भाजपा में किसका नेतृत्व सफलता की पहचान होगा, यह आकलन जरूरी है
डॉ. देवेन्द्र मालवीय – प्रधान संपादक
क्या इस संभावना से इंकार किया जा सकता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार जाएगी यानी कि नाव डूबेगी. इस सोच के पीछे लंबे समय से सत्ता पर काबिज होने से ना केवल भाजपा को बल्कि कुछ नेताओं को भी यह गुमान है कि अब तो हम ही हम हैं हमारे अलावा दूर तक कोई नहीं है और शिव का राज ही चलता रहेगा और वो प्रदेश के…चौहान बने रहेंगे। लेकिन सत्य शायद इसके विपरीत भी हो सकता है जनता की अदालत का फैसला आना अभी शेष है. फिर भी भाजपा पर यूं भी आरोप लग रहा है कि शिवराज अब संगठन से ऊपर उठ गए हैं।
बीच-बीच में कभी कभार यह हवा भी चलती है कि अब शिवराज को हटाया जा रहा है या वे हट रहे हैं लेकिन चिंतन यह भी है कि जब-जब शिवराज को हटाने की हवा चलती है तब तक कोई न कोई फाइल खुल जाती है अखबारों को मसाला मिल जाता है ऐसे कई अवसर आए परंतु तत्काल ही कोई ना कोई नया स्कैंडल सामने आ जाता है कभी रेत माफिया, कभी भूमाफिया, कभी अपराधियों पर कार्यवाही, कभी शिक्षा माफिया, कभी कुछ नया ही या फिर कोई नए ही स्कैंडल सामने लाए जाते हैं या आ जाते हैं और शिवराज का जाना टल जाता है… इसके पीछे योजनाबद्ध राजनीति भी हो सकती है।
कई बार नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, वी डी शर्मा जैसे नामों की हवा चली तो कहीं न कहीं शिवराज की गहरी राजनीतिक चालो ने पासों को पलट दिया है यह कहावत भी दिखाई दी कि मामा की सबसे है यारी पर सबपे है भारी...।
वर्तमान दौर में हालात यह है कि शिवराज सिंह की नित्य नई घोषणाओं से, नित्य नए बयानों से आम आदमी अब ऊब चुका है ठगा सा महसूस करता है. हर कोई इस बात को देखता है कि वह चुनावी माहौल को बनाने में कुछ अधिक ही उत्साहित नजर आ रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स, आंतरिक सर्वे और अन्य चर्चाओं का आधार माने तो आज भाजपा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में 60 से 70 सीटों से अधिक पर फतेह करने में सक्षम नजर नहीं आ रही है, कर्नाटक की कहानी को भी यहाँ दोहराया जा सकता है।
एक दौर की याद दिलाना इस समय उचित लग रहा है. हम याद करें 2003 का राजनीतिक माहौल दिग्विजय सिंह सरकार के समय में जनता दिग्गी राजा की घोषणा, उनके व्यवहार, उनके राजनीतिक हथकंडो को आम जनता की मूलभूत समस्याओं से दूर हट कर सिर्फ राजनीति की चालों से जनता परेशानी महसूस करने लगी थी. उनके चेहरे से ऊब चुकी थी उनकी शैली पर राजनीति ने नए आयाम को अवसर दिया फिर भाजपा विकल्प के रूप में सामने आई।
तेजतर्रार उमा भारती को भाजपा ने सामने किया. उमा भारती ने दिग्गी सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी कर दी. यहां तक की प्रदेश के बंटाधार के लिए जिम्मेदार दिग्गी राजा को ठहरा कर उन्हें मिस्टर बंटाधार के स्थाई उपाधि और पहचान दिलाई जो आज भी गाहे-बगाहे सुर्खियों में रहती है।
आज की स्थिति में कहे बिगड़ी स्थिति में भाजपा की डूबती नाव नजर आ रही है. शिवराज के चेहरे को अब जनता कम पसंद कर रही है. यू लगता है ऊब चुकी है इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता है कि आम जनता भाजपा से नाराज है लेकिन शिवराज के चेहरे से नाराजगी जाहिर होती है महसूस होती है ऐसे में संभवतः उमा भारती को आगे लाया जाए तो डूबती नाव को किनारा मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह पुरानी राजनीति की खिलाड़ी है. भगवा की समर्थक होने के साथ अटल आडवाणी जैसे कद्दावर नेताओं के समय का अनुभव रखती हैं. फिर पूर्व मुख्यमंत्री हैं, स्पष्ट वक्ता है और ओबीसी का चेहरा होने के साथ साथ मध्य प्रदेश की राजनीति को वह गहराई से समझती है, मतलब यूपी में भगवा मध्यप्रदेश में भगवा का वातावरण बन सकता है हिंदू वोटरों को साधा जा सकता है क्योंकि उमा भारती हिंदुत्व का बड़ा चेहरा भी मानी जाती है।
आज मध्य प्रदेश में वह हिंदुत्व के लिए एकमात्र नेता नजर आ रही है जो भाजपा की राह को आसान कर सकती है सत्ता पर काबिज रखने में… वह सफल हो सकती है. मेरे दृष्टिकोण से सत्ता और संगठन को इस पर विचार करना चाहिए या हो सकता है हो चुका हो मैं हमेशा कहता हूं राजनीति जो करा दे बहुत कम है.