समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम बहस, सीजेआई ने कहा कि मैं इंचार्ज हूं, मैं डिसाइड करूंगा

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sadbhawnapaati
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शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए – केंद्र
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की। इसे  बेहद मौलिक मुद्दा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च को इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजा था।

इस दौरान वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि समानता के अधिकार तहत हमें विवाह को मान्यता मिलनी चाहिए, क्योंकि सेक्स ओरिएंटेशन सिर्फ महिला-पुरुष के बीच नहीं, बल्कि समान लिंग के बीच भी होता है। समलैंगिक समूहों की ओर से वकील रोहतगी ने कहा कि हमें सम्मान से जीने का अधिकार है और यह अधिकार संविधान ने दिया है। हमें विवाह करने का अधिकार है और हमें राज्य सरकार से विवाह को मान्यता और अधिकार मिले। समलैंगिक विवाह पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सब कुछ नहीं तय कर सकते।

बता दें कि इसके पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया था। प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका का उल्लेख करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के प्रतिवेदन का संज्ञान लिया।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं ‘‘शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए। केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाहों की कानूनी वैधता ‘पर्सनल लॉ और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी।
इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं। दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने के उनके अधिकार के क्रियान्वयन और विशेष विवाह कानून के तहत उनके विवाह के पंजीकरण के लिए संबंधित पदाधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर न्यायालय ने पिछले साल 25 नवंबर को केंद्र से अपना जवाब देने को कहा था।

सीजेआई और सॉलिसिटर जनरल के बीच हुई तीखी नोकझोंक

समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र में ठन गई। जब संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की, तब केंद्र ने आपत्ति जाहिर की हैं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वे याचिकाओं का दायरा समझना चाहते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले याचिकाकर्ता केंद्र के प्रिलिमनरी सबमिशन का जवाब दें। सीजेआई ने कहा कि मैं इंचार्ज हूं, मैं डिसाइड करूंगा। उन्होंने कहा कि मैं किसी को यह बताने नहीं दूंगा कि इस अदालत की कार्यवाही कैसे चलनी चाहिए। इस पर एसजी ने कहा कि फिर हमें यह सोचने दीजिए कि सरकार को इस सुनवाई में हिस्सा लेना चाहिए भी या नहीं। जस्टिस एसके कौल ने कहा कि सरकार का यह कहना कि वह सुनवाई में हिस्सा लेगी या नहीं, अच्छा नहीं लगता। यह बेहद अहम मामला है। इतनी बहस के बाद सुनवाई शुरू हुई।

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"दैनिक सदभावना पाती" (Dainik Sadbhawna Paati) (भारत सरकार के समाचार पत्रों के पंजीयक – RNI में पंजीकृत, Reg. No. 2013/54381) "दैनिक सदभावना पाती" सिर्फ एक समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज है। वर्ष 2013 से हम सत्य, निष्पक्षता और निर्भीक पत्रकारिता के सिद्धांतों पर चलते हुए प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण खबरें आप तक पहुंचा रहे हैं। हम क्यों अलग हैं? बिना किसी दबाव या पूर्वाग्रह के, हम सत्य की खोज करके शासन-प्रशासन में व्याप्त गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को उजागर करते है, हर वर्ग की समस्याओं को सरकार और प्रशासन तक पहुंचाना, समाज में जागरूकता और सदभावना को बढ़ावा देना हमारा ध्येय है। हम "प्राणियों में सदभावना हो" के सिद्धांत पर चलते हुए, समाज में सच्चाई और जागरूकता का प्रकाश फैलाने के लिए संकल्पित हैं।