(लेखक-ओमप्रकाश मेहता)
आज देश के माहौल को देखकर पूज्य बापू के प्रिय भजन ”रघुपति राघव राजाराम“ की महत्वपूर्ण पंक्ति ”अल्ला-ईश्वर तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान“ याद आ रही है और इसी पंक्ति के माध्यम से देश की खुशहाली चाहने वाला हर शख्स आज भगवान से प्रार्थना कर रहा है, अब यह तो पता नही कि भगवान के कानों तक देशभक्तों की अरज कब पहुंचेगी लेकिन यह तय है कि आज देश में जो भी आत्मघाती साम्प्रदायिक माहौल तैयार किया जा रहा है, वह देश को कहां व किस स्थिति में ले जाएगा, इसकी भयावह कल्पना से ही सिहरन पैदा होने लगती है, फिर इस माहौल के लिए कोई एक वर्ग या संगठन दोषी नहीं है, क्योंकि इसके भागीदार दोनों प्रमुख साम्प्रदायिक वर्गों के साथ सत्ता से जुड़े कुछ तत्व भी है।
वैसे देश का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने के अन्दरूनी प्रयास तो दिनों से चल रहे थे, किंतु असामाजिक व देश विरोधी तत्वों ने इस आत्मघाती कार्य की शुरुआत के लिए भी रामनवमी जैसा पवित्र दिन चुना और रामनवमी के जुलुसों पर पथराव तथा हिंसक वारदातें की, सरकारी-गैरसरकारी सम्पत्तियों को आग के हवाले किया और इस अभियान को देशव्यापी तरीके से चलाने की कोशिश की। चूंकि हिन्दूओं की नवरात्रि और मुस्लिमों का पवित्र रमज़ान पर्व इस बार एक ही समय से साथ में आया तो इन त्यौहारों को एक साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से मनाने के बजाए, मस्जिदों पर लगे लाउड स्पीकरों को निशाना बनाया गया, जिसके जवाब में रामनवमी व हनुमान जयंती पर निकलने वाले जुलूसों पर पथराव-आगजनी का सहारा लिया गया। इस मामले में मध्यप्रदेश को खरगोन ने बदनाम किया तो उत्तरप्रदेश व देश की राजधानी भी इसी प्रक्रिया के कारण बदनाम हुए जबकि मध्यप्रदेश की मुस्लिम बाहुल राजधानी भोपाल में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुष्प वर्षा कर यहां के अल्पसंख्यक समुदाय ने पूरे देश के लिए एक सौहार्द्रपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया। देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई भी इससे अछूती नहीं रही।
देश के इस माहौल के बीच कुछ दिनों से तो ऐसा लगने लगा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हिन्दुओं को एकजुट करने की जिम्मेदारी ले ली है, संघ प्रमुख के पिछले एक सप्ताह के बयान इसके प्रमुख सबूत है, एक तरफ जहां संघ प्रमुख मोहनराव भागवत यह कह रहे है कि ”अब अपना स्वाभिमान जगाने का सही वक्त आ गया है“, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अगले पन्द्रह साल में अखण्ड भारत का भी नारा बुलंद कर दिया है, वे यह भी कह रहे है कि ”इस मुल्क पर हमलावरों को संघ के प्रबुद्ध जनों की ब्रिगेड माकूल जवाब देगी….“ अब यह जवाब कैसा व किस रूप में होगा, इसका कोई जवाब संघ प्रमुख ने नहीं दिया है। यह जरूर कहा है कि ”यह जवाब उन्हीं की भाषा में ही दिया जाएगा।“ इस तरह कुल मिलाकर संघ व उसके प्रमुख ने हिन्दूओं को एकजुट करने उनमें जोश भरने की जिम्मेदारी वहन कर ली है। संघ प्रमुख के इस उद्गार में यह बात भी किसी की समझ में नहीं आई कि वे हाथों में डंडा लेकर अहिंसा की बात कैसे करेंगे? अरे…. वैसे तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हाथों में लाठी थामकर अहिंसा की बात कही थी, तो क्या अब संघ परिवार भी इसी दृष्टि से गांधी जी के चरणचिन्हों पर चलने की तैयारी कर रहा है? यद्यपि अपने आपको बड़ा हिन्दू संगठन बताने वाली शिवसेना ने संघ प्रमुख के अखण्ड भारत सम्बंधी बयान पर अच्छी-खासी टिप्पणी कर भागवत जी से पूछा है कि उनके अखण्ड भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश आदि शामिल होंगे या नहीं? क्योंकि हमारे प्रमुख आर्यावर्त (हिंदुस्तान) में तो ये सभी देश शामिल थे, इस पर भागवत जी के जवाब की शिवसेना को प्रतीक्षा है, किंतु यह सही है कि देश में सत्तारूढ़ दल व उससे जुड़े हिन्दूवादी संगठनों ने पिछले एक पखवाड़े से एक अजीब साम्प्रदायिक माहौल खड़ा करने का प्रयास किया है, जिसके कारण मुस्लिम वर्ग भी सतर्क हो गया है और इसके मुकाबले की तैयारी शुरू कर दी है।
अब कुल मिलाकर यह साम्प्रदायिकता के अस्तित्व की जंग कहां जाकर थमेगी और इस विस्फोटक माहौल को कौन रोकेगा? यह तो अभी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है, किंतु यह तय है कि जो माहौल बनता जा रहा है या बनाने का प्रयास किया जा रहा है वह राष्ट्रहित में कतई नहीं है…. मैं तो अन्त में फिर वही कहूंगा- ”सबको सन्मति दे भगवान….!“