इंटरव्यूअर: वीरेंद्र भदौरिया
इंटरव्यू लेने वाले: सुशील सुरेखा, संस्थापक सदस्य, इंदौर कंज्यूमर प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूटर एसोसिएशन
इंदौर, भारत का सबसे स्वच्छ शहर, जो सात बार लगातार यह खिताब जीत चुका है, अपनी आर्थिक और सांस्कृतिक धमक के लिए जाना जाता है। सद्भावना पाती चैनल के लिए वीरेंद्र भदौरिया के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, इंदौर के व्यापारिक जगत की चर्चित हस्ती श्री सुशील सुरेखा अपने जीवन, व्यापार, और समाज सेवा के अनुभव साझा करते हैं। 86 वर्ष की आयु में भी उनकी ऊर्जा और समर्पण प्रेरणादायक है। इंदौर कंज्यूमर प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूटर एसोसिएशन के 25 वर्षों तक अध्यक्ष, अहिल्या चैंबर ऑफ कॉमर्स के संस्थापक सदस्य, और बीएम नारायण एंड कंपनी के नेतृत्वकर्ता के रूप में उनकी यात्रा अनुकरणीय है।
वीरेंद्र भदौरिया (वीबी): नमस्कार, आदरणीय सुशील सुरेखा जी! सद्भावना पाती चैनल और इसके दर्शकों की ओर से आपका हार्दिक स्वागत। इंदौर, जिसे मिनी मुंबई कहा जाता है, अपनी स्वच्छता और व्यापारिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है। आप लंबे समय से इंदौर के व्यापारिक जगत की धुरी रहे हैं। इंदौर कंज्यूमर प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूटर एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य और 25 वर्षों तक अध्यक्ष, केमिकल ट्रेडर्स एसोसिएशन के संस्थापक, और अहिल्या चैंबर ऑफ कॉमर्स के सह-संस्थापक के रूप में आपकी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। साथ ही, बीएम नारायण एंड कंपनी, जो 1942 से टाटा केमिकल्स की प्रमुख एजेंसी है, में 1965 से आपका योगदान है। कृपया हमें अपनी प्रारंभिक यात्रा के बारे में बताएं। आपका जन्म और बचपन कहां बीता, और इंदौर ने आपको कैसे आकर्षित किया?
सुशील सुरेखा (एसएस): नमस्कार, वीरेंद्र जी, और चैनल के दर्शकों को मेरा सादर नमस्कार। मैं मध्य प्रदेश के जावरा का मूल निवासी हूं, जहां मेरा जन्म हुआ। मेरा अधिकांश जीवन इंदौर में ही बीता, सिवाय पांच-छह वर्षों के, जब मैं कोलकाता में रहा। मेरी पढ़ाई-लिखाई इंदौर में ही हुई। इंदौर की माटी में कुछ ऐसा आकर्षण है कि यह मुझे वापस खींच लाई। कोलकाता में जूट टेक्नोलॉजी सीखने का प्रयास किया, लेकिन वहां का वातावरण मुझे रास नहीं आया। अंग्रेजों के समय का कर्मचारियों के प्रति अमानवीय व्यवहार मुझे स्वीकार्य नहीं था, इसलिए मैं इंदौर लौट आया और अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गया।
वीबी: आपने बताया था कि आपकी पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई घर पर हुई, जो आश्चर्यजनक है। फिर छठी कक्षा से औपचारिक शिक्षा शुरू की। इस प्रारंभिक शिक्षा में किन व्यक्तित्वों ने आपका मार्गदर्शन किया?
एसएस: मेरे जीवन में सबसे बड़ा प्रभाव मेरे परम आदरणीय गुरु श्री गिरजा शंकर दीक्षित जी का रहा। माता-पिता का प्रभाव तो स्वाभाविक था, लेकिन दीक्षित जी ने मुझे और मेरे बड़े भाई को संस्कार दिए, जो हमारी प्रगति का आधार बने। वे अनुशासित और प्रखर विद्वान थे। उनके संस्कारों ने न केवल मेरे बल्कि पूरे परिवार के व्यक्तित्व को गढ़ा। मैं आज भी उन्हें शिद्दत से याद करता हूं। यह दुर्लभ है कि लोग अपने प्रारंभिक गुरुओं को याद रखें, लेकिन दीक्षित जी इसके हकदार हैं।
वीबी: आपकी शिक्षा इंदौर के ऐतिहासिक होलकर स्टेट के अंतर्गत हुई। होलकर स्टेट की प्रगतिशील नीतियों का आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
एसएस: होलकर स्टेट का दृष्टिकोण हमेशा प्रगतिशील रहा। मल्हार आश्रम और अहिल्या आश्रम जैसे संस्थानों ने शिक्षा को बढ़ावा दिया। लड़कियों की शिक्षा मुफ्त थी, और यदि एक ही परिवार के दो बच्चे पढ़ते थे, तो छोटे बच्चे की फीस आधी होती थी। आपको आश्चर्य होगा कि छठी से आठवीं कक्षा तक मेरी सालाना फीस 10 आने थी, और मेरे बड़े भाई की 1 रुपये। मैंने महाराज शिवाजीराव विद्यालय और होलकर कॉलेज से बीएससी की, जो उस समय आगरा यूनिवर्सिटी से संबद्ध था। होलकर स्टेट ने शिक्षा, खेल, और अन्य विधाओं पर जोर दिया, जिसने मेरे व्यक्तित्व को निखारा।
वीबी: आप कुछ समय कोलकाता और मुंबई में भी रहे। वहां के अनुभवों ने आपको कैसे प्रभावित किया?
