ज्ञात हो कि इन विश्वविद्यालयों में सवा लाख से ज्यादा विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। समय से फीस तय न होने का खामियाजा बाद में विद्यार्थियों को भुगतना पड़ेगा।
मसलन, विश्वविद्यालय की सुविधा को देखकर आयोग कम फीस तय करता है, तब भी विद्यार्थी को उतनी ही फीस चुकाना होगी, जिनती प्रवेश से पहले विश्वविद्यालय मैनेजमेंट से तय हुई है।
विनियामक आयोग ने 12 मार्च 2021 को शैक्षणिक कैलेंडर 2021-22 घोषित किया था और 15 अप्रैल तक सभी निजी विश्वविद्यालयों से पाठ्यक्रम अनुसार फीस के लिए प्रस्ताव मांगे थे, पर हैरत की बात है कि 30 अप्रैल तक एक भी निजी विश्वविद्यालय ने प्रस्ताव नहीं दिया।
उन्होंने कोरोना संक्रमण के कारण कामकाज ठप होने का तर्क दिया। इस तर्क से सहमत होते हुए आयोग ने 31 जुलाई 2021 तक का समय दे दिया। इस अवधि में भी 11 निजी विश्वविद्यालयों ने ही प्रस्ताव दिया।
फिर अक्टूबर 2021 तक अन्य तीन के प्रस्ताव आए, लेकिन परीक्षण में तीन विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव ठीक पाए गए। जबकि 11 के प्रस्तावों में कमी पाई गई। जिससे उन्हें वापस लौटा दिया गया।
इस मामले में विश्वविद्यालयों ने आयोग की भी एक नहीं सुनी। बार-बार स्मरण कराने के बाद भी नवंबर एवं दिसंबर 2021 तक 10 और विश्वविद्यालयों ने ही प्रस्ताव भेजे।
ऐसे में पूरा सत्र बीत गया और आयोग पाठ्यक्रमों की फीस तय करना तो दूर विश्वविद्यालयों से प्रस्ताव तक नहीं मंगा पाया।
अब भी 15 विश्वविद्यालयों के नहीं आए प्रस्ताव
जानकार बताते हैं कि विश्वविद्यालयों से प्रस्ताव मंगाने के आयोग के सारे प्रयास नाकाफी साबित हुए। मार्च 2022 में यह शैक्षणिक सत्र समाप्त हो रहा है और 15 विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव अब भी नहीं आए हैं। इसलिए संबंधित विश्वविद्यालयों की फीस भी तय नहीं हो पा रही है।