विचार मंथन) आप बनने की कोशिश

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(लेखक-सिद्धार्थ शंकर)

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बिहार में अपनी पार्टी शुरू करने के फैसले से राजनीतिक पंडितों को खास हैरानी नहीं हुई है। वह पिछले काफी समय से अपने गृह नगर को लेकर विचार कर रहे थे। यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम तेज हैं।
मालूम हो कि किशोर सासाराम में पैदा हुए थे। किशोर ने जन स्वराज की घोषणा ऐसे समय में की है जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की आधिकारिक स्थिति यह है कि राज्य में मुख्यमंत्री पद के परिवर्तन का कोई सवाल ही नहीं है।
74 सीटों के साथ भाजपा विधायिका में सबसे बड़ी पार्टी है, जनता दल यूनाइटेड के पास 43 सीटें हैं। नीतीश को दिल्ली भेजने का ऑप्शन भी नहीं दिखता है। भाजपा में कई लोग निजी तौर पर इस बारे में बात करते हैं कि कैसे 2020 के चुनावों के बाद, यह महसूस किया गया कि सत्ता में भाजपा की अधिक चलेगी, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय सभी को नियंत्रित करता दिखता है।
इसे लेकर राज्य के भाजपा नेताओं और कुछ मंत्रियों में नाराजगी है। प्रशांत किशोर बिहार में आप बनने की कोशिश कर रहे हैं। वह जानते हैं कि लोग कुछ विकल्प चाहते हैं। जनता दल में 35 फीसदी वोट शेयर है जबकि नीतीश कुमार के पास 15 फीसदी और शेष 15 फीसदी कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों जैसे अन्य दलों के पास है।
बिहार में सत्ता में रहने के लिए दो समूहों का एक साथ होना जरूरी है। 2015 में नीतीश और राजद एक साथ आए थे और अब यहां दो अन्य एक साथ हैं। जब तक कोई दूसरा विकल्प न हो, वे साथ रहेंगे। किशोर अपने गृह राज्य में इस बदलाव के एजेंट बनने की उम्मीद कर रहे होंगे। जबकि उन्होंने नई आप होने के इस सिद्धांत को खारिज कर दिया और आगे टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को पार्टी के समर्थन पर जेडीयू से अलग होने के बाद एक पहल की घोषणा की।
वह दो साल पहले (महामारी से ठीक पहले) था, और उस समय उन्होंने राज्य में समान विचारधारा वाले लोगों को आकर्षित करने की अपनी पहल के बारे में बात की। पीके ने दावा किया कि वह एक आंदोलन में एक लाख लोगों को नामांकित कर सकते हैं, लेकिन वह पहल ठप हो गई। भाजपा किशोर को गंभीरता से ले रही है। भाजपा लीडर ने कहा कि किशोर ब्राह्मण नेता होने के नाते उनके वोटों को काट सकते हैं।
चूंकि आम आदमी पार्टी पंजाब में स्थापित पार्टियों को हराने में सफल रही थी, ऐसे में बिहार में भी ऐसे ही हालात पैदा होंगे, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। किशोर ने इस साल की शुरुआत में नीतीश कुमार से मुलाकात की थी।
यह स्पष्ट है कि दोनों के बीच एक खुला चैनल है। इसे नकारा नहीं जा सकता है। प्रशांत किशोर के करीबी सूत्र बताते हैं कि चुनावी रणनीतिकार को उस समय भी लगा कि उन्हें धोखा दिया गया है, जब नीतीश कुमार सरकार को रिपोर्ट करने वाली पटना पुलिस ने साल 2020 में उनके खिलाफ कंटेंट चोरी के आरोपों को साबित करने के लिए प्रयास किए।
साल 2018 में जब कुमार और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था, तब किशोर, नीतीश कुमार की ओर से राजद नेता लालू प्रसाद यादव के पास पहुंचे थे। लेकिन भाजपा नेतृत्व की तरफ से कमान संभालने का भरोसा मिलने के बाद सीएम ने अपने विचार बदल लिए थे। सोमवार को पीके ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने बिहार से शुरुआत की बात कही थी।
इसके बाद से ही अटकलें लगने लगी थी कि किशोर अपनी पार्टी शुरू करने जा रहे हैं। इससे पहले पीके और कांग्रेस के बीच भी चर्चाओं का लंबा दौर चला, लेकिन अंत में बैठकें सफल नहीं हुई और किशोर ने पार्टी में शामिल होने का ऑफर ठुकरा दिया। इस बात की जानकारी चुनावी रणनीतिकार ने खुद ट्वीट के जरिए दी थी।

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