नवरात्रि का प्रथम दिन – मां शैलपुत्री

Dr. Gopaldas Nayak
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Dr. Gopaldas Nayak
I am currently working in Government College Khandwa, I have been doing teaching work for the last several years and also writing work in various genres
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डॉ. गोपालदास नायक, खंडवा

नवरात्रि का प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इनका वाहन वृषभ है और हाथों में कमल तथा त्रिशूल धारण करती हैं। माँ शैलपुत्री का बीज मंत्र है—

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।

(अर्थात– मैं पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी शैलपुत्री को नमस्कार करता हूँ।)

इस मंत्र के जाप से साधक को स्थिरता, धैर्य और जीवन में दृढ़ आधार प्राप्त होता है।

माँ शैलपुत्री का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जीवन की किसी भी यात्रा की शुरुआत मजबूत नींव से ही होती है। जैसे पर्वत अडिग रहते हैं, वैसे ही हमें अपने संस्कारों, नैतिक मूल्यों और सत्यनिष्ठा में अडिग रहना चाहिए। आज के सामाजिक परिवेश में जब भाग-दौड़, प्रतिस्पर्धा और भौतिक आकर्षण हमारी जड़ों से दूर करने लगे हैं, तब माँ शैलपुत्री का संदेश अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है।

आज समाज में यह सबसे बड़ी चुनौती है कि युवा वर्ग अपनी संस्कृति और परंपरा से दूर होकर भ्रमित हो रहा है। यदि हम माँ शैलपुत्री की उपासना को आत्मसात करें तो धैर्य, संयम और जड़ों से जुड़े रहने का भाव हममें स्वाभाविक रूप से विकसित होगा।

माँ शैलपुत्री यह भी प्रेरणा देती हैं कि प्रकृति और पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। पर्वत, वृक्ष और नदियाँ केवल दृश्य नहीं, बल्कि जीवन के आधार हैं। अतः हमें पर्यावरण की रक्षा को अपना दायित्व मानना चाहिए।

सामाजिक दृष्टि से यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि परिवार और समाज की नींव तभी मजबूत होगी जब उसमें विश्वास और धैर्य होगा। आपसी सहयोग, स्त्रियों का सम्मान और बुज़ुर्गों के अनुभव का आदर करना ही समाज को नई ऊर्जा प्रदान करता है।

         नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना करते हुए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन को धैर्य, सत्य और सेवा की नींव पर स्थापित करेंगे। तभी हम स्वयं को और समाज को स्थिर, संतुलित और ऊर्जा से भरपूर बना पाएँगे।

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