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सहजयोग एक अभिनव आविष्कार

वास्तविक जो चीज स्थित (मौजूद) है, जो है ही, उसका आविष्कार कैसे होता है, जैसे कि कोलंबस हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था, तब क्या हिंदुस्तान नहीं था, गर नहीं होता तो खोज किस चीज की कर रहा था, सहजयोग तो है ही , पहले से ही है, उसका पता सिर्फ अभी लगा है, सहजयोग ये परम तत्व का अपना तरीका है, ये निसर्ग का अपना एक अनूठा तरीका है, यही एक ही मान है जिसे मानव जाति को उत्क्रांति से उस आयाम में पहुंचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, जिसे मानव उस चेतना से परिचित हो जाये, उस चेतना से आत्मसात हो जाये जिसके सहारे ये सारा संसार, सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी चल रहा है।

धर्म की खोज में मनुष्य परलोक तक ही पहुंच पाया है, अभी तक परम तक नहीं पहुँचा है और जो परम तक पहुँचे भी थे वो परम को नीचे नहीं ला सके। जब कुण्डलिनी सुषुम्ना से उठेगी तभी आप पार हो सकते हैं लेकिन इसके लिए परमात्मा ने न जाने क्यों एक बड़ी जबरदस्त Condition ( कंडीशन) लगा दी है, एक बड़ी भारी अटकल है उसमें जो देना ही पड़ेगा, वो ये है कि कुण्डलिनी सुषुम्ना पे तभी आयेगी जब परमात्मा का असीम प्रेम उस आदमी में उतर पड़ेगा, जब तक वो प्रेम मनुष्य में उतरेगा नहीं तब तक कुण्डलिनी उठने वाली नहीं है चाहे आप कुछ भी करें, वो नाराज हो सकती है, गुस्सा हो सकती है लेकिन कुण्डलिनी कभी भी नहीं उठ सकती है जब तक वो असीम प्रेम, सुषुम्ना के अंदर जगह बनी हुई है, उसकी जगह बनी हुई है हमारे नाभि चक्र और अनहद चक्र के बीच में एक बड़ी सी जगह बनी हुई है, जब तक उसके अंदर ये प्रेम उतरेगा नहीं तब तक सुषुम्ना से ये प्रवाह उठने वाला नहीं श्री माताजी निर्मला देवी 01 जून 1972 के प्रवचन से साभार इसका अनुभव पाने के लिए www.sahajayoga.org.in के माध्यम से सुषुम्ना नाड़ी में देख सकते हैं।

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