जानिए यमलोक के बारें में कहाँ है और कैसा नजर आता है यमराज का महल

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sadbhawnapaati
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जब किसी मनुष्य की मौत हो जाती है तो कई लोग घर में गरुड़ पुराण का पाठ कराते हैं। परंपरा है कि मरने के पश्चात् 13 दिनों तक आत्मा उसी घर में रहती है। इसलिए आत्मा को गरुड़ पुराण का पाठ सुनाया जाता है। ऐसा करने से मनुष्य को यमराज के दंड से मुक्ति प्राप्त होती है तथा सद्गति प्राप्त होती है। साथ ही इसे सुनने से अन्य व्यक्तियों को भी धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होता है। गरुड़ पुराण में मनुष्य को कर्म के मुताबिक, स्वर्ग एवं नर्क लोक मिलने का जिक्र किया गया है। जान कैसे निकलती हैं, मरने के पश्चात् आत्मा का क्या होता है, आत्मा कब और कितने वक़्त के लिए यमलोक जाती है, इन सभी प्रश्नों के उत्तर गरुड़ पुराण में प्राप्त हो जाते हैं। इस क्रम में आज हम आपको बताएंगे मृत्यु के देवता यमराज के निवास स्थान यमलोक के बारे में कुछ ऐसी बातें, जिनसे आप अंजान हैं। यहां जानिए कैसी है यमराज की नगरी…

1- गरूड़ पुराण तथा कठोपनिषद में यमलोक के बारे में बताया गया है कि ‘मृत्युलोक’ के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक बसा है। इसी लिए दक्षिण दिशा का दीया यमराज को समर्पित किया जाता है। योजन प्राचीन काल में दूरी नापने का पैमाना था। एक योजन 4 किमी के समान होता है।

2- यमराज के राजमहल का नाम ‘कालीत्री’ है तथा वे विचार भू नाम के सिंहासन पर विराजमान होते हैं। यमराज अपने राजमहल में ‘विचार-भू’ नाम के सिहासन में बैठते हैं

3- यमराज के महल में चार गेट हैं। कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न द्वार से लोगों को प्रवेश होता है। पापी लोग दक्षिण दिशा से प्रवेश करते हैं, दान-पुण्य करने वाले व्यक्तियों का प्रवेश पश्चिमी द्वार से होता है। सत्यवादी लोग तथा माता पिता व गुरुजनों की सेवा करने वाले व्यक्ति उत्तर दिशा के द्वार से यमलोक में प्रवेश करते हैं।

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4- उत्तर वाले द्वार को स्वर्ग का द्वार माना जाता है। यहां गंधर्व तथा अप्सराएं आत्मा का स्वागत करती हैं।

5- यमराज के सेवकों को यमदूत बोला जाता है। महाण्ड तथा कालपुरुष इनके दो रक्षक हैं एवं वैध्यत द्वारपाल हैं। इसके अतिरिक्त दो कुत्ते यमलोक की रक्षा करते हैं।

6- यमलोक में ही चित्रगुप्त का निवास है। चित्रगुप्त महाराज व्यक्तियों के कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त के आवास से 20 योजन दूरी पर यमराज का महल है।

7- यमराज के भवन का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा किया गया है। यमराज की सभा में कई चन्द्रवंशी तथा सूर्यवंशी राजा रहते हैं जिनके सुझाव तथा ज्ञान से यमराज प्रेत आत्माओं को कर्म के मुताबिक फल देते हैं।

8- यमलोक में पुष्पोदका नाम की नदी बहती है, इसके किनारे पर खूबसूरत छायादार वृक्ष लगे हैं। यमलोक की यात्रा के चलते आत्मा कई बार इन पेड़ों के नीचे विश्राम करती है। पितरों द्वारा किया गया तर्पण तथा पिंडदान इसी जगह पर आत्मा को प्राप्त होता है।

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