शादी का वादा करके किसी महिला के साथ उसकी सहमति से लंबे समय तक सेक्शुअल रिलेशन रखे जाने को रेप कहा जाए या नहीं, इसे लेकर रेप के कानून में और स्पष्टता की जरूरत है। ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा है कि जब महिला अपनी मर्जी से इस तरह के संबंध में होती है तो उसके लिए बलात्कार को परिभाषित करने वाले कानून में और स्पष्टता की जरूरत है। दरअसल, इस केस में लड़की ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने शादी का वादा करके उसके साथ फिजिकल रिलेशन बनाए।
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इसी तरह के मामले में बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के जज एसके पाणिग्रही ने फैसला सुनाया कि इंटीमेट रिलेशंस को संभालने के मामलों में बलात्कार से जुड़ा कानून लागू नहीं होना चाहिए, खासकर उन मामलों में जहां महिलाएं अपनी मर्जी से रिलेशनशिप में रहती हैं। अदालत ने कहा कि इस मामले पर कानून में आरोपियों की सजा के लिए स्पष्टता का अभाव है।
दरअसल, पुलिस ने आरोपी पर पिछले साल भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (1), 313, 294 और 506 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 (ई) और 67 (ए) के तहत एक लड़की से बलात्कार के आरोप में मामला दर्ज किया था। लड़की ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने उससे शादी करने का वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
आरोप है कि फिजिकल रिलेशन की वजह से लड़की दो बार गर्भवती हो गई, जिसे आरोपी युवक ने दवा देकर गर्भपात करा दिया। हालांकि पिछले साल जनवरी में लड़की ने आरोपी युवक से उससे शादी करने के लिए कहा, मगर उसने इनकार कर दिया। बाद में पिछले साल अप्रैल में युवक ने कथित रूप से लड़की के नाम से बनाई गई फर्जी फेसबुक आईडी का उपयोग करते हुए अपने साथ लड़की की निजी तस्वीरें पोस्ट कीं, जिसमें लिखा था कि लड़की का चरित्र अच्छा नहीं था। युवक ने कथित तौर पर लड़की को धमकी दी थी कि वह उसकी अश्लील तस्वीरें फेसबुक पर वायरल कर देगा। इतना ही नहीं, उसने उसे अगवा करने और जान से मारने की भी धमकी दी थी।
हालांकि, जस्टिस पाणिग्रही ने आरोपी युवक की जमानत याचिका को खारिज कर दिया, मगर उन्होंने पाया कि बलात्कार के कानूनों का उपयोग अंतरंग संबंधों को रेगुलेट करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, खासकर उन मामलों में जहां महिलाएं अपनी पसंद से रिश्ते में जाती हैं। जस्टिस पाणिग्रही ने कहा कि कानून में अच्छी तरह से तय है कि शादी करने के झूठे वादे पर प्राप्त सहमति एक वैध सहमति नहीं है। चूंकि कानून के निर्माताओं ने विशेष रूप से उन परिस्थितियों का उल्लेख किया है, जब आईपीसी की धारा 375 के संदर्भ में ‘सहमति’ का मतलब ‘ वैध सहमति’ नहीं होता। यहां शादी का झूठा वाद करके फिजिकल संबंध के लिए सहमति आईपीसी की धारा 375 के तहत उल्लिखित परिस्थितियों में से एक नहीं है। इसलिए आईपीसी की धारा 375 के तहत सहमति के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए आईपीसी की धारा 90 के प्रावधानों के स्वत: विस्तार को गंबीर रूप से देखे जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शादी के नाम पर फिजिकल रिलेशन रखने को बलात्कार बताने वाला कानून गलत प्रतीत होता है।
जज पाणिग्रही ने आगे कहा कि समाज और ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक रूप से वंचित और गरीब तबकों से कई शिकायतें आती हैं, इन वर्गों की महिलाओं को अक्सर शादी के झूठे वादे का लालच देकर पुरुषों द्वारा सेक्स किया जाता है और गर्भवती होने के बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है। अदालत ने यह भी पाया कि बलात्कार कानून ज्यादातर उन सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई और गरीब पीड़ितों के साथ न्याय नहीं करते, जो पुरुषों के शादी के झूठे वादे में आकर संबंध बनाने के झांसे फंस जाती हैं।
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