साक्षात्कार कैंसर के प्रति जागरूकता और इलेक्ट्रोहोम्योपैथी जैसे नवाचारी उपचारों की ताकत को रेखांकित करता है। देवी अहिल्या कैंसर अस्पताल की पहल और मनीषा शर्मा का नेतृत्व मरीजों को नई उम्मीद दे रहा है।)