सावधानी है जरूरी :भारत में सड़क हादसों में हर घंटे में होती है 18 लोगों की मौत

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sadbhawnapaati
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अपराह्न 3 बजे से रात 9 बजे के बीच होती हैं 38 फीसदी दुर्घटनाएं
नई दिल्ली। दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं में 11 फीसदी मौतें भारत में होती हैं। तेज रफ्तार, लापरवाही, नींद और नशे में गाड़ी चलाना सड़क दुर्घटना में मौत के प्रमुख कारण रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट से यह बात साबित होती है। पिछले साल ओवरस्पीडिंग के कारण 87,050 और केयरलेस ड्राइविंग के कारण 42,853 लोगों की जान चली गई। एनसीआरबी रिपोर्ट से और कई चौंकाने वाली बातों का खुलासा होता है। सबसे अधिक 38 फीसदी सड़क हादसे दोपहर तीन से रात नौ बजे के बीच होते हैं।
सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के चीफ साइंटिस्ट वेलमुर्गन सेनाथिपति कहते हैं भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है।
यहां दोपहर में खाने के बाद लोगों को सुस्ती और नींद आती है। हाइवे पर हल्की झपकी भी बड़े हादसे का रूप ले सकती है। शाम को शराब पीकर गाड़ी चलाना भी एक समस्या है।
सेनाथिपति के अनुसार दिन ढलने और पूरी तरह रात होने के बीच हाइवे पर रोशनी कम होती है, यह भी हादसे की एक वजह है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में शाम छह से नौ बजे के बीच 19.9 फीसदी हादसे हुए। वहीं 17.6 फीसदी दुर्घटनाएं दोपहर तीन बजे से शाम छह बजे तक और 15.5% दुर्घटनाएं दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक हुईं।
कुल 4,03,116 हादसों में 59.7% हादसे (2,40,828) तेज रफ्तार और लापरवाही के कारण हुए। इनकी वजह से 87,050 लोगों की जान चली गई और 2,28,274 घायल हुए। खतरनाक तरीके से वाहन चलाने और ओवरटेकिंग के कारण 1,03,629 हादसे हुए, जिनमें 42,853 लोगों की जान गई और 91,893 को चोट आई।
पिछले साल पूरे देश में 4.03 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख लोगों की जान चली गई। यानी रोजाना औसतन 426 लोगों को या हर घंटे 18 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह किसी कैलेंडर वर्ष में अब तक का रिकॉर्ड है। भारत में हर 4 मिनट में सड़क हादसे में एक मौत हो जाती है।
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि प्रति हजार वाहनों पर मृत्यु की दर बढ़ रही है। यह 2019 में 0.52 और 2020 (कोविड वर्ष) में 0.45 थी, लेकिन 2021 में बढ़कर 0.53 हो गई। इससे पहले 2018 में यह दर 0.56 तथा 2017 में 0.59 थी।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच सालों में ड्राइविंग के समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से करीब 40 हजार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। यह संख्या हर साल बढ़ रही है। वर्ष 2016 में 4976, 2017 में 8526, 2018 में 9039 और 2019 में 10522 दुर्घटनाएं मोबाइल के कारण हुईं। साल 2020 अपवाद है जब 6753 दुर्घटनाएं हुई थीं, हालांकि उस साल कोरोना का लॉकडाउन भी था।
विशेषज्ञों के अनुसार मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना हल्के नशे में गाड़ी चलाने से ज्यादा घातक हो सकता है। मोबाइल पर बात करने के दौरान व्यक्ति का रिएक्शन टाइम बढ़ जाता है और वह नियंत्रण खो बैठता है।
राज्य स्तरीय राजमार्गों की तुलना में राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार 2019 में 30.5% सड़क हादसे राष्ट्रीय राजमार्गों पर और 24.3% राज्यीय राजमार्गों पर हुए। 2021 में राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,22,204 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 53,615 लोगों की मौत हो गई।
प्रति 100 किलोमीटर पर 92 दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें 40 लोगों की जान चली जाती है। पिछले वर्षों के आंकड़ों से भी इसी ट्रेंड का पता चलता है। 2017 में कुल 4,64,910 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, इनमें राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,41,466 और राज्यीय राजमार्गों पर 1,16,158 दुर्घटनाएं हुईं।
2018 में कुल 4,67,044 सड़क दुर्घटनाओं में से 1,40,843 राष्ट्रीय राजमार्गों पर और 1,17,570 राज्यीय राजमार्गों पर हुईं। 2019 में कुल 4,49,002 सड़क दुर्घटनाओं में 1,37,191 राष्ट्रीय राजमार्गों पर जबकि 1,08,976 राज्यीय राजमार्गों पर हुईं।
आमतौर पर सड़क हादसों में मौत से ज्यादा लोग घायल होते हैं, लेकिन मिजोरम, पंजाब, झारखंड और उत्तर प्रदेश में घायलों की तुलना में मौतें ज्यादा होती हैं।
मिजोरम में 64 सड़क हादसों में 64 लोगों की मौत हुई और 28 लोग घायल हुए; पंजाब में 6,097 सड़क दुर्घटनाओं में 4,516 की मौत हुई और 3,034 घायल हुए, झारखंड में 4,728 सड़क दुर्घटनाओं में 3,513 की मौत हुई और 3,227 घायल हुए; और उत्तर प्रदेश में, 33,711 सड़क दुर्घटनाओं में 21,792 लोगों की मौत हुई और 19,813 लोग घायल हुए।

 

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