(विचार मंथन) पुतिन के तेवर 

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(लेखक – सिद्धार्थ शंकर)
 
रूस और यूक्रेन के बीच जंग को एक माह से ज्यादा का समय हो गया है। दूसरी तरफ इस संकट का डिप्लोमैटिक समाधान भी तलाशा जा रहा है। इसी के मद्देनजर रूस के अरबपति और चेल्सी फुटबॉल क्लब के मालिक रोमन अब्रामोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति का खत लेकर पुतिन के पास पहुंचे थे। इस खत में जेलेंस्की ने उन शर्तों के बारे में बताया था, जिससे युद्ध रोका जा सकता है। इस पर भड़कते हुए पुतिन ने कहा कि मैं यूक्रेन को बर्बाद कर दूंगा। पुतिन के इस बयान से साफ है कि वे जिस रणनीति को लेकर निकले थे, उससे पीछे हटने वाले नहीं हैं। पुतिन इस बात को जानते हैं कि इस समय अगर उन्होंने कदम वापस लिए तो दुनियाभर में उनका विरोध और तेज हो जाएगा। साथ ही अमेरिका और अन्य देशों को दबाव बनाने का मौका मिल जाएगा। हालांकि, यूरोपीय देश ब्रिटेन की तरफ से रूस को एक ऑफर दिया गया है। ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा कि अगर रूस जंग को खत्म करता है और यूक्रेन से अपनी सेना को वापस बुलाता है तो ब्रिटेन रूस और उसकी कंपनियों पर लगे प्रतिबंध हटा देगा। मगर अभी पुतिन किसी की सुनने वाले नहीं हैं। पिछले दिनों यूक्रेन पर हमले रोकने के लिए रूस ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेश की अनदेखी कर अपनी हठधर्मिता दिखाई थी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेश के बावजूद यूक्रेन के शहरों पर उसकी सेना ताबड़तोड़ हमले कर रही है। रोजाना बेगुनाह नागरिक मारे जा रहे हैं। पूरी दुनिया को ठेंगा दिखाते हुए रूस जिस आक्रामकता से यूक्रेन को रौंदता जा रहा है, उससे साफ है कि उसे अब किसी की भी परवाह नहीं। चीन ने जिस तरह की नीति दिखाई है, जाहिर है वह रूस के समर्थन की ही है। भारत सहित कुछ देश तटस्थ बने हुए हैं और दोनों पक्षों से शांति की अपील कर रहे हैं। खतरा ज्यादा इसलिए भी बढ़ गया है कि परमाणु हमले करने वाली सैन्य कमान को पुतिन पहले ही तैयार रहने को कह चुके हैं। हालांकि यह उतना आसान भी नहीं है। पुतिन इस बात को भली भांति समझते हैं कि ऐसा करना पूरी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध में झोंकने जैसा होगा। यों इस जंग में रूस को पसीना आने लगा है। बड़ी संख्या में रूसी सैनिक मारे गए हैं। अगर रूसी सेना कीव पर कब्जा नहीं कर पाई है तो इससे यूक्रेन की सैन्य ताकत के साथ उसके और नागरिकों के मनोबल का भी पता चलता है। यूक्रेन की सेना भी पूरी ताकत से रूस को जवाब दे रही है। रूस को लग रहा था कि जंग कुछ ही दिनों में खत्म हो जाएगी। पर ऐसा हुआ नहीं। पुतिन इस वक्त युद्धोन्माद में डूबे हैं। ऐसे में रूस के परमाणु हथियार के इस्तेमाल करने की आशंका से कैसे इनकार किया जा सकता है? रूसी मिसाइलों और बमों से यूक्रेन के कई शहर खंडहर हो चुके हैं। जान बचाने के लिए 50 लाख लोग इस देश से पलायन कर चुके हैं। कहने को रूस और यूक्रेन के बीच वार्ताओं के कई दौर भी हो चुके हैं, लेकिन सब बेनतीजा। रूसी राष्ट्रपति एक ही जिद पर तुले हैं कि यूक्रेन किसी भी सूरत में नाटो का सदस्य नहीं बने और स्वीडन, स्विटजरलैंड जैसे देशों की तरह सीमित सेना रखे। यूक्रेन के सामने अस्तित्व का गंभीर सवाल है। यूक्रेन अगर वह रूस की इस शर्त के आगे झुक गया तो उसकी स्थिति एक गुलाम देश जैसी हो जाएगी। इसलिए यूक्रेन आसानी से हार कैसे मान ले! रूस-यूक्रेन की जंग का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर साफ दिखने लगा है। युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था चरमराने को लेकर चिंता इसलिए भी बढ़ गई है कि ज्यादातर देश महामारी की मार से अभी तक उबरे भी नहीं थे कि दूसरा संकट सिर पर आ गया। युद्ध और महामारी जैसी विपत्तियां मानव जीवन को कैसे तबाह कर देती हैं, यह अब छिपा नहीं रह गया है। महामारी की वजह से महंगाई और बेरोजगारी ने किसको नहीं रुलाया! अब फिर वैसे ही हालात बनते दिख रहे हैं। रोजाना नए रिकार्ड बनाता कच्चा तेल सबसे बड़ा संकट पैदा कर रहा है। कच्चा तेल महंगा होते ही सरकारें पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का कदम उठाती हैं और इसका सीधा हर तरह के कारोबार से लेकर आम जीवन पर पड़ता है। भारत दुनिया के कई देशों को दवाइयों से लेकर कपड़े, मशीनें, कलपुर्जे, इलेक्ट्रानिक सामान, चाय, काफी, वाहन आदि का निर्यात करता है। साथ ही दालें, खाने के तेल, उद्योगों के लिए कच्चा माल आयात करता है। वैश्विक कारोबार में हर देश इसी तरह एक दूसरे के सहारे टिका हुआ है। ऐसे में महंगा कच्चा तेल नौवहन की लागत बढ़ाता है और फिर इसका असर निर्यात-आयत पर पड़ता दिखता है। लागत बढ़ने से स्थानीय कारोबारी प्रभावित होते हैं और महंगाई बढ़ती है। रूस को वैश्विक भुगतान व्यवस्था से अलग-थलग कर देने के बाद कारोबारियों को पैसे फंसने का भी डर सता रहा है। जंग के असर से भारत भी अछूता कैसे रह सकता है! सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ही इस संकट को बखूबी समझ रहे हैं।
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