तपते सूरज की शीतल छाया पिता होता है

Dr. Gopaldas Nayak
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Dr. Gopaldas Nayak
I am currently working in Government College Khandwa, I have been doing teaching work for the last several years and also writing work in various genres
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Dad and son having fun outdoors.

डॉ. गोपालदास नायक

किसी भी बच्चे के जीवन में अगर सबसे बड़ी, सबसे स्थिर और सबसे शांत उपस्थिति होती है तो वह पिता की होती है। अक्सर हम जब रिश्तों की गर्माहट की बात करते हैं तो माँ की ममता सबसे पहले हमारे जेहन में आती है। लेकिन पिता की भूमिका उस आंगन के उस बरगद की तरह है, जो चुपचाप खड़ा रहकर अपनी छांव से पूरे परिवार को ढँक लेता है। उनकी मौजूदगी कभी शब्दों में प्रकट नहीं होती, पर उनकी अनुपस्थिति जीवन की सबसे बड़ी रिक्तता बन जाती है।

बचपन के वे दिन जब हम चलना सीख रहे होते हैं, बोलना सीख रहे होते हैं, दुनिया को समझने के पहले प्रयास कर रहे होते हैं — तब पिता हर क्षण हमारे आसपास होते हैं। वे कभी गोद में नहीं उठाते, लेकिन अगर हम लड़खड़ाएँ तो सबसे पहले उनकी आँखें चौकन्नी हो जाती हैं। माँ की तरह वे हमारे आँसू नहीं पोंछते, लेकिन उनकी मजबूत नजरों में एक गहरा संदेश होता है — -तुम गिर सकते हो, पर तुम्हें खुद उठना होगा। मैं यहीं हूँ।- यह सीख इतनी गहरी होती है कि जीवनभर के हर संकट में वही शब्द कानों में गूंजते हैं।

पिता के पास वक्त कम होता है, पर उनका समर्पण कभी कम नहीं होता। सुबह जल्दी उठकर काम पर निकल जाना, दिन भर की मेहनत, शाम को लौटकर बच्चों के होमवर्क के बारे में पूछना और फिर अगली सुबह की तैयारी में जुट जाना — यह दिनचर्या उनके जीवन का हिस्सा बन जाती है। उनकी जेबें भले ही हमेशा ज्यादा भरी हुई न हों, पर उनकी छाती चौड़ी होती है; क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी मेहनत से ही उनके बच्चों का भविष्य आकार ले रहा है। अपने सपनों की जगह वे अपने बच्चों के सपनों को पालते हैं।

अक्सर हम देख नहीं पाते कि पिता कितने चुपचाप अपने सुखों का त्याग करते हैं। जब नए कपड़े लाने की बात आती है तो सबसे पहले बच्चों के नाम लिखे जाते हैं। त्योहारों पर मिठाइयाँ कम पड़ें तो बच्चों को खिलाकर वे खुद बिना खाए ही मुस्कुरा लेते हैं। बच्चों की फीस भरने के लिए कई बार अपनी जरूरी चीजों को टाल देते हैं। वे कभी यह जताते नहीं कि यह सब उनके लिए कितना कठिन होता है। शायद इसलिए, क्योंकि उनकी खुशी उनके बच्चों की खुशी में समाहित होती है।

समाज में पिता की भूमिका केवल परिवार तक सीमित नहीं होती। वे एक समाज निर्माता भी होते हैं। उनकी ईमानदारी, परिश्रम, संघर्ष और नैतिकता का सीधा असर उनके बच्चों पर पड़ता है, और वही बच्चे बड़े होकर समाज की रीढ़ बनते हैं। पिता अपने आचरण से बच्चों को सिखाते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी संयम कैसे रखा जाता है, मेहनत कैसे की जाती है और अपने कर्तव्यों को कैसे निभाया जाता है।

कभी-कभी पिता की कठोरता हमें अखरती है। उनका डांटना, उनकी ऊँची आवाज, उनका अनुशासन — ये सब उस समय असहज लगते हैं। पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, समझ आने लगता है कि उनकी कठोरता के पीछे कितना गहरा स्नेह छुपा था। जब हम खुद किसी जिम्मेदारी के बोझ तले दबते हैं, तब अहसास होता है कि पिता किस तरह हर दिन इस बोझ को मुस्कुराते हुए उठाते रहे। वे कभी शिकवे नहीं करते, कभी थकान की शिकायत नहीं करते।

समय बदला है। अब पिता का स्वरूप भी बदला है। अब वे केवल अनुशासन और आर्थिक जिम्मेदारी तक सीमित नहीं हैं। आज के पिता बच्चों के साथ खेलते हैं, पढ़ाई में मदद करते हैं, उनकी भावनाओं को समझते हैं, और हर मोड़ पर उनके दोस्त बन कर खड़े रहते हैं। वे बच्चों के सपनों को समझते हैं, उनके डर को पहचानते हैं और उनकी भावनाओं को शब्द देने में भी संकोच नहीं करते।

