चेन्नई के 600 करोड़ के प्लांट में बन सकते हैं 60 करोड़ टीके, सरकार ने बनवाए सिर्फ सेनीटाइजर

sadbhawnapaati
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चेन्नई के पास सालों से तैयार 600 करोड़ के 60 करोड़ टीके क्षमता वाले,सरकारी प्लांट मेंआज तक सिर्फ सैनिटाइजर बनाए गए हैं।
यदि सरकार अपनी ही इस कंपनी में 300 करोड रुपए और लगाए तो ,यहां सालाना करीब 100 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज तैयार किए जा सकते है।
UPA सरकार के समय के समय सन 2012 में देश को टीके में आत्मनिर्भर बनाने के लिए चेन्नई के पास चैंगलपट्टू में इंटीग्रेटेड वैक्सीन कॉन्प्लेक्स(IVC) के लिए 600 करोड़ स्वीकृत हुए थे। केंद्र सरकार की कंपनी एचएलएल बायोटेक लिमिटेड (HBL) का वैक्सीन कंपलेक्स 100 एकड़ में फैला है ।
इस प्लांट में “राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम” के लिए बीसीजी, डायरिया, हेपेटाइटिस, चेचक, जापानी बुखार और रेबीज जैसे कई टीके बनाए जाने थे।
तत्कालीन मनमोहन सरकार ने इसे “राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट” का दर्जा दिया था। यही नहीं सरकार ने अपनी जरूरत के 75% वैक्सीन खरीदी की गारंटी भी दी थी। अतिरिक्त वैक्सीन विदेशों को भी निर्यात होनी थी।
इसे निजी क्षेत्र की फार्मा लॉबी का तब आप कहें या कुछ और, यूपीए सरकार जाने के बाद, एनडीए सरकार ने इस प्रोजेक्ट को हाशिए पर डाल दिया। सालों से तैयार प्लांट में कभी वैक्सीन बनाया ही नहीं गया।
प्लांट कितना आधुनिक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1 मिनट में वैक्सीन के 800 Voil यानी 4 हजार से लेकर 8000 डोज प्रति मिनट तक तक तैयार हो सकते हैं।

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यदि पहली लहर के बाद ही प्लांट को तैयार किया गया होता, जनवरी से भारत बायोटेक के टीके बनाए जाते तो हमें अब तक हर महीने 4-5 करोड़ टीके अतिरिक्त मिल रहे होते।
ऐसा नहीं है कि सरकार की जानकारी में नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन इसी वर्ष जनवरी आखिर में दौरा कर चुके हैं । सरकार ने खुद चलाने की पहल तो की नहीं। हालांकि जनवरी आखिर में ही “जहां है जैसा है” के आधार चलाने के लिए निजी कंपनियों से प्रस्ताव मंगवाए । लेकिन शर्तें ऐसी रखी कि तीन बार समय सीमा बढ़ाने के बावजूद 21 मई तक कोई निजी कंपनी आगे नहीं आई है। चेन्नई सांसद कलानिधि वीरा स्वामी कहते हैं कि सरकार खुद भी चला सकती है ।
सरकारी कंपनियों के पास नेहरू के जमाने से वैक्सीन बनाने का अनुभव है.भारतीय पेटेंट कानून में सरकार को पेटेंट की भी बाध्यता नहीं है। सरकार यदि ऐसा नहीं भी करती तो पहली लहर के बाद सीरम इंडिया या भारत बायोटेक के लिए इस प्लांट को तैयार किया जा सकता था।
इधर करोड़ों वैक्सीन विदेश भेजी, दूसरी तरफ महीनों का कीमती समय गवा दिया।
या तो निजी फार्मा लॉबी के दबाव का असर कहें या फिर यह सोच की कहीं वैक्सीन का क्रेडिट मनमोहन सरकार के बनवाए प्लांट को को ना चला जाए कारण जो भी हो।
यह कितना हास्यास्पद है कि जो सरकारी कंपनी साल में 60 करोड़ टीके बनाने की क्षमता रखती है, वहां मोदी सरकार ने आज तक सिर्फ सैनिटाइजर और अस्पतालों के लिए डिसइनफेक्टेंट ही बनाए।
दैनिक भास्कर मे केंद्र सरकार की इसी लापरवाही की पड़ताल करती सुनील सिंह बघेल की खास खबर।

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