लेखक – प्रणव बजाज
अपने देश में जो समस्याएं हैं, कामोवेश वही अन्य देशों में भी हैं। इनमें तो कुछ ऐसी है, जो गत 70 सालों में घटने की बजाय बढी़ हैं। इन सालों में विकास हुआ है। किंतु गांवों के लोगों का विकास बैलगाडी़ की तरह आगे बढा़ है और बडे़ शहरों का विकास हवाई जहाज की तरह।
हवाई जहाज की तरह बढ़ती विषमता और सांस्कृतिक प्रदूषण ने गांवों के लोगों के जीवन को बेमजा कर दिया है। इससे लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है।
किंतु यह आक्रोश समाधान की तरफ नहीं, हिंसा और नकली समाधान की तरफ बढ़ रहा है। लोग उन लोगों के चंगुल में फंस रहे हैं, जो लोग समस्याओं का समाधान बताने की बजाय मात्र छाती पीट रहे हैं और नेताओं व अधिकारियों को कोस कर असली समस्याओं का नकली समाधान पेश कर रहे हैं।
अब तो मीडिया एकजुट होकर नकली समाधान के प्रति लोगों में विश्वाश भी पैदा कर देता है। पार्टियों के अधिकांश अध्यक्ष, देश व प्रदेश सरकारें और अधिकांश अधिकारी तो विकास के लिए आर्थिक गुलामी को बनाये रखना पहले से ही जरूरी मानते हैं, नकली समाधान पेश करने वाले बुद्धिजीवी भी विकास के लिए आर्थिक गुलामी जरूरी मानते हैं।
यदि इन लोगों का बस आगे भी चलेगा, तो ये लोग 100 में से 80 आदमी को आगे 1000 साल तक गुलाम बनाकर ही रखेंगे और इतनी बढी़ जनसंख्या को अपने काल्पनिक देश के काल्पनिक विकास की बेदी पर बलि चढा़ते रहेंगे।
स्पष्ट है कि समस्याओं के लिये नेताओं व अधिकारियों को कोस-कोस कर नकली समाधान पेश करने वाले खुद भी समाज के लिये एक बडी़ समस्या हैं। भारत ही नहीं लगभग सभी देशों के अधिकांश दकियानूस राष्ट्र्वादी भी इसी तरह के लोग हैं।
भारत में 1950 में जो ‘आजाद राज्य व सरकार’ रूपी मकान बना था, आज वह छोटा पड़ रहा है। घर में परिवार मे सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है। नकली समाधान पेश करने वाले परिवार के नये सद्स्यों को रहने के लिए घर में जगह बनाने की बजाय मकान की दीवारों पर परिवाय के सदस्यों को टाइल्स और खपरैल की तरह चिपका रहे हैं। उनको समझा रहे है कि- “सरकार के इस ढा़चे रूपी घर की इमारत हमारे पुरखों की धरोहर है।
इसकी मरम्मत मत करो, इसको हू-बहू इसी रूप– रंग में बनाकर रखो। इस दुमंज़िला मकान में नीचे प्रदेश सरकार के लोगों को और ऊपरी मन्ज़िल पर केन्द्र सरकार के लोगों को आराम करने दो। परिवार के बढे़ सदस्यों की ये मांग गलत ब स्वार्थी मांग है कि पुरखों के इस दुमंज़िला मकान की मरम्मत करके छत पर तीन मंज़िलें और बना दी जाएं।
जिनको मकान में जगह नहीं मिल रही है, उनको मात्र जगह देने के लिए पुरखों की धरोहर का रूप-रंग, नक्शा व पहचान बदलना अपनी संस्कृति का नाश पीटना है।
मकान के मरम्मत की बात घर की इज्जत, स्वाभिमान और आजादी को गिरवी रखने जैसी बात है। जनसख्या के लिए मकान की पहचान बदलने से अच्छा तो यह है कि मंहगाई बढा़ओ, बेरोज़गारी बढा़ओ, गरीबी बढा़ओ, लोगों की जेब में पैसे की तंगी पैदा करो….
इससे खुद-ब-खुद जनसंख्या कम हो जाएगी। केवल जनसंख्या के लिए मकान की मरम्मत करने की ज़रूरत नहीं है। लोगों में राष्ट्रप्रेम पैदा करने की ज़रूरत है।
लोगों को यह सिखाने की ज़रूरत है कि बरसात में खुद भीगो, मकान को मत भीगने दो। ठण्ड में खुद थ्ररथराओ, मकान को गले लगाकर उसे गर्म रखो। गर्मी की चिलचिलाती धूप सहो, लेकिन मकान को अपने तन की छाया से ठण्डा रखो….”।
हर पार्टी की सरकार ने गत 60 सालों में यही किया। ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि यदि ज़्यादातर लोगों की हालत गुलामों जैसी ही बनी रहनी है, तो उन्हें लोकतंत्र के नाम पर चल रही अमीरों की इस तानाशाही के खिलाफ विद्रोह क्यों नहीं करना चाहिए?
जब बडी़ होते ही हर पार्टी अमीरों के कब्जे में चली जाती है तो पार्टियों को वोट देकर अमीरों की चल रही तानाशाही को लाइसेंस क्यों देना चाहिए?
