MP में भी मंकीपॉक्स का बढ़ा खतरा, WHO ने घोषित किया वैश्विक महामारी

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MP Top News. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकीपॉक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है। बैठक में लंबी चर्चा के बाद WHO ने यह फैसला लिया। मंकीपॉक्स अब तक 80 देशों में फैल चुका है। भारत में अब तक इस वायरस के 3 मामले सामने आ चुके हैं। इसके साथ ही प्रदेश में भी मंकीपॉक्स का खतरा बढ़ने लगा है। कोरोना की तरह मंकीपॉक्स भी नाक, आंख और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है।

देश भर में कोरोना के प्रतिबंध खत्म होने के चलते बस, ट्रेन से आवाजाही जारी है। ऐसे में मप्र में भी मंकीपॉक्स के फैलने का खतरा बढ़ रहा है। हालांकि, अब तक मप्र में मरीज नहीं मिला है, फिर भी टेंशन बढ़ गई है। जानते हैं कि कैसे फैलती है ये बीमारी, क्या हैं लक्षण और बचाव…

क्या है मंकीपॉक्स?

यह बीमारी मंकीपॉक्स नाम के वायरस की वजह से होती है। मंकीपॉक्स भी स्मॉलपॉक्स (चेचक) परिवार के वायरसों का ही हिस्सा है। हालांकि, मंकीपॉक्स के लक्षण स्मॉलपॉक्स की तरह गंभीर नहीं, बल्कि हल्के होते हैं। मंकीपॉक्स बहुत कम मामलों में ही घातक होता है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि इसका चिकनपॉक्स से लेना-देना नहीं है।

संदिग्ध मरीजों के सैंपल की जांच कहां होगी?

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे में संदिग्ध मरीजों के सैंपल जांच के लिए भेजे जाएंगे।

इंसानों में फैलने वाली संक्रामक बीमारी है मंकीपॉक्स

मरीज के घाव से निकलकर यह वायरस आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। इसके अलावा बंदर, चूहे, गिलहरी जैसे जानवरों के काटने से या उनके खून और बॉडी फ्लूइड्स को छूने से भी मंकीपॉक्स फैल सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ठीक से मांस पका कर न खाने या संक्रमित जानवर का मांस खाने से भी आप इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

समलैंगिकों पर पड़ रहा भारी

यूके हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी (UKHSA) का कहना है कि ब्रिटेन में अब तक मिले मंकीपॉक्स के ज्यादातर मामलों में मरीज वे पुरुष हैं, जो खुद को ‘गे’ या बायसेक्शुअल आइडेंटिफाई करते हैं। अभी तक मंकीपॉक्स को यौन संक्रामक बीमारी नहीं माना गया है, लेकिन ऐसा हो सकता है कि समलैंगिकों में यह सेक्शुअल कॉन्टैक्ट से फैल रही हो। यह देखते हुए एजेंसी ने समलैंगिक पुरुषों को आगाह भी किया है।

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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।