27 मई से शुरू हो रहा है ज्येष्ठ माह, ध्यान रखे इन बातों का

sadbhawnapaati
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सनातन धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग जानते होंगे इसमें हर दिन बार को लेकर महत्व बताया गया है बल्कि ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी ने किसी देवता से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा वर्ष भर में पड़ने वाले 12 माह भी किसी न किसी देवता से संबंध रखते हैं। जिस कारण मास तो खास बनता है। इसके साथ ही शास्त्रों में हर मास से जुड़ी कुछ नियम आदि वर्णित हैं। जिन्हें अपनाना हर किसी के लिए आवश्यक होता है। 27 मई से इस वर्ष ज्येष्ठ मास आरंभ हो रहा है, जो 24 जून तक चलेगा। बता दें हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास हिंदी वर्ष का तीसरा मास होता है। शास्त्रों के अनुसार इस मास में कुछ कार्य करने वर्जित होते हैं। आइए जानते हैं कौन से हैं वो कार्य |

।। चौते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल। सावन साग, भादो मही, कुवांर करेला, कार्तिक दही।
अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना। जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहीं धरै।।।

।। चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल।
कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल।
माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।।

ज्योतिष मान्यता है कि ज्येष्ठ मास में दोपहर में चलना खेलना वर्जित होता है। क्योंकि इस मास में गर्मी का प्रकोप अधिक है, सेहत के लिहाज से भी ये हानिकारक माना जाता हैै, इसलिए जितना हो सके इस मास में अधिक से अधिक शयन करना चाहिए।

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इस माह में किसी भी रूप में बेल का सेवन नहीं करना चाहिए।

संभव हो तो इस मास में लहसुन, राई तथा अन्य गर्मी पैदा करनी वाली सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए। बल्कि जितना हो सके इस मास में पानी का सेवन करना चाहिए।

साथ ही साथ इस मास में जल की पूजा भी की जानी चाहिए। ज्येष्ठ मास में जल से जुड़े दो मुख्य पर्व भी पड़ते हैं, गंगा दशहरा व निर्जला एकादशी।

इस मास में दिन में कम से कम सोना चाहिए। कहा जाता है जो इस मास में अधिक सोता है उसकी देह धीरे-धीरे रोगी होने लगती है।

खासतौर पर इस मास में बैंगन नहीं खाने चाहिए, इससे भी रोग पैदा होते हैं तथा संतान पक्ष से भी इसका सेवन अच्छा नहीं माना जाता।

ज्येष्ठा मास में पुत्र व पुत्री का विवाह संपन्न करना भी अशुभ माना जाता है।

कहा जाता है ज्येष्ठ मास में व्यक्ति को केवल एक समय भोजन करना चाहिए, इससे जातक की काया निरोगी होता है। इस संदर्भ के बारे में महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है- ‘ज्येष्ठा मूलं तु यो मासमेकभक्तेन संक्षिपेत्। ऐश्वर्यमतुलं श्रेष्ठं पुमान् स्त्री वा प्रपद्यते।

ऐसा कहा जाता है कि ज्येष्ठ मास में ही प्रभु श्रीराम व हनुमान जी की मुलाकात हुई थी। जिस कारण इस मास में इनकी पूजा अति लाभदायक मानी जाती है।

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