बेटे-बेटियों की सफलता पर उनकी आँखों में जो गर्व छलकता है, वह दुनिया की सबसे सच्ची खुशी होती है। लेकिन वहीं दूसरी ओर, जब बच्चे गलती करते हैं, भटकते हैं या विफल होते हैं, तब भी सबसे पहले पिता ही होते हैं जो बिना कोई शोर किए उन्हें फिर से खड़ा करने का हौंसला देते हैं। उनकी डांट में छिपी चिंता और उनकी चुप्पी में छुपा आशीर्वाद — यह केवल वही समझ सकता है जो पिता की उस गहरी दुनिया में झाँकने का साहस रखता हो।

गांव की गलियों में सुबह-सुबह खेत की ओर जाता हुआ वह किसान पिता हो, या शहर की भीड़ में हर दिन दफ्तर जाने वाली भीड़ में शामिल वह सरकारी कर्मचारी पिता — दोनों की चिंता एक ही होती है: – मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे।- वे अपनी थकान को कभी जाहिर नहीं करते। दुनिया भले ही उनकी अहमियत को न जाने, पर उनके बच्चे जब भी जीवन में किसी ऊँचाई पर पहुँचते हैं, उस ऊँचाई के हर पत्थर पर पिता के पसीने की बूँदें चमकती हैं।

फादर्स डे का दिन हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हमने कब, कहाँ और कितनी बार अपने पिता से उनके त्याग के लिए आभार व्यक्त किया है। अक्सर हम यह सोचकर टाल जाते हैं कि ‘पापा तो समझते हैं’, पर क्या कभी हमने यह शब्द उनके सामने खुले दिल से कहे हैं कि — -पापा, मैं आपके संघर्षों को समझता हूँ, आपके त्याग को जानता हूँ। आप मेरे आदर्श हैं।-

बेटियों के लिए पिता जीवन का पहला आदर्श पुरुष होते हैं। उनकी उंगली पकड़कर चलना सीखने वाली बेटी जब बड़े होकर जीवन के फैसले लेती है, तो कहीं न कहीं पिता की दी हुई सीख उसे राह दिखाती है। वही बेटी जब विवाह के बाद विदा होती है, तो पिता की आँखों में पहली बार एक ऐसा नम आकाश उतर आता है, जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। शायद उस क्षण पिता पहली बार अपने भीतर के बच्चे से मिलते हैं — उस मासूम से जो अपनी बिटिया के साथ विदा हो रहा होता है।

बेटों के लिए पिता वह मजबूत चट्टान होते हैं, जिसके सामने वे खुद को हर बार मजबूत बनाना चाहते हैं। बेटा जब अपने जीवन में संघर्ष करता है, तो पिता के संघर्षों की गाथाएँ उसे संबल देती हैं। जब बेटे को पहली बार जिम्मेदारियों का भार उठाना पड़ता है, तब उसे अहसास होता है कि पिता ने यह भार कितने वर्षों तक मुस्कुरा कर उठाया था।

हमारी परंपराओं में पिता को धरती के देवताओं के बराबर माना गया है। भारतीय संस्कृति में पिता केवल एक संबंध नहीं है, बल्कि यह एक संस्था है। जीवन के हर मोड़ पर पिता का आशीर्वाद हमारे लिए वह अदृश्य कवच बन जाता है, जो हमें हर संकट से बचाता है।

आज के इस आधुनिक समय में जब रिश्तों में औपचारिकताएँ बढ़ गई हैं, तब भी पिता का रिश्ता अभी भी उतना ही निश्छल और गहरा है। वे कभी दिखावे की चाह नहीं रखते। उन्हें महंगे उपहार या सोशल मीडिया की प्रशंसा नहीं चाहिए। उन्हें चाहिए केवल इतना कि उनके बच्चे उन्हें समझें, उनके त्याग का सम्मान करें और उनके साथ कुछ वक्त बिताएं।

यह दिन केवल पिता को उपहार देने या एक औपचारिक संदेश भेजने का दिन नहीं है। यह दिन हमें उस चुपचाप बहती नदी की गहराई को पहचानने का अवसर देता है, जो जीवन भर हमारे लिए बहती रहती है। पिता हमारे जीवन का वह हिस्सा हैं, जिन्हें हम अक्सर उनकी उपस्थिति में कम और उनकी अनुपस्थिति में ज्यादा समझ पाते हैं।

कई बार जीवन की भागदौड़ में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि पिता की आँखों के उस कोने में इकट्ठे होते मोती भी हमें दिखाई नहीं देते। पर समय के साथ जब हम खुद पिता बनते हैं, तब उन अनकहे जज़्बातों का अर्थ समझ आता है। तब उनकी डांट में छिपा प्रेम, उनकी खामोशी में छिपी चिंता और उनकी दूर से देखती निगाहों में छुपी दुआओं की ताकत का असली मूल्य समझ आता है।

आज फादर्स डे के इस विशेष दिन पर हम सब अपने-अपने पिता के चरणों में यह प्रण लें कि हम उनके अधूरे सपनों को पूरा करेंगे, उनकी हर चिंता को मुस्कान में बदलेंगे और उनके संघर्ष को कभी व्यर्थ नहीं जाने देंगे। उनके द्वारा दिये गये हर मूल्य को हम अपने जीवन में सजो कर रखेंगे, क्योंकि वही हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं।

पिता वास्तव में छाया में खड़े उस सूरज की तरह होते हैं, जो खुद जलता है पर कभी अपने तपन का एहसास नहीं कराता। उनके जीवन की तपिश हमें जीवन भर सुकून देती है।

 

 

 

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