केंद्र एवं राज्यों के बीच टकराव से लोकतंत्र खतरे में ? 

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(विचार मंथन)
लेखक-सनत कुमार जैन
भारतीय संविधान में संघात्मक प्रणाली की शासन व्यवस्था है। केंद्र एवं राज्यों के बीच संविधान में स्पष्ट रूप से अधिकारों एवं दायित्वों को परिभाषित किया गया है।
संविधान में विधायकों  प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकारों तथा दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या है। पिछले 8 वर्षो में केंद्र एवं राज्यों के संबंधों, वित्तीय एवं कानून व्यवस्था को लेकर लगातार टकराव बढ़ रहा है। कई मामलों में केंद्र ने बिना राज्य सरकार की सहमति अथवा मांग के सुरक्षा व्यवस्था में दखल देना शुरू कर दिया है।
इसी तरह केंद्र की जांच एजेंसी के द्वारा केंद्र के इशारे पर राज्यों में राजनीतिक मामलों में केन्द्रीय हस्तक्षेप के आरोप लग रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपालों की भूमिका को लेकर गैर भाजपा शासित राज्यों का टकराव लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
हाल ही में कुछ माहों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर राज्यों की पुलिस के बीच भी सीधी टकराव देखने को मिल रहा है।  पंजाब पुलिस का दिल्ली एवं हरियाणा पुलिस का सीधा टकराव 6 मई 2022 को देखने मिला।
पंजाब पुलिस एक मामले में दोषी भाजपा नेता तजिन्दर बग्गा को गिरफ्तार कर पंजाब ले जा रही थी। उसी दौरान दिल्ली पुलिस में बग्गा के पिता की शिकायत पर पंजाब पुलिस पर अपहरण का मामला दर्ज कर दिया।
हरियाणा पुलिस ने दिल्ली पुलिस की सूचना पर पंजाब पुलिस को रोककर आरोपी को दिल्ली पुलिस को सौंप दिया। दिल्ली पुलिस ने तजिन्दर सिंह बग्गा को पंजाब पुलिस की गिरफ्त से छुड़ा कर उसके पिता को सौंप दिया।
पिछले वर्षों में चुनाव नजदीक आते ही गैर भाजपा नेताओं को ईडी, सीबीआई आयकर के छापों को लेकर भी केंद्र एवं राज्यों के बीच लगातार टकराव बढ़ रहा है।  कई राज्यों ने राज्य सरकार की अनुमति के सीबीआई के छापों पर रोक लगा दी है।
इसके बाद ईडी, और आयकर के छापे राज्यों में बढ़ गए हैं। विपक्ष का आरोप होता है, चुनाव में बदनाम करने, चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने एवं चुनाव के दौरान गैर भाजपाई नेताओं को हिरासत में लेकर चुनाव को प्रभावित किया जाता है। बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों में दल बदल कराकर सरकारों को अस्थिर करने का आरोप लगता है।
महाराष्ट्र में इसी माह शिवसेना के विधायकों को ईडी के नोटिस, जांच एवं संपत्ति जब्त कर महाराष्ट्र की उद्धव सरकार को गिराने का आरोप भी केंद्र सरकार पर लग रहा है।
पश्चिम बंगाल के चुनाव में केंद्र सुरक्षा बलों का अतिरिक्त बल और उसकी भूमिका को लेकर केंद्र एवं राज्य के बीच बड़ा टकराव देखने को मिला था। हाल ही में छत्तीसगढ़ की पुलिस एंकर का कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट लेकर गाजियाबाद पहुंची थी।
 पुलिस ने देखकर आरोपी की गिरफ्तारी भी कर ली थी।  किंतु कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार टीवी एंकर को पुलिस की हिरासत से छुड़ाकर उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपने कब्जे मैं ले लिया।
मामले को तूल पकड़ता देख उत्तर प्रदेश पुलिस ने टीवी एंकर रोहित के खिलाफ एक मामला दर्ज कर उसकी गिरफ्तारी बता दी। इस कार्यवाही से उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली पुलिस के बीच का टकराव सारा देश में चर्चा का विषय बन गया है।
पिछले वर्षों में जिस तरह से केंद्र एवं राज्यों के संबंधों को लेकर टकराव देखने को मिल रहा है।  इससे भारत की लोकतांत्रिक एवं संसदीय व्यवस्था के लिए चिंता का बड़ा विषय बन गया है। हाल ही में डीएमके के सांसद ए राजा ने तमिलनाडु को भारत से अलग करने की मांग उठा दी है।
दिल्ली, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र राज्यों में पिछले माहों में जिस तरह केंद्र के खिलाफ आक्रोश देखने को मिल रहा है।  उससे यह चिंता और भी बढ़ जाती है। आजादी के 75 वर्ष का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता के बाद केंद्र एवं राज्यों के संबंध में कभी भी इस तरह का टकराव नहीं देखा गया।
जो पिछले वर्षों से देखने को मिल रहा है। यह सही है, अभी भाजपा और गैर भाजपाई राजनैतिक दलों की सरकारें होने से यह टकराव राजनैतिक प्रतिस्पर्धा का हिस्सा मान लिया जाए। किंतु आगे चलकर राज्यों के हितों को लेकर केंद्रीय नेतृत्व को राज्यों की नाराजगी को झेलना पड़ेगा।
राज्यों की आर्थिक स्थिति दिनों दिन खराब हो रही है। जीएसटी लागू होने के बाद केंद्रीय कराधान व्यवस्था से केंद्र सरकार की जिम्मेदारी पहले की तुलना में कई गुना बढ़ गई है।
महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति नाजुक दौर से गुजर रही है।  ऐसी स्थिति में राज्यों के साथ केंद्र का टकराव संघीय व्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने है।
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