दूरदर्शन के इंदौर डायरी के एक प्रेरक एपिसोड में डॉ. देवेंद्र मालवीय ने श्री निर्मल भटनागर से मुलाकात की, जो एक प्रसिद्ध प्रेरक वक्ता, शिक्षक और लेखक हैं। उनकी यात्रा ने अनगिनत लोगों को अपने सपनों को हासिल करने की प्रेरणा दी है। एक जिज्ञासु छात्र से लेकर छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए मार्गदर्शक बनने तक, निर्मल की कहानी मेहनत, नवाचार और शिक्षा के प्रति अटल समर्पण की है।
बचपन में जगी प्रेरणा की चिंगारी
निर्मल की यात्रा 1987 में शुरू हुई, जब वे कक्षा 11 में पहली बार स्कूल पहुंचे। उनकी बहन स्मिता के एक हल्के-फुल्के कमेंट ने, जिसमें उन्होंने उनकी टाइपिंग स्किल पर मजाक उड़ाया था, उनके अंदर कुछ कर दिखाने की आग जला दी। इस घटना ने उन्हें कंप्यूटर सीखने के लिए प्रेरित किया, और जल्द ही वे कक्षा 11 में रहते हुए कक्षा 12 के छात्रों को पढ़ाने लगे। इसके साथ ही उन्होंने कंप्यूटर क्लासेस शुरू कीं, जो उनके उद्यमी व्यक्तित्व की नींव बनी। निर्मल अपने बचपन के छोटे-छोटे प्रयोगों को याद करते हैं, जैसे पुराने अखबारों से थैले बनाकर बेचना या एक छोटी लाइब्रेरी खोलना, जिन्होंने भले ही आर्थिक लाभ न दिया, लेकिन उनके परिवार के समर्थन से उनकी सोच को निखारा।
प्रेरणा की आवाज: रेडियो से अखबार तक
निर्मल का लेखन और प्रसारण की दुनिया में कदम रखना एक अप्रत्याशित लेकिन परिवर्तनकारी कदम था। कोविड-19 महामारी के अनिश्चित समय में, उन्होंने 68 दिनों तक फेसबुक लाइव सत्रों के जरिए प्रेरक सामग्री साझा की। यहीं से उनके रेडियो शो जिंदगी जिंदाबाद की शुरुआत हुई, जो एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भारत का सबसे लंबा चलने वाला रेडियो शो बन गया। एक मित्र के सुझाव पर उन्होंने इस सामग्री को अखबार के कॉलम फिर भी जिंदगी हसीन है में बदला, जो अब तक 1,680 संस्करण पूरे कर चुका है और अपनी निरंतरता और सकारात्मकता से पाठकों को प्रेरित कर रहा है।
शिक्षा के जरिए सपनों को साकार करना
2007 में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब निर्मल के गुरु राजेश अग्रवाल ने उनकी शिक्षक के रूप में प्रतिभा को पहचाना और उन्हें आईटी के सफल करियर से शिक्षा की ओर ले गए। इस प्रेरणा से ड्रीम अचीवर्स और सक्सेस लैब की शुरुआत हुई, जिनका उद्देश्य पारंपरिक शिक्षा और आधुनिक जरूरतों के बीच के अंतर को पाटना था। निर्मल का लक्ष्य था 1 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित करना, ताकि वे छात्रों को उनकी अनूठी प्रतिभा खोजने में मदद करें। उनका मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य उलझन से स्पष्टता की ओर ले जाना है, ताकि बच्चे अपनी सच्ची क्षमता को पहचान सकें।
निर्मल बच्चों में असीम संभावनाओं और विशेष उद्देश्य की बात करते हैं। वे शिक्षकों को सिखाते हैं कि बच्चों के जवाबों को आंकने के बजाय उनकी छिपी प्रतिभा को पहचानें। उनकी वर्कशॉप में वे मानसिक बाधाओं को संबोधित करते हैं, खासकर अभिभावकों की उन अपेक्षाओं को, जो बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर जैसे पारंपरिक करियर की ओर धकेलती हैं, भले ही वह उनकी रुचि न हो। वे शतरंज के विश्व चैंपियनशिप दावेदार गुकेश का उदाहरण देते हैं, जिनके माता-पिता ने उनकी प्रतिभा को निखारा।
आधुनिक चुनौतियों का समाधान
निर्मल बच्चों के मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग जैसे समकालीन मुद्दों पर भी बात करते हैं। वे अभिभावकों को सलाह देते हैं कि बच्चों को नई गतिविधियां देकर उनका ध्यान मोबाइल से हटाएं और जिम्मेदार तकनीकी उपयोग सिखाएं, न कि डिवाइस को पूरी तरह प्रतिबंधित करें। उनका मानना है कि तकनीक आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है, और इसका संतुलित उपयोग बच्चों के विकास के लिए जरूरी है।
छोटे स्कूलों के लिए, निर्मल समान प्रशिक्षण की वकालत करते हैं और कहते हैं कि कोई भी स्कूल छोटा या बड़ा नहीं होता, जो भविष्य को गढ़ रहा है, वही बड़ा है। वे सरकारी स्कूलों में जाकर किताबें बांटते हैं और सीखने को प्रोत्साहित करते हैं। वे शिक्षा क्षेत्र में हो रहे बदलावों की भी बात करते हैं, जहां विश्वविद्यालय अब एआई और प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग जैसे व्यावहारिक और उद्योग-उन्मुख कोर्स शुरू कर रहे हैं।
अभिभावकों के लिए संदेश
निर्मल का अभिभावकों के लिए संदेश सरल लेकिन गहरा है: “अपने बच्चे को खिलने दें।” वे माता-पिता से आग्रह करते हैं कि वे अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर न थोपें और उनके व्यक्तित्व को निखारने वाले अनुभव प्रदान करें। अपनी बेटी का उदाहरण देते हुए, जो गणित में टॉपर थी और डेलोइट में कार्यरत है, वे बताते हैं कि उन्होंने उसकी ताकत को पहचाना और उसे जेईई या नीट जैसी दौड़ में शामिल होने का दबाव नहीं दिया।
उनके पेरेंटिंग के तीन सुनहरे नियम हैं:
- निश्चितता: अगर आपने बच्चे से किसी चीज के लिए “हां” या “न” कहा, तो उसका पालन करें।
- सुनें: बच्चों को समय और ध्यान देकर विश्वास बनाएं।
- स्वीकारें: उनकी बातों को नकारने के बजाय स्वीकार करें।
प्रभाव की विरासत
निर्मल का योगदान शिक्षा तक सीमित नहीं है। 1980 के दशक के अंत में, उन्होंने उज्जैन में राष्ट्रपति के दौरे के लिए हॉटलाइन स्थापित करने में तकनीकी सहायता प्रदान की थी, जो उनकी प्रारंभिक तकनीकी क्षमता का प्रमाण है। आज, उनके लेखन, वर्कशॉप और रेडियो शो के जरिए वे प्रेरणा दे रहे हैं और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स जैसे सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।
दूरदर्शन के इंदौर डायरी के इस एपिसोड ने निर्मल के शब्दों को अमर कर दिया: शिक्षा का मतलब दिमाग भरना नहीं, बल्कि सपनों को प्रज्वलित करना है। एक मेहनती छात्र से परिवर्तनकारी शिक्षक बनने तक की उनकी यात्रा इस बात का प्रमाण है कि जुनून, दृढ़ता और उद्देश्य के साथ कोई भी सार्थक प्रभाव डाल सकता है।