लक्ष्मीकांत पंडित.
कोरोना ने न केवल विश्व राजनीति की दिशा को बदल दिया बल्कि आर्थिक सामाजिक के वैश्विक ढांचे को भी पूरी तरह बदल दिया है यही कारण है कि दिसंबर 2020 के बाद अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य बदला-बदला सा नजर आ रहा है यहां टुकड़े टुकड़े में संबंधों को जांचा परखा जा रहा है तो कहीं एक जरूरी राजनीति के सिद्धांत जो कि पुराना पड़ चुका है अब वापस शीट युद्ध की तरफ जाता दिखाई पड़ रहा है।
कोरोना के पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो मुद्दों पर चर्चा चलती थी पहला इस्लामिक आतंकवाद और दूसरा उत्तर कोरिया के तानाशाह की परमाणु नीति पर जैसे ही चीन से चला करो ना पूरे विश्व में छाया तब पता चला कि पूरे विश्व में स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत क्या है खासकर उन विकसित देशों की जिन्हें की मॉडल मानकर तीसरी दुनिया के देश उनका अनुसरण करते हैं अमेरिका हो या कनाडा ऑस्ट्रेलिया के न्यू जीलैंड एवं पूरा यूरोप हमने देखा कि कोरोना की महामारी के चलते यहां पर आर्थिक गतिविधियों पर ताला लग गया और सामरिक गतिविधियों से अलग हटकर इन देशों में सामाजिक आर्थिक विकास जैसे विषयों पर चिंतन मनन होने लगा एशिया में भी इस प्रकार के हालात बने और व्यापार व्यवसाय की गति को अंकुश लग गया अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देश के भी यही हालत रही जहां तक भारत का सवाल रहा उसने हर मोर्चे पर कोरोना से लड़ने के तरीके भी बताए और एक आदर्श जीवन शैली के सिद्धांत के पैमाने को आगे रखकर यह बताया कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने और विस्तार वादी नीति के चलते रासायनिक हथियार और कीटाणु जीवाणु वह वायरस किस प्रकार मानव संस्कृति के लिए घातक है भारत में अन्य देशों के साथ ही एक लंबा लॉकडाउन देश मैं लगाया और अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए तात्कालिक उपाय भी किए दरअसल विश्व व्यापार की नीतियों के चलते अब जबकि सारा विश्व एक बाजार सा व्यवहार करता है तब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ओं की नीति रीती के अनुरूप चलने के कारण भारत को अनेकों प्रकार के नुकसान उठाना पड़े परंतु राजनीतिक इच्छा शक्ति के चलते Bharat न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व में कोरोना महामारी के खिलाफ जारी लड़ाई में नेतृत्वकर्ता नजर आया दो वैक्सीन भी भारत में ही दुनिया को दिए एक समय तो ऐसा था जब अमेरिका को भारत से दवाइयां मांगनी पड़ी ।
करुणा संकट के चलते अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में इजराइल में भी राष्ट्रपति चुनाव हुए रूस मैं यूक्रेन का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आया इधर अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी तालिबान की सरकार से बातचीत और अरब देशों में इजराइल के विषय में बनते बिगड़ते मतभेद मनभेद जारी रहे सबसे बड़ा मुद्दा चीन का रहा जो कि विश्व के रुख के चलते कुछ ज्यादा ही आक्रमक हो गया अधिकतर देशों का मानना था कोरोना वायरस चीन से ही चला है और चीन को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेना चाहिए चीन ने यह जुर्माना की कोरो ना उसके देश में फैला पर उसके यहां से ही विश्व में गया यह विश्वास करने योग्य बात नहीं है इधर इसी कार्यकाल में भारत चीन का लंबा विवाद सीमा पर चला और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बना कोरोना लॉकडाउन में भारत में अपने पड़ोसी देशों को न केवल चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराई बल्कि वैक्सीन की आपूर्ति के वादे भी पूरे किए हैं आज ईरान अमेरिका परमाणु वार्ता का संकट सब और छाया हुआ है दूसरी ओर इस्लामिक आतंकवाद ने अपना रुख मध्य पूर्व की ओर से हटाकर छोटे अफ्रीकी देशों के तरफ कर दिया है आए दिन मिलने वाले समाचार बताते हैं कि अफ्रीका के छोटे-छोटे देशों में आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां बड़ी है और आईएसआईएस वहां अपने पैर जमा रहा है।
[expander_maker id=”1″ more=”आगे पढ़े ” less=”Read less”]
वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह माना जा रहा था कि तृतीय विश्व युद्ध पानी के लिए होगा और यह आधुनिक संसाधनों युक्त मशीनों द्वारा लड़ा जाएगा लेकिन आज स्थिति यह है कि पूरी दुनिया के देश एक वायरस के आक्रमण के चलते विश्व युद्ध की स्थिति में आ गए हैं जहां संघर्ष एक दूसरे के प्रति ना होकर वायरस के प्रभाव से हो रहा है जोकि बड़ी संख्या में लोगों को अपना शिकार बना कर पूरे विश्व में फैल गया है विज्ञान के आविष्कार और मेडिकल साइंस की प्रगति के सारे आया हूं उस को काबू में नहीं कर पाए हैं यही कारण है कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए विषयों में कोरोना से उपजे आर्थिक सामाजिक स्थिति अलग-अलग देशों में मतभेद की उपस्थिति पैदा कर रही है अमेरिका रूस मिथिला राष्ट्रपति चुनाव के पहले का विवाद थोड़े थोड़े समय में उभर कर सामने आता है इधर चीन और अमेरिकी संबंध भी पहले जैसे इस तीर और विश्वसनीय नहीं रहे हैं अमेरिकी चुनाव के बाद नए राष्ट्रपति की नीतियों से लगता है कि भारत और अमेरिका के संबंध एक बार पुनः कठिनाई के दौर में आ सकते हैं भारत और रूस का दशकों पुराना दोस्ताना आज तक कायम है और यही कारण है कि चीन विवाद के दौरान रूस ने चीन पर नैतिक दबाव भी डाला था जहां तक कोरोना का सवाल है रूस की वैक्सीन स्पूतनिक 5:00 कॉल लेने वाला पहला देश भारत ही है इधर भारत के कड़े रुख के चलते पाकिस्तान कुछ हद तक सुधरा जरूर लेकिन सीमा पर गोलीबारी और आतंकवादी गतिविधियों में उसकी हिस्सेदारी में कोई कमी नहीं आई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आज भी कश्मीर का रोना रोते हुए वहां के हुक्मरान दिखाई पड़ते हैं भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद पूर्वी एशिया के देशों से भारत के सहयोग अंतरराष्ट्रीय संबंध में प्रगाढ़ता और स्थायित्व के समीकरण देखने को मिले हैं फरवरी में मयन मार में सैनिक सत्ता पलट के बाद की स्थिति पर भारत कड़ी नजर रखे हुए हैं नेपाल से भी संबंध अब पटरी पर आने लगे हैं यूरोप में कोरोना का असर अब समाप्ति की ओर है पर यूरोपीय संघ से बाहर आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध कायम करने की कवायद में फिर से जुड़ना पड़ रहा है हालांकि सफल टीकाकरण के बाद वहां पर अब सामान्य जनजीवन बहाल होने की स्थिति में है न्यूजीलैंड ने खुद को पूर्णा फ्री कोरोना फ्री घोषित कर दिया है बावजूद इसके अनेक देशों में कोरोना का दूसरा संक्रमण चल रहा है।
विभिन्न प्रकार की आर्थिक संकटों के चलते हुए दुनिया के विकसित और विकासशील देशों में अपने संसाधन विकसित कर पूरी दुनिया में बाजार तलाशने की नीति रीती को बढ़ावा मिला है और यही कारण है कि हर देश अपने माल के लिए बाजार तलाश रहा है आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं आगामी दिनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकासशील देश और विकसित देशों में पर्यावरण संतुलन और वैश्विक स्वास्थ्य को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है और शीत युद्ध की वापसी के हल के संकेत भी देखने को मिल सकते हैं इस तरह कोरोना से तीसरा विश्वयुद्ध हुए जैसे हालातों में कई देश अपने संसाधन और मानव श्रम के चलते अंतरराष्ट्रीय मंच पर नेतृत्व करने की भूमिका आ गए हैंभारत उनमें से एक है।
[/expander_maker]