मध्यप्रदेश सरकार का ऑनलाइन रेंटल सिस्टम पर कोई लगाम नहीं!
सदभावना पाती
डॉ देवेंद्र मालवीय
दिल्ली। हाल ही में हुए आतंकी हमले ने देश की नींद उड़ा दी है। सुरक्षा एजेंसियाँ अलर्ट पर हैं, शहरों में चेकिंग बढ़ी है, मगर असली खतरा अब एक डिजिटल अंधे जोन से सिर उठा रहा है-जहाँ न कोई निगरानी है, न नियंत्रण। नाम है-ऑनलाइन रेंटल प्लेटफ़ॉर्म्स। मध्यप्रदेश में इन ऐप्स का कारोबार खुलेआम कानूनों को धता बताते हुए तेजी से बढ़ रहा है। Airbnb, OYO, Booking.com, GoStays, FabHotels और कई स्थानीय ऐप्स पर रोजाना सैकड़ों फ्लैट, बंगले और कमरे किराए पर दिए जा रहे हैं, बिना किसी लाइसेंस, बिना पुलिस इंटिमेशन और बिना पुख्ता पहचान सत्यापन के। ये डिजिटल ठिकाने अब न सिर्फ सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं, बल्कि सामाजिक पतन के केंद्र भी बनते जा रहे हैं।
सुविधा के नाम पर बढ़ती लापरवाही
इन प्लेटफॉर्म्स की शुरूआत यात्रियों की सुविधा के लिए हुई थी, लेकिन अब इनका गलत उपयोग तेजी से बढ़ा है। कई जगहों पर ये किराए के ठिकाने अब युगल जोड़ों की अय्याशी के अड्डे बन चुके है। यहाँ किराया कुछ क्लिक में, बुकिंग तुरंत होती है न पहचान पूछी जाती है, न कोई पुख्ता कानूनी कागज मांगा जाता है। परिणाम यह है कि हमारी संस्कृति की मर्यादाएँ और कानून की सीमाएँ, दोनों एक साथ टूट रही हैं।
दिल्ली धमाके के बाद भी सबक नहीं
दिल्ली के लालकिला क्षेत्र में कार बम विस्फोट के बाद जब देशभर में सुरक्षा अलर्ट जारी हुआ, तो सभी राज्यों में होटल, लॉज और धर्मशालाओं की जांच शुरू हो गई।मध्यप्रदेश में भी अभियान चल रहे हैं, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में आकस्मिक चेकिंग की जा रही है। लेकिन इस सबके बीच डिजिटल किराए के ठिकानों यानी ऐप के जरिए बुक होने वाले फ्लैट और बंगले जांच के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं। कानून कहता है कि कोई भी व्यक्ति अगर किसी को किराए पर ठहराता है, तो उसकी जानकारी स्थानीय थाने को देना अनिवार्य है। लेकिन Airbnb, OYO या अन्य प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से बुकिंग होने पर यह सूचना कहीं दर्ज ही नहीं होती।
»» नतीजा – आतंकियों या अपराधियों को देश में अनदेखे आश्रय स्थल आसानी से मिल सकते हैं।
पुलिस सब जानती है, मगर चुप है
कई शहरों में थानेदारों के पास पूरी जानकारी है कि कौन-कौन से इलाकों में ऐसे फ्लैट या होमस्टे चल रहे हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ मौखिक चेतावनी और “देख लेंगे” तक बात सीमित रहती है। क्यूंकि मध्यप्रदेश सरकार ने इस बाबत कोई ठोस गाइडलाइन जारी नहीं की, न ही सख्ती बरती।
इंदौरः कार्रवाई तो हुई, लेकिन क्या ये काफी है?
इंदौर पुलिस कमिश्नरेट ने भी विशेष चेकिंग अभियान चलाकर 14 होटल, हॉस्टल और मकान मालिकों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 व 233 (A) के तहत कार्रवाई की है। इन पर आरोप है कि इन्होंने अपने किरायेदारों और कामगारों की जानकारी पुलिस को नहीं दी थी। पुलिस आयुक्त संतोष कुमार सिंह ने निर्देश दिए हैं कि हर मकान मालिक, होटल संचालक और ठेकेदार भारतीय नागरिक संहिता (BNS) की धारा 163 के तहत अनिवार्य सूचना दें।
लेकिन सवाल ये है – क्या यह कार्रवाई केवल होटलों और लॉज तक सीमित रहेगी? या फिर अब समय आ गया है कि पुलिस ऑनलाइन रेंटल ठिकानों को भी अपनी निगरानी सूची में शामिल करे ?
खुलेआम नियमों का उल्लंघन
मध्यप्रदेश में पर्यटन और गृह विभाग के पास होमस्टे और गेस्ट हाउस संचालन के लिए दर्जनों नियम हैं। परंतु डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए चल रहे हजारों किराए के ठिकाने इन नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। न लाइसेंस, न फायर एनओसी, न जीएसटी पंजीयन, न ही पुलिस सत्यापन। इन सबका परिणाम यह है कि प्रदेश के हर बड़े शहर में शॉर्ट टर्म रेंटल्स का अनियंत्रित जाल फैल चुका है। जहाँ कोई भी व्यक्ति बिना अनुमति और बिना जवाबदेही अपनी संपत्ति को अस्थायी ठहराव में बदल सकता है।
समाज और सुरक्षा दोनों पर असर
इस डिजिटल सुविधा ने जहां यात्रियों को आराम दिया है, वहीं अपराधियों और असामाजिक तत्वों को भी अनाम रहने की आजादी दे दी है। कई बार इन ठिकानों का उपयोग मादक पदार्थ सेवन, अवैध संबंध, ब्लैकमेलिंग और आपराधिक षड्यंत्रों के लिए किया गया है।
पुलिस की अपील- हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि अपने किराएदारों और कामगारों की जानकारी थाने में दें। सुरक्षा तभी सुनिश्चित होगी जब सूचना पारदर्शी होगी।
– संतोष कुमार सिंह, पुलिस आयुक्त, इंदौर
दिल्ली धमाके जैसी घटनाएँ हमें बार-बार चेतावनी देती हैं कि सुरक्षा की चूक हमेशा सूचना की कमी से शुरू होती है। दुर्भाग्य यह है कि पुलिस हर बार “जागृत” होती है, कुछ दिन अभियान चलता है, फिर सब शांत हो जाता है। प्रदेश की राजधानी से लेकर हर जिले तक अब यह जरूरी हो गया है कि डिजिटल रेंटल ठिकानों पर सख्त निगरानी रखी जाए। कानून सिर्फ कागजों पर नहीं, जमीनी स्तर पर लागू हो। क्योंकि अगर आज यह खुला खेल यूं ही चलता रहा, तो कल किसी आतंकी को पनाह देने वाला ठिकाना शायद हमारे ही मोहल्ले का कोई “रेंटल फ्लैट” हो सकता है।

