Religious News – महाशिवरात्रि विशेष: शिवत्व की करें आंतरिक साधना- श्री आशुतोष महाराज 

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Religious News. महाशिवरात्रि- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की अंधकारमयी रात! इस माह यह महारात्रि फिर से आएगी। मनीषी बताते हैं कि यह रात साधारण नहीं, विशेषातिविशेष है। यही कारण है कि हर साल इस बेला पर भारतीय जनता में भक्ति-भावनाओं का ज्वार उमड़ उठता है। अर्चना-आराधना के स्वर गुंजायमान होते हैं। शिवालय धूप-नैवेद्य से सुगंधित हो जाते हैं। शिव उपासना का यह ढंग- ‘कौलाचार’ कहलाता है। यह बहिर्पूजा होती है। इसमें बाहरी साधनों से महादेव की बाहरी मूरत या लिंग का बाहरी पूजन किया जाता है। महापुरुषों के अनुसार मात्र यह पूजन करना पर्याप्त नहीं है। यह तो उपासना की प्रथम सीढ़ी है। भगवान शिव का वास्तविक पूजन तो अंतर्जगत में सम्पन्न होता है, जिसे शैव ग्रन्थों में ‘समयाचार’ कहा जाता है। इसमें ‘आत्मा (समय)’ ‘आचार’ अर्थात्‌ आराधना करती है। यह आराधना भीतर सहस्रदल कमल में विराजमान सदाशिव की पारलौकिक साधना से होती है।
वास्तव में, महाशिवरात्रि का पर्व हमें हर वर्ष इसी ‘आंतरिक पूजन’ की प्रेरणा देने आता है। महाशिवरात्रि है ही हमारे अंतर्जगत का आह्वान! इसका अमावस्या से एक रात पूर्व निश्चित होना कोई साधारण संयोग नहीं है। अमावस्या का सन्धि विच्छेद करो- ‘अमा+वस्या’ अर्थात्‌ एक साथ वास करना। इस अंधकारमय रात्रि की यह विशेषता है कि इसमें सूर्य और चन्द्र, एक दूसरे में वास करते हैं। यह अंतःस्थित शिव और जीव के मिलन की प्रतीक है। इसलिए शिवरात्रि संकेत देती है कि हम भी अपने भीतरी शिवत्व में वास करें। हमारी आत्मा उससे एकत्व स्थापित करे।
प्रश्न है कि अपने भीतर स्थित शिवत्व का साक्षात्कार किस प्रकार किया जाए! इसकी एक मात्र युक्त है- ब्रह्मज्ञान! ब्रह्मज्ञान प्रदान करना केवल एक पूर्ण गुरु के सामर्थ्य में ही है। एक तत्त्वदर्शी सद्गुरु जब ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं, तो हमें अपने अंतर्जगत में भगवान शिव के ज्योतिर्मय स्वरूप का साक्षात दर्शन प्राप्त होता है। दरअसल, ब्रह्मज्ञान द्वारा न केवल शिव का प्रकाश-तत्त्व प्रकट होता है, बल्कि उसका दर्शन करने के लिए साधक का ‘ज्ञाननेत्र’ भी जागृत हो जाता है। ‘ज्ञाननेत्र’ को आप ‘शिवनेत्र’, ‘तृतीय नेत्र’, ‘तीसरी आँख’, ‘दिव्य दृष्टि’ आदि किसी भी नाम से सम्बोधित कर सकते हैं। यह ज्ञाननेत्र भगवान शिव के मस्तक पर स्थित तीसरे नेत्र की तरह हर साधक के माथे पर होता है, लेकिन सूक्ष्म रूप में। ब्रह्मज्ञान द्वारा इस नेत्र के खुलते ही भगवान शिव का प्रत्यक्ष दर्शन भीतर प्राप्त होता है। महादेव के ‘ललाटाक्ष:’, ‘भालनेत्र:’, ‘त्रयम्बक:’ आदि नाम भी हमें ब्रह्मज्ञान द्वारा इसी ज्ञाननेत्र को प्राप्त करने का संदेश देते हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई। आप ‘शवत्व’ नहीं, ‘शिवत्व’ की ओर यात्रा करें- यही हमारी शुभकामना है।
(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)
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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।