भाई अपनी बहन को भेंट स्वरूप आशीर्वाद देता है। सहस्रों वर्षों से चले आ रहे इस रक्षाबंधन के त्यौहार के पीछे का इतिहास, शास्त्र, रक्षाबंधन मनाने की पद्धति और इस त्यौहार का महत्व बताया गया है।
रक्षाबंधन का यह पावन पर्व 11 और 12 अगस्त को मनाया जा रहा है। श्रावण पूर्णिमा के दिन पड़ने वाला रक्षाबंधन का यह त्योहार इस बार भद्रा का साया लेकर आया है। इस वजह से कुछ लोग राखी का त्योहार 12 अगस्त को मना रहे हैं। आइए जानते हैं रक्षाबंधन का इतिहास और इसका आध्यात्मिक महत्व।
रक्षाबंधन का इतिहास
पाताल में रहने वाले राजा बलि के हाथ में लक्ष्मी जी ने राखी बांध कर उनको अपना भाई बनाया और नारायण जी को मुक्त किया। वह दिन सावन पूर्णिमा का था। 12 साल इंद्र और दानवों के बीच युद्ध चला।
हमारे 12 वर्ष उनके 12 दिन होते हैं। इंद्र थक गए थे और दैत्य शक्तिशाली हो रहे थे। इंद्र उस युद्ध से खुद के प्राण बचाकर भाग जाने की तैयारी में थे।
इंद्र की इस व्यथा को सुनकर इंद्राणी गुरु बृहस्पति के शरण में गई। गुरु बृहस्पति ने ध्यान लगाकर इंद्राणी को बताया कि यदि आप पतिव्रत बल का प्रयोग करके संकल्प लें कि मेरे पति सुरक्षित रहें और इंद्र के दाहिने कलाई पर एक धागा बांध दें, तो इंद्र युद्ध जीत जाएंगे।”
इंद्राणी ने ऐसा ही किया। इन्द्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हुआ। भविष्य पुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था। राखी की एक नई रीति इतिहास काल से आरंभ हुई ।
भावनात्मक महत्व
रक्षाबंधन पर बहन भाई के हाथ में बांधती है। रक्षा सूत्र बांधने के पीछे का उद्देश्य होता है कि भाई की उन्नति हो और भाई बहन का रक्षण करें। आज के परिपेक्ष्य में बहन द्वारा भाई को राखी बांधने से अधिक महत्वपूर्ण यह हो गया है कि युवा, युवती से राखी बंधवा लेता उस कारण युवाओं का युवती के प्रति और स्त्रियों की ओर देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है।
इस विधि से बांधें राखी
वैदिक मान्यताओं के अनुसार चावल, सोना और सफेद राई पोटली में एक साथ बांधने पर राखी बनती है, वह रेशमी धागे से बांधी जाती है। राखी बांधते समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
अर्थ : महाबली और दानवीर ऐसे बलि राजा जिस रक्षासूत्र से बांधे गए उस रक्षा सूत्र से मैं आपको भी बांधती हूँ, हे राखी आप रक्षा करें।