एसएस: मुंबई में मेरे चाचा और चाची रहते थे, जहां मैं छुट्टियों में जाता था। मेरी चाची, जिन्हें मैं मां कहता था, ने 17 बच्चों को पाला, जिनमें प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार के पुत्र अमित कुमार भी शामिल थे। हम जूहू में उनके पड़ोस में रहते थे। कोलकाता में मैंने जूट टेक्नोलॉजी सीखने की कोशिश की, लेकिन वहां का वातावरण मुझे नहीं भाया। इंदौर लौटकर मैंने अपने पिता और भाई के टेक्सटाइल मिलों के लिए सामग्री आपूर्ति के व्यवसाय में काम शुरू किया। मैं सिस्टम्स का आदमी हूं, इसलिए मैंने व्यवसाय की प्रणालियों को सुदृढ़ किया।
वीबी: बीएम नारायण एंड कंपनी के साथ आपका सफर कैसे शुरू हुआ, और 51 साल की साझेदारी इतनी सहजता से कैसे चली?
एसएस: बीएम नारायण एंड कंपनी की शुरुआत 1942 में डीजे पेठे साहब ने की थी। वे मेरे पिता के मित्र थे। जब उनके पास कोई उत्तराधिकारी नहीं था, तब उन्होंने मेरे पिता से कहा कि मैं उनकी फर्म संभाल लूं। मैंने 1965 में 300 रुपये मासिक वेतन पर नौकरी शुरू की। एक साल तक उन्होंने मुझे परखा, और फिर 50% साझेदारी दे दी। यह साझेदारी 51 साल तक चली। पेठे साहब के देहांत के बाद उनके बेटी के बेटे आनंद दातार मेरे साथ आए। जब उन्हें पुणे जाना पड़ा, तो साझेदारी समाप्त करने में हमें केवल 4 मिनट लगे। यह विश्वास और पारदर्शिता का परिणाम था। आज के समय में इतनी लंबी साझेदारी बिना विवाद के समाप्त करना दुर्लभ है।
वीबी: पेठे साहब और आपके पिता जैसे व्यक्तित्वों ने आपके जीवन को कैसे आकार दिया?
एसएस: पेठे साहब की ईमानदारी और नैतिकता अद्वितीय थी। उनकी फर्म प्रोप्राइटरशिप होने के बावजूद, वे कंपनी की स्टेशनरी का निजी उपयोग नहीं करते थे और व्यक्तिगत पत्र घर से लिखते थे। मेरे पिता भी प्रगतिशील थे। 1938 में उन्होंने मेरी मां को अंग्रेजी सिखाने के लिए पुरुष ट्यूटर नियुक्त किया, जो उस समय सामाजिक विद्रोह था। इन व्यक्तित्वों ने मुझे ईमानदारी, अनुशासन, और समाज के प्रति जिम्मेदारी सिखाई।
वीबी: आपने व्यापारिक जगत में सरकार के साथ तर्कसंगत संवाद के जरिए कई बदलाव कराए। कुछ उदाहरण साझा करें।
एसएस: जब मध्य प्रदेश में वैट लागू करने की बात आई, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी ने व्यापारियों के सुझावों को शामिल करने का निर्देश दिया। मैं उस समिति का हिस्सा था, और हमने तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाया। मैंने हमेशा व्यापारियों और सरकार दोनों के हितों को संतुलित करने की कोशिश की। हमने ऐसी मांगें नहीं कीं जो केवल व्यापारियों के पक्ष में हों। इस बैलेंस्ड अप्रोच के कारण सरकार हमारी बात सुनती थी, और कई नीतिगत बदलाव हुए।
वीबी: आपने लेखन में भी रुचि दिखाई, खासकर नई दुनिया में सत्यवादी गुप्त के नाम से पत्र लिखे। इसके अलावा, आपने यशवंत सागर के गहरीकरण जैसे सामाजिक कार्य किए। इनके बारे में बताएं।
एसएस: लेखन मेरा शौक रहा। नई दुनिया के राहुल बारपुते जी ने मेरी इस प्रतिभा को पहचाना। मैं सत्यवादी गुप्त के नाम से पत्र लिखता था, जो अक्सर सरकार की नीतियों पर तर्कपूर्ण आलोचना होती थी। एक बार मैंने पद्म भूषण हेमंत सिंह पवार, जो कान्हा नेशनल पार्क के डायरेक्टर रहे, पर लेख लिखा, जो संपादकीय पेज पर छपा।
यशवंत सागर का गहरीकरण मेरे लिए सबसे संतोषजनक कार्यों में से एक है। मेरे सहपाठी नंदलाल राठी की प्रेरणा से हमने इसकी क्षमता 3 करोड़ लीटर बढ़ाई। पीएचई के विरोध के बावजूद, प्रोफेसर धवलीकर और नगर निगम के सहयोग से यह संभव हुआ। इससे इंदौर में जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी। हमने कुओं और बावड़ियों के जीर्णोद्धार की भी योजना बनाई, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण उसे छोड़ना पड़ा। फिर भी, किसानों को मुफ्त खाद देने और जागरूकता फैलाने का कार्य संतोषजनक रहा।
वीबी: आपने वाणिज्यिक कर विभाग और व्यापारियों के बीच मध्यस्थता की। किन अधिकारियों के साथ काम करने का अनुभव यादगार रहा?
एसएस: कई अधिकारियों ने मेरा सहयोग किया, लेकिन कुछ नाम विशेष हैं। श्री एसएम पंत, श्री जीएस बघेल, और श्री हरिजन राव का योगदान अविस्मरणीय है। हरिरंजन राव, एक आईएएस अधिकारी, इतने सरल थे कि उन्होंने गाड़ी से उतरकर पीसीओ से मुझे फोन किया ताकि मैं व्यर्थ में इंतजार न करूं। श्री राघवेंद्र सिंह, जो कमिश्नर रहे, उनकी सादगी और सहायता भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उनकी फिटनेस और हास्यप्रियता भी यादगार है। ये अधिकारी आज भी मेरे संपर्क में हैं और प्रेरणा देते हैं।
वीबी: व्यापारियों में यह धारणा है कि टैक्स चोरी से ही प्रगति संभव है। आप इस पर क्या कहेंगे?
एसएस: यह एक बड़ी भ्रांति है। टैक्स चोरी फिसलन भरी राह है। इससे न सुकून मिलता है, न नींद। साफ-सुथरा काम करने वाला व्यापारी ही असली प्रगति करता है। मैं कहता हूं, मेरे पास जितना बड़ा चेक काटने की क्षमता है, वह कई धनवानों के पास नहीं होगी, क्योंकि ईमानदारी से कमाया धन ही स्थायी होता है। व्यापारियों को यह भ्रम छोड़ना चाहिए।
वीबी: जावरा के लोग असाधारण रूप से सुसंस्कृत और सभ्य हैं। मैंने वहां दो साल बिताए, और आज भी वहां के लोग मुझे याद करते हैं। जावरा का लायंस क्लब दुनिया के शीर्ष 10 क्लबों में था, और लायन इंटरनेशनल के चेयरमैन ने वहां नेत्र चिकित्सालय के लिए 40 लाख रुपये दान दिए थे। आपका जावरा से भी गहरा लगाव रहा। वहां के अनुभव साझा करें।
एसएस: बिल्कुल सही आपका आकलन मैं बहुत नहीं रह पाया लेकिन बहुत बार गया और इसमें कोई शंका नहीं है किजावरा का अपनापन और भाईचारा बेमिसाल है।
वीबी: 86 वर्ष की आयु में आपकी ऊर्जा और फिटनेस का राज क्या है?
एसएस: निश्चिंतता और संतोष। मैं आठ घंटे आराम से सोता हूं, भूख लगती है, और लोगों से संपर्क बनाए रखता हूं। यह मुझे युवा और प्रेरित रखता है।
वीबी: आपने समय निकाला, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आप स्वस्थ रहें, और हम आपके अनुभवों से प्रेरणा लेते रहें। दर्शकों से अनुरोध है कि वे कमेंट्स करें और चैनल को सब्सक्राइब करें। नमस्कार!
एसएस: धन्यवाद, वीरेंद्र जी। दर्शकों और आपके परिवार को मेरा नमस्कार। मैं आभारी हूं कि आपने मुझे यह अवसर दिया। नमस्कार!
(यह साक्षात्कार सुशील सुरेखा के जीवन, व्यापार, और समाज सेवा की प्रेरणादायक कहानी को दर्शाता है। उनकी ईमानदारी, संतुलित दृष्टिकोण, और सामाजिक योगदान इंदौर के गौरव को और बढ़ाते हैं।)