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(भाजपा का नजरिया)  ‘‘अखँड भारत’’ मतलब पूरे देश पर ‘‘एकछत्र राज’’

लेखक- ओमप्रकाश मेहता

देश को अब धीरे-धीरे यह समझ में आने लगा है कि भारतीय जनता पार्टी जो एक जमाने से ‘अखंड भारत’ का नारा लगा रही है, उसका अर्थ और कुुछ नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ केन्द्र के बाद पूरे भारत के राज्यों में भी उसका ‘एकछत्र’ राज कायम होना है।.और अब उसी ‘अखंड भारत’ के निर्माण की दिशा में पार्टी काफी सक्रियता बढ़ा दी है और येन-केन-प्रकारेण मौजूदा गैर भाजपाई सरकारों को बदनाम करने-कराने का अभियान शुरू कर दिया गया है।
इसका ताजा उदाहरण जम्मू-कश्मीर, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की राजनितिक गतिविधियां है। इन राज्यों के अलावा भाजपा की सबसे बड़ी ‘‘आंखों की किरकिरी’’ दिल्ली सरकार है, जिस पर राज करने वाली ‘आप’ पार्टी प्रधानमंत्री जी के गृहराज्य गुजरात के सपने देखने लगी है, इसलिए गुजरात को बचाने के लिए भाजपा वे केन्द्र सरकार जी-जान से जुट गई है।
अब हम यदि गैर भाजपाई शासित राज्यों की चर्चा करें तो सबसे पहले बिहार, जहां कुछ दिनों पहले तक भाजपा सहयोगी दल के रूप में सरकार में थी, किंतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अचानक भाजपा से गठबंधन तोड देने से भाजपा सकते में आ गई है, फिर भाजपा नेतृत्व को यह भी महसूस हुआ कि नीतीश कुमार मोदी जी का विकल्प बनकर 2024 के चुनाव में ताल ठोंककर मैेदान में आ सकते है तो वह और अधिक सतर्क हो गई, अब नीतीश कुमार की हर छोटी-बड़ी राजनीतिक गतिविधि पर भाजपा तीखी नजर बनाए हुए है, खासकर उनके और लालू यादव परिवार के मधुर होते सम्बंध पर। नीतीश भी अगले अठारह महीनों का एक-एक पल का पूरा सदुपयोग कर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में जी-जान से जुट गए है।
यह तो हुुई बिहार की बात। अब यदि हम दिल्ली की आप सरकार के ताजा घटनाक्रमों की चर्चा करें तो वहां तो भाजपा के केन्द्रीय नेतृृत्व ने आपके शीर्ष नेतृत्व के चरित्र हनन से अपने अभियान की शुुरूआत की है, दिल्ली के मुुख्यमंत्री व आप के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल व उनके प्र्रमुुख सहयोगी उपमुुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को कथित शराब नीति कांड में फंसाकर नए-नए गंभीर आरोप लगाना ही शुरू नहीं किया गया बल्कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के निवास पर जो सीबीआई को छापा भी डलवा दिया गया और करीब चौदह घंटों तक उनके आवास में खोजबीन की गई, किंतु बताया जा रहा है कि सीबीआई को शराब कांड के कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं मिले, फिर भी सिसौदिया को आशंका है कि अगले दो-चार दिन में उनकी गिरफ्तारी हो जाएगी उल्लेखनीय है कि इसके पहले आप सरकार के एक और मंत्री सत्येन्द्र जैन की भी गिरफ्तारी हो चुकी है और वे जेल में ही है। अर्थात् जो सरकार मतपत्रों से नहीं हटाई्र जा सके, उसे राजनीतिक हथकंड़ों से हटाने के प्रयास किए जा रहे है।
अब बिहार-दिल्ली के बाद यदि पश्चिम बंगाल की चर्चा करें तो वहां जो ममता सरकार के खिलाफ केन्द्र द्वारा किया जा रहा है, वह किसी से भी छुपा नहीं है इसलिए यह कहा जा रहा है कि जगदीप धनखड़े को जो उप-राष्ट्रपति पद हेतु चुना गया, वह उनके ममता विरोधी कदमों का परिणाम है, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते श्री धनखड़ ने ममता सरकार के खिलाफ कई प्रशासनिक कदम उठाए। अब ममता का संयुक्त प्रतिपक्ष की नैत्री बनकर भावी प्रधानमंत्री बनने का सुनहरा ख्वाब भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है।
इसी कारण अब ममता केेन्द्रीय सरकार व भाजपा के प्रथम निशाने पर है।
अब यदि हम जम्मू-कश्मीर की बात करें, तो उससे यह स्पष्ट होता है कि अपनी राजनीतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए केंद्र की भाजपा सरकार संवैधानिक संगठनों का भी दुरुपयोग करने लगी है, हाल ही में जम्मू-कश्मीर के भावी विधानसभा चुनावों में अपनी फतह के लिए भाजपा नेतृत्व ने चुनाव आयोग के माध्यम से गैर कश्मीरी मतदाताओं को भी जम्मू-कश्मीर में मतदान करने की अनुमति दे दी है, जिनकी संख्या करीब पच्चीस लाख है भाजपा की उम्मीद है कि इन पच्चीस लाख वोटों से उसकी मनोकामना पूरी हो जाएगी और वहां के स्थानीय दलों पर वह फतह प्राप्त कर वहां अपनी सरकार कायम कर लेगी, अब यह तो भविष्य के गर्भ में है कि भाजपा अपने इन गैर संवैधानिक प्रयासों में कहां तक सफलता प्राप्त कर पाती है?
यदि हम अन्य गैर भाजपाशासित राज्यों की बात करें तो राजस्थान की कांग्रेसी सरकार के खिलाफ जहां आए दिन नए-नए हथकंड़े अपनाए जा रहे है, वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार को जमींदोज करने वाले प्रमुख नेता देवेन्द्र फडनवीस को भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव समिति में सदस्यता का ई्रनाम भी दिया गया, ऐसी ही राजनीतिक चाले देश की मौजूदा अन्य गैर भाजपाई राज्य सरकारों के खिलाफ भी चली जा रही है।
भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के इन हथकंड़ों से अब यह तो स्पष्ट होने लगा है कि भाजपा 2024 के चुनावांे को लेकर आशंकित व भयभीत अवश्य है, उसे अब मोदी जी के नेतृत्व में उतना विश्वास नहीं रहा जितना 2014 व 2019 के चुनावों के वक्त था।
प्रतिपक्ष भी भाजपा के इस भय से पूरी तरह अवगत हो गया है और अपने स्तर पर 2024 में पासा पलटने को आतुर है, किंतुु उसके साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वह एकजुट है और उसके हर नेता को प्रधानमंत्री पद का रंगीन ख्वाब सताने लगा है, अभी भी समय है यदि प्रतिपक्षी दल व उसके नेता अपने आपसी मतभेद मिटाकर एकजुट हो जाए और अपना निर्विरोध नेतृत्व खोज लें तो 2024 में उनकी मनोकामना पूरी हो सकती है, …..पर ऐसा हो तब ना….?
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