लोकतंत्र की रोटी खाने वाले और सामंतवाद का गुणगान करने वाले पार्टी अध्यक्षों व उनके समर्थकों का सामाजिक बहिष्कार क्यों नहीं करना चाहिए? संसद में, विधानसभाओं में और नौकरियों में गरीबों व मध्य वर्ग के लिए
आरक्षण की मांग क्यों नहीं करना चाहिए?
जब 100 में से पैसे में कमज़ोर 80 लोग चुनाव कभी जीत ही नहीं सकते, तो इन 80 लोगों को अपनी अलग संसद, अलग सरकार, अलग करेंसी नोट, अलग शासन-प्रशासन ब अलग न्यायालय बनाने की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू करनी चाहिए? वेतन, पेंशन, भत्ता, बस, रेल, हवाई जहाज़… सभी सुविधाएं नेताओं को ही क्यों मिलनी चाहिए, वोटरों को भी क्यों नहीं मिलनी चाहिए?
राजशाही में बच्चों की अमीरी-गरीबी का रिश्ता बाप की अमीरी-गरीबी से होता था। लेकिन असीमित उत्तराधिकार कानून के सहारे यह रिश्ता लोकतंत्र में भी बना क्यों रहना चाहिए?
डंकल समझौते 1994 द्वारा जव जूते को पूरी दुनिया में घूमने की कानूनी आजादी मिल गई, तो इंसान को देश की चारदीवारी के अन्दर आखिर कब तक गुलाम बनाकर रखा जायेगा? इण्टरनेट के युग में आज नई पीढी़ आजादी मांग रही है, उसको दुनिया भर में घूमकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना है।
उन्हें देशों की चारदीवारी से आजाद होना है। किंतु विडम्बना यह है कि आज राजसत्ता घूम फिर के उन्हीं दकियानूक लोगों के हाथ में रहती है और यह देश की मौज़ूदा चुनौतियों से अनभिज्ञ हैं। अब इन अनुभवों के बाद स्पस्ट हो गया है कि राजनीति सुधारने के लिए अब सरकार रूपी गाडी़ का ड्राइवर नहीं, इंजन बदलने की जरूरत है।
बैलगाडी़ को हवाई जहाज़ बनाने की जरूरत है। इसलिए कुछ लोगों को राजनीति सुधारने का काम ‘बडा़ काम’ लग सकता है। ऐसे लोगों से हम निवेदन करना चाहते है कि अगर आप हवाई जहाज़ बनाना और चलाना बहुत बडा़ काम मानते हैं, तो कम से कम जो लोग इसे बनाने ब चलाकर दिखाने
के काम में लगे हैं, उनको शुभकामना के साथ रोज़ एक रुपया ही देते रहिए।
बडा़ काम करने के लिए बनी जगहों पर चुनावों में वोट देकर कम से कम छोटी सोच के लोगों भेजना बन्द करिए। जहाज़ के बन जाने पर इसमें नि:शुल्क यात्रा करने के लिए जो लोग संघर्ष कर रहे हैं, उनके कारवां में तो शामिल होइए… जिस प्रकार ‘सेप्ट्रान’ खाने से हृदय रोग ठीक नहीं हो सकता, उसी प्रकार सरकार को, नेताओं व अधिकारियों को कोसने से देश की, गाँव-गाँव की और घर-घर की पीढी़-दर-पीढी़ चली आ रही समस्याएं हल नहीं हो सकतीं।
कोसने वालों को चाहिए कि ठण्डे मन से एक बार फिर से सोचे कि लोगों के बीच ज़्यादा व्यवहारिक दिखने की कोशिश में असली समस्याओं का नकली समाधान देना क्या उचित है?
राजनीति सुधारो अभियान समस्याओं के लिए राजनीतिज्ञों व अफसरों को कोसने की बजाय राजनीति को सुधारने के उन उपायों पर काम कर रहा है, जिनको लागू करने व कराने वाले लोग अनेक संगठनों के मंच पर संगठित होकर काम कर रहे हैं।
जनता से अपील है कि बडा़ काम करना भले ही सबके लिए संभव न हो, किंतु बडे़ काम का समर्थन करना व बडे़ काम का सपना देखने का कोई पैसा नहीं लगता, इसलिए यह आप सबके लिए संभव है।
आप बडा़ सोचेंगे, तो आज नहीं तो कल, आपके परिवार, आपके रिश्तेदार, आपके देश में बड़प्पन आयेगा। अत: आपसे निवेदन है इस अभियान की बातों को घर-घर, दुकान-दुकान पहुंचाकर देश व दुनिया भर में चल रहे नकली लोकतंत्र को असली लोकतंत्र बनाने में और देश व दुनिया की राजनीति को सुधारने के काम में आप अभियान का हमसफर बनें। अपनी-अपनी पार्टियों से भीष्ममोह त्याग कर विश्व परिवर्तन मिशन के लिए काम कर रहे मनपसन्द संगठन से जुडे़ं।
जिससे हर सज्जन को सत्ता तक पहुंचाया जा सके व हर वोटर को संवृद्धि तक। जिससे मानव, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन कायम किया जा सके। जिससे मतभेदों को विनाश की बजाय सृजन का साधन बनाया जा सके।
कब तक सोए रहोगे अब तो जागो!