प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट फोरम के महासचिव डॉ. सिद्धार्थ तारा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तत्काल फैसला लेने की मांग की है, ताकि छात्र-छात्राएं और उनके परिजनों को कुछ दिलासा मिल सके।
उन्होंने बताया कि यूक्रेन में करीब 22 हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं हैं, जिनमें से करीब सात से आठ हजार विद्यार्थी एमबीबीएस अंतिम वर्ष से हैं। मंगलवार को खारकीव में एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्र नवीन कुमार की हमले में मौत हुई है।
डॉ. तारा का कहना है कि जिन छात्रों ने बैंक लोन लेकर वहां प्रवेश लिया है उनके लिए यह सबसे ज्यादा घातक स्थिति है। क्योंकि, बच्चों की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही उन्हें वापस बुलाना पड़ रहा है। आगे क्या होगा? यह किसी को नहीं पता, लेकिन भारत सरकार को तत्काल इनके बारे में विचार करना चाहिए।
डॉ. तारा का कहना है कि भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जब किसी छात्र-छात्रा को प्रवेश नहीं मिल पाता है तो वह विदेश का विकल्प चुनता है। यह इसलिए भी कि भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की तुलना में बाहर से एमबीबीएस करना कम खर्चीला है। अब ये छात्र वापस आ रहे हैं, ऐसे में भारत सरकार को यह भी बताना चाहिए कि अगर इनको हम अपने देश में एक मौका देंगे तो क्या उन्हें सरकारी संस्थान मिलेगा? क्योंकि, प्राइवेट कॉलेज में इन्हें एडमिशन मिलता भी है, तब भी हर किसी के परिजन खर्चा वहन नहीं कर पाएंगे।
पढ़ाई पर भारत में होता है ज्यादा खर्च
फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) के सदस्य डॉ. राकेश बागड़ी का कहना है कि भारत के किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस पूरा करने में करीब एक करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च होता है, जबकि यही कोर्स यूक्रेन के किसी भी मेडिकल कॉलेज से 27 से 28 लाख रुपये में होता है। यूक्रेन में रहना भी बहुत अधिक महंगा नहीं है। अगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से तुलना करें तो खारकीव या कीव जैसे शहर का जीवन यापन लगभग बराबर ही है।