इस वर्ष यह पर्व 12 नवंबर, दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अपना यहां त्यागकर श्रीकृष्ण के पास क्षमा मांगने आए। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। । गाय को हमारी संस्कृति में पवित्र माना जाता है। इसके पीछे बहुत सी किवदंतियां हैं। श्रीमद्भागवत में भी इसका वर्णन है, उसमे लिखा है कि, जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें कामधेनु निकली। पवित्र होने की वजह से इसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया। माना जाता है कि कामधेनु से ही अन्य गायों की उत्पत्ति हुई।
श्रीमद्भागवत में इस बात का भी वर्णन है कि भगवान श्रीकृष्ण भी गायों की सेवा करते थे। श्रीकृष्ण रोज सुबह गायों की पूजा करते थे और ब्राह्मणों को गौदान करते थे। महाभारत में बताया गया है कि गाय के गोबर और मूत्र में देवी लक्ष्मी का निवास है। इसलिए इन दोनों चीजों का उपयोग शुभ काम में किया जाता है।
क्यों मानते है गोपाष्टमी, जानें महत्व
गोपाष्टमी का ये पर्व गौधन से जुड़ा है। भारत में इस पर्व का अपना ही महत्व है। गाय सनातन धर्म की आत्मा मानी जाती है। हिन्दू धर्म में गाय का महत्व होने के पीछे एक कारण ये भी है कि गाय को दिवयगुणों का स्वामी कहा गया है। उनमें की देवी देवता का निवास माना गया है। पौराणिक ग्रंथों में कामधेनु का जिक्र भी मिलता है। आइस मान्यता है कि गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले लोगों को सुख समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।
पूजा विधि
गोपाष्टमी को प्रातः उठकर गायों को स्नान कराएं। गंध-पुष्प आदि से गायों की पूजा करें और ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका सम्मान करें।
गायों को सजाएं, भोजन कराएं तथा उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाएं।
शाम को जब गायें वापस आएं तो उनका पंचोपचार पूजन करके कुछ खाने को दें।
अंत में गौमाता के चरणों की मिट्टी को मस्तक पर लगाएं। ऐसा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।