लेखक-सिद्धार्थ शंकर
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही में विघ्न डालने और सभापति के समक्ष अभद्र व्यवहार करने के चलते विपक्ष के 19 सांसदों को सदन की कार्यवाही से एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है।
जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उनमें तृणमूल सांसद सुष्मिता देव, डॉ शांतनु सेन, डोला सेन, शांता छेत्री, मोहम्मद अब्दुल्ला, एए रहीम, कनिमोझी, एल यादव और वी वी. शिवादासन, अबीर रंजन विश्वास, नदीमुल हक शामिल हैं। एक दिन पहले लोकसभा में भारी हंगामे के बीच स्पीकर ओम बिरला ने कांग्रेस के 4 सदस्यों को निलंबित कर दिया था।
ज्योतिमणी, माणिकम टैगोर, टीएन प्रथापन और राम्या हरिदास को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया गया है। कायदे से हंगामा करने वाले सांसदों के खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए, लेकिन जब भी ऐसा होता है, तब हंगामा करके अपने निलंबन को निमंत्रण देने वाले सांसद यह रोना रोने लगते हैं कि उन्हें बोलने से रोका जा रहा है।
इतने से भी संतोष नहीं होता तो आपातकाल लग जाने या फिर तानाशाही कायम हो जाने का शोर मचाया जाने लगता है। इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। हैरत नहीं कि हंगामा करके संसद न चलने देने वाले सांसद यह मानकर चल रहे हों कि वे अपने उद्देश्य में सफल हैं।
बड़ी बात नहीं कि उनके नेताओं की ओर से उन्हें शाबाशी भी मिल रही हो। चूंकि राजनीतिक दल संसद में हंगामा करने को एक तरह की उपलब्धि मानने लगे हैं, इसलिए संसदीय कार्यवाही का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यदि इस गिरावट को रोका नहीं गया तो ऐसी भी स्थिति बन सकती है कि संसद के चलने या न चलने का कोई महत्व न रह जाए।
मानसून सत्र के पहले ही दिन संसद के दोनों सदनों में कार्यवाही के स्थगित होते ही साफ संकेत मिल गया कि आने वाले दिनों में संसद में हंगामा तय है। सत्र में कुल 17 कार्य दिवस होंगे और यह 12 अगस्त तक चलेगा। करीब 32 विधेयक रखे जाएंगे, उनमें से कितने पारित हो सकेंगे, यह बताना मुश्किल है। अगर केवल हंगामे के कारण कार्यवाही स्थगित हुई, तो फिर कामकाज कैसे होगा? संसद सत्र से पहले ही यह तय हो गया था कि महंगाई, ईंधन की कीमतें, अग्निपथ योजना, बेरोजगारी और डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरने जैसे मुद्दों को उठाया जाएगा।
अब इनमें जीएसटी का मामला भी प्रमुखता से जुड़ गया है। महंगाई बढ़ी है, तो संसद को चलाना भी महंगा हुआ है। सांसदों को सत्र की शुरुआत में ही देखना चाहिए कि संसद को चलाने में प्रतिदिन कितना खर्च आता है। मानसून सत्र काफी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि बजट सत्र के बाद यह सत्र आता है। बजट सत्र में जो विधेयक पारित नहीं हो पाते हैं, उन्हें मानसून सत्र में पारित करने की कोशिश की जाती है।
लेकिन, विपक्षी दल मानसून सत्र में हंगामे करते हुए कार्यवाही में बाधा लाते हैं। संसद की कार्यवाही का एक मिनट का खर्च लगभग 2.5 लाख रुपए है। इसका मतलब एक घंटे की कार्यवाही में लगभग 1.5 करोड़ रुपए का खर्च आता है।
खास बात यह है कि, यह जो करोड़ों का नुकसान होता है, यह सरकार का नहीं बल्कि आम जनता का होता है। संसद की कार्यवाही के लिए जो पैसे खर्च किए जाते हैं, वह आम जनता की कमाई से होता है। सरकार आम जनता से टैक्स के रूप में पैसा वसूल करती है। हर साल की तरह इस साल भी विपक्षी दल मानसून सत्र में हंगामे कर रहे हैं।
जिस वजह से रोज कार्यवाही को स्थगित करना पड़ रहा है। 18 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र में आज तक ऐसा एक भी दिन नहीं गया होगा, जिस दिन हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही स्थगित न हुई हो। इस साल विपक्षी दल हंगामे करने का कोई भी कारण नहीं छोड़ रहा है। पिछले साल भी ऐसा ही कुछ हुआ।
जिस वजह से मानसून सत्र में लगभग 133 करोड़ का नुकसान हुआ है। पिछले साल सदन नहीं चलने से करीब 133 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। यह नुकसान सरकार का नहीं बल्कि करदाताओं का हुआ है। सरकार आम जनता से टैक्स के नाम पर जो पैसा लेती है वही पैसा सदन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
पिछले साल संसद के मॉनसून सत्र में 107 घंटों के निर्धारित समय में से केवल 18 घंटे ही काम किया। जिस वजह से आम जनता को करोड़ों का नुकसान हुआ। पिछले साल मानसून सत्र में लोकसभा में 19 जुलाई से 30 जुलाई तक 54 घंटे काम होना था, लेकिन विपक्षी दल के हंगामे के कारण सिर्फ 7 घंटे ही काम हुआ।
वहीं, राज्यसभा में करीब 53 घंटे काम होना था, लेकिन 11 घंटे ही काम हो सका। दोनों सदनों में कुल 107 घंटे काम होना था, लेकिन 18 घंटे ही काम हुआ। पिछले साल विपक्षी दल के हंगामे के कारण 89 घंटे बर्बाद हो गए।