बूंद-बूंद सहेजो
जीवन का आधार है जल
जल बिन कल का अर्थ नहीं।
जल बिन सूखी फसलों पर
वर्षा का कोई अर्थ नहीं।।
ख़ूब बहाते पानी हम
फिर त्राहि-त्राहि का अर्थ नहीं।
कुँए, ताल, नदी को भूले
अब मटके का भी कोई अर्थ नहीं।।
बिन पानी के खुशहाली का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
बूंद-बूंद को नहीं सहेजा तो
सागर का भी कोई अर्थ नहीं।।
– डॉ. दिलीप वागेला, इंदौर