✍️ राजेंद्र सिंह
(इंदौर निवासी व पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता)
इंदौर के समीप स्थापित एक वृहद रासायनिक उद्योग रामा फॉस्फेट लिमिटेड, जो कि सल्फ्यूरिक एसिड और सिंगल सुपर फॉस्फेट जैसे उर्वरक का उत्पादन करता है, वर्षों पूर्व नियमानुसार आबादी से दूर स्थापित किया गया था। जिससे उद्योग का विपरीत प्रभाव आसपास के क्षेत्रों में न हो। किंतु वर्तमान में इस उद्योग के आसपास की कृषि भूमि को निजी बिल्डरों द्वारा कॉलोनी के रूप में विकसित किया जा रहा है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, संबंधित क्षेत्र में आवासीय कॉलोनी निर्माण की अनुमति विभिन्न विभागों से प्राप्त कर ली गई है। यह गंभीर मामला जनