सवाल : अब कहाँ जाएँ हम….? 

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कश्मीरी पंडित विवाद: चुनाव के इरादे ध्वस्त….?
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता)
पूरा देश आज विभिन्न विवादों को लेकर उद्वेलित है और सरकार पर काबिज दिग्गज मौन साधे हुए है, आज एक ओर जहां कश्मीरी पंडितों व गैर कश्मीरियों की लगातार हत्याओं से जम्मू-कश्मीर अशांत है, वही विभिन्न मसलों को लेकर देश में फैल रहे साम्प्रदायिक उन्माद से देश का आम नागरिक डरा-सहमा है और जिसे सामने आकर इन विध्वंसक गतिविधियों को रोकना चाहिए, वे सरकार में काबिज लोग हाथ पर हाथ रखे बैठे है, उन्हें सिर्फ इस बात की चिंता है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर ऐसी परिस्थितियों में वे कब्जा कैसे कर पाएंगे?
उन्हें सिर्फ सियासत से मतलब है, आम देशवासी को दुख-दर्द या देश की परेशानी से कोई सरोकार नहीं, इस स्थिति को लेकर सिर्फ देश चिंतित है, इसे चलाने वाले नहीं?
हमारी धरती के स्वर्ग जम्मू-कश्मीर की स्थिति आज यह है कि केंद्र के अधीन और उपराज्यपाल की सरपरस्ती में पल रहे इस राज्य में स्थिति दिनों-दिन भयावह होती जा रही है, एक ओर जहां खौफजदा कश्मीरी पंडितों को अपनी सुरक्षा को लेकर पहली बार सड़कों पर उतरना पड़ रहा है और सरकारी नौकरी से सामूहिक इस्तीफा देना पड़ रहा है, वहीं इस राज्य का आम नागरिक भी अपनी दैनंदिनी परेशानियों से जूझ रहा है, पूरे देश में पर्यटन उद्योग से सर्वाधिक आय वाला राज्य आज एक-एक पैसे को तरस रहा है, आम कश्मीरी के भी सभी आय के साधन पिछले दो साल से खत्म हो गए है, एक ओर कश्मीर के ये हाल है, दूसरी और केन्द्र सत्ता स्थापित करने के सपनों में खोई है।
इसी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद-370 खत्म कर इस राज्य का विशेष दर्जा खत्म किया था और यहां के नागरिकों को रंगीन सपने दिखाने  का प्रयास किया था, वे सपने आज बदरंग होकर कश्मीरियों के सामने आ रहे हैं, पिछले तीन दशक से अपनी जन्मभूमि से निष्कासित कश्मीरी पण्डितों को केन्द्र में सत्तारूढ़ इसी राजनीतिक दल ने अपने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में उनकी खुशहाली के सतरंगी सपने दिखाये थे, किंतु इस दल के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के आठ साल बाद भी कश्मीरी पण्डित अपनी जन्मभूमि पर बसने के लिए तरस रहे है, यहां तक तो ठीक है अब तो उनकी हत्याएं तक की जाने लगी है, पिछले दो दिन में दो हत्याएं इसका ज्वलंत व ताजा उदाहरण है और जब ये कश्मीरी पण्डित अपनी जीवन रक्षा की मांग उठाने के लिए एकत्र होते है तो पुलिस उन पर लाठियां भांजती है, अब इन कश्मीरी पंडितों का सरकार से एक ही सवाल है कि ”आखिर वे कहां जाए?“
अब अपनी नौकरियों से सामूहिक इस्तीफे दे देने के बाद इन कश्मीरी पंडितों के सामने अपने जीवन यापन का भी सवाल खड़ा हो गया है, चूंकि दो दिन पहले एक कश्मीरी पण्डित युवक राहुल भट्ट की उसके कार्यालय में उसका नाम पूछकर हत्या की गई थी, इसलिए डरे-सहमें कश्मीरी पंडितों ने अपनी नौकरियों से सामूहिक इस्तीफे दे दिए और पहली बार ऐसा व्यापक प्रदर्शन किया, जिस पर पुलिस ने लाठियां बरसाई, जिसमें कई कश्मीरी पण्डित घायल हुए।
अब स्थिति यह है कि एक ओर जहां केन्द्र में सत्तारूढ़ दल जम्मू कश्मीर विधानसभा के यथाशीघ्र चुनाव करवा कर अपनी सत्ता कायम करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर आम कश्मीरी केन्द्र सरकार व सत्ताधारी दल से काफी नाराज है, अभी तक अनुच्छेद 370 खत्म करने की पीड़ा से वह उभर नहीं पाया है वहीं कश्मीर में आर्थिक संकट व जीवन यापन की परेशानी से वह व्यथित है।
जहां तक इस राज्य की राजनीतिक स्थिति का सवाल है, अब धीरे-धीरे वहां के स्थानीय राजनीतिक दल आपसी मतभेदों के बावजूद केन्द्र सरकार व भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे है, अब केन्द्र के सामने जहां इस राज्य में चुनाव कराने की संवैधानिक मजबूरी है, वहीं यहां राजनीतिक स्थिति भाजपा के अनुकूल बन नहीं पा रही है, इसी अहम दुविधा में मोदी सरकार है।
यह तो हुई एक राज्य विशेष की बात। अब यदि हम देश के मौजूदा माहौल पर गौर करें, तो उसे देखकर भी हर किसी को भारी चिंता होती है, देश का साम्प्रदायिक माहौल दिनों दिन विभिन्न मसलों को लेकर विस्फोटक होता जा रहा है, फिर वह चाहे मंदिर-मस्जिद का मामला हो या अन्य सामाजिक व आस्था से जुड़े मसलों का।
इसीलिए आज देश का हर जागरूक नागरिक चिंतित है और सरकार मौन। अब ऐसी स्थिति के लिए क्या कहा जाए, किसे दोष दिया जाए व किसे दण्डित करने के बारे में सोचा जाए?
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