संसद में महंगाई के सवाल पर विपक्ष का जमकर हंगामा और धरना प्रदर्शन

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New Delhi: A view of the Rajya Sabha during the inaugural day of the Winter Session, in New Delhi on Friday. PTI Photo/TV Grab(PTI12_15_2017_000025B)

चर्चा कराने के नाम पर सरकार खामोश

देश। एक मशहूर कहावत है, आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया, नतीजा ठन…ठन…गोपाल। बढ़ती महंगाई के दौर में देश के निम्न, मध्य वर्ग की हालत कुछ ऐसी ही हो रही है। विपक्ष ने इसको लेकर शुक्रवार को फिर संसद में हंगामा, धरना-प्रदर्शन किया और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने नियम-267 के तहत चर्चा कराने की मांग की। कोरोना महामारी के बाद से बाजार संभलने के लिए वस्तुओं, सेवाओं के तेजी से दाम बढ़ा रहा है। इसके समानांतर केंद्र सरकार ने भी वस्तुओं, सेवाओं के दाम में बढ़ोत्तरी को हरी झंडी दे दी है। नतीजतन मार्च 2022 से जुलाई 2022 तक यह पांचवां महीना है, जब खुदरा महंगाई दर छह फीसदी के ऊपर चल रही है। इस समय यह 7.8 फीसदी के आस-पास बताई जा रही है।

अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 7.79, मई में 7.97 और जून में 7.75 थी। जून के महीने में मुद्रास्फीति दर 7.04 तो जून में 7.01 फीसदी थी। विपक्ष के नेता का आरोप है कि देश की जनता एक तरफ महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है। लोगों के पास काम-धंधा नहीं है और दूसरी तरफ देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है। सरकार ने भी रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल के दाम बेतहाशा बढ़ा रखे हैं। ऊपर से दाल, चावल, दही, मुरमुरा आदि जैसे रोजमर्रा की खाने-पीने की चीजों को भी जीएसटी के दायरे में लाकर जनता की मुसीबत बढ़ाई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश तो तंज कसते हुए कहते हैं कमरतोड़ महंगाई है, आगे और लड़ाई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसके लिए केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है।

क्या कहते हैं अर्थशास्त्री?
प्रॉक्टर एंड गैंबेल के पूर्व सीईओ और प्रबंध निदेशक (स्ट्रैटेजिक) गुरुचरण दास के मुताबिक इस समय महंगाई है। जनता महंगाई के कारण थोड़ी मुश्किल दौर से गुजर रही है। रसोई गैस सिलेंडर के दाम 1000 रुपये से अधिक हैं। हालांकि गुरुचरण दास इसकी वजहों में कोरोना महामारी और अंतरराष्ट्रीय स्थितियों को प्रमुख मानते हैं। लेकिन उनका कहना है कि ऐसे समय में केंद्र सरकार और इसके रणनीतिकारों को दूध, दही, आटा, दाल, चावल मुरमुरा जैसी सामान्य जरूरत की वस्तुओं पर जीएसटी लगाने से बचना चाहिए था। यह ठीक नहीं हुआ। देश में बढ़ रही महंगाई को लेकर देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने भी ट्वीट के माध्यम से अपनी राय रखी है।

बसु ने कहा कि अमेरिका में महंगाई के बढ़ते स्तर को कुछ लोग भारत के परिप्रेक्ष्य में अच्छा मान रहे थे, लेकिन हुआ इसका विपरीत। वह कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है और नतीजन भारत ने महंगाई का आयात कर लिया है। दरअसल यह कौशिक बसु का एक तंज भी है। जहां वह भारतीय रणनीतिकारों की नीति पर कुछ कह रहे हैं। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से ऐसे विषय पर जब भी चर्चा कीजिए, उनका एक बयान जरूर रहता है। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में इसके रणनीतिकारों के पास भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत संरचना की ढंग से समझ ही नहीं है। अर्थशास्त्री सारथी आचार्य का भी कहना है कि महंगाई बढ़ रही है। महंगाई का लगातार बने रहना ठीक नहीं है।

क्या है महंगाई का अर्थशास्त्र?
भारत में मुद्रास्फीति की दर को छह फीसदी से ऊपर जाने को अच्छा नहीं माना जाता। यह जनता पर महंगाई के बोझ के तौर पर लिया जाता है। अर्थशास्त्र में महंगाई की सामान्य अवधारणा यही है कि जब सामान्य मूल बढ़ते हैं, तब मुद्रा की हर इकाई की क्रय शक्ति में कमी आती है। इस तरह से मुद्रास्फीति की ऊंची दर जनता के लिए नुकसानदेह है और निर्धनता (गरीबी) फैलाती है। इसका निवेशक, बचतकर्ता, किसान, ऋण देने और लेने वाले पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। महंगाई भुगतान संतुलन, सार्वजनिक ऋण, उत्पादन समेत सभी पर असर डालती है।

भारत में मार्च 2022 से अचानक क्यों बढ़ी महंगाई?
भारतीय रिजर्व बैंक ने कोरोना महामारी के दौर में अनुपात से अधिक नोटों (करेंसी) की छपाई की। ताकि देश को आवश्यकता पड़ने और ऋण लेने में दिक्कतों का सामना न करना पड़े। ऐसा माना जाता है कि करेंसी की अधिक छपाई महंगाई बढ़ाने का प्रमुख कारण होती है।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान देश में कामधंधा, औद्योगिक उत्पादन, लोगों की जरूरत और खरीदारी के ट्रेंड पर असर पड़ा। इसके चलते देश में बेरोजगारी की समस्या गंभीर होती चली गई। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में बेरोजगारों की संख्या 20 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है। घरेलू, अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने नए रोजगार सृजन या भर्ती की प्रक्रिया को अभी बहुत सीमित कर रखा है।
अमेरिका समेत दुनिया के केंद्रीय रिजर्व बैंक ने आर्थिक सुरक्षा नीति को आगे रखकर अपने ब्याजदरों में बदलाव किए। इसके कारण अंतरराष्ट्रीय निवेशकों ने भारतीय बाजार से अपना धन निकालना शुरू किया। नए निवेश की संभावना, लोगों के बैंक और वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेने की प्रवृत्ति कमजोर हुई।
कोरोना महामारी के बाद केंद्र सरकार ने सामान्य जनता के लिए सहूलियतें देने की बजाय रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल समेत अन्य में बढ़ोत्तरी को जारी रखा। जीएसटी की नई दरों में खाने पीने की सामान्य चीजों को भी शामिल किया गया और पुरानी जीएसटी की दरों को संशोधित करके बढ़ाया गया।
कोरोना महामारी की शुरुआत से चाय, खाने के तेल, अनाज समेत अन्य वस्तुओं के दाम में 20-40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ रहा है। इसके कारण अमेरिका में महंगाई दर ने 9.1 फीसदी, ब्रिटेन में 9.1 फीसदी, यूरोप में 7.6 फीसदी के आंकड़े को छुआ।
भारतीय मुद्रा की कमजोरी ने इसे और गंभीर बना दिया। वर्तमान में 1 अमेरिकी डॉलर की कीमत भारत के 80 रुपये से भी अधिक है।

रिजर्व बैंक महंगाई रोकने के लिए क्या कर रहा है उपाय?
भारतीय रिजर्व बैंक ने बाजार में निवेशकों को रोकने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की है। कुछ अर्थशास्त्री इसे अच्छा कदम मान रहे हैं। हालांकि गुरुचरण दास का कहना है कि ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी होने के बाद लोग वित्तीय संस्थाओं से कम ऋण लेंगे। दूसरे जिन्होंने पहले ऋण ले रखा है उन पर ब्याज का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
रिजर्व बैंक दूसरे उपाय के तौर पर 100 अरब डॉलर बेचने का निर्णय लेने जा रहा है। ऐसा करने के बाद अगले तीन-चार महीने तक डॉलर के मुकाबले रुपये के स्तर को मजबूती देने में कुछ मदद मिलेगी। इसके असर से घरेलू महंगाई को थोड़ा थामा जा सकेगा।

महंगाई रोकने के लिए कौन सा भरोसा दे रही है सरकार और भाजपा?
महंगाई के सवाल पर केंद्र सरकार के मंत्री और अधिकारी अभी कुछ नहीं बोलना चाहते। आटा, दाल, चावल, दही, दूध आदि पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाए जाने के बाद एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का बयान आया था। उन्होंने कहा कि इन वस्तुओं पर पहले भी जीएसटी लगता था। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बाद में 14 ट्वीट करके इस मुद्दे पर सफाई देने की कोशिश की। निर्मला सीतारमण ने कहा कि पहले सामान्य जरूरत की वस्तुओं पर वैट आदि के माध्यम से कर लिया जाता था। हालांकि उन्होंने कहा कि आटा, दाल जैसे 25 किग्रा तक के पैकेट पर जीएसटी नहीं लगेगी। लेकिन वित्त मंत्री के इस बयान से तमाम अर्थशास्त्री इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि इससे आम जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली है। निर्मला के समानांतर वित्त मंत्रालय के अधिकारी दबी जुबान से मानते हैं कि देश में महंगाई है, लेकिन सब कुछ भारत के हाथ में नहीं है। एक संयुक्त सचिव के मुताबिक उदारीकरण के दौर में भारत अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है। इसका असर तो आएगा।

दूसरी तरफ अर्थशास्त्र के मामले में समझ रखने वाले भाजपा के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल इस मुद्दे पर ठीक से जवाब नहीं दे पा रहे हैं। जीएसटी की दरों को लेकर वह कहते हैं कि वित्त मंत्री ने इस मामले में जवाब दे दिया है। वह इस जवाब से संतुष्ट हैं। महंगाई के सवाल पर गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि वह इसका एक बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय स्थितियों, कोरोना महामारी को मानते हैं। गोपालकृष्ण का कहना है कि महंगाई को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक कई प्रयास कर रहा है। ऐसा लग रहा है कि अगले कुछ महीनों में महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा।

क्या जल्द मिल जाएगी महंगाई से निजात?
भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। अर्थशास्त्री एसके सिंह को ऐसी कोई उम्मीद फिलहाल नहीं दिखाई दे रही है। सिंह कहते हैं कि घरेलू स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा संकेत कम दिखाई दे रहा है। गुरुचरण दास कहते हैं कि केंद्र सरकार उपाय कर रही है, उम्मीद है कि जल्द महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा। हालांकि इसके लिए डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति, कच्चे तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय कारक महत्वपूर्ण हैं। यूरोप से लौटकर आए आरके छाबड़ा को भारतीय कारकों का अध्ययन करने के बाद लगता है कि महंगाई पर गंभीरता से काबू पाने की कोशिशों को लागू करने के बाद इसका असर दिखाई देने में दो-तीन महीने लग सकते हैं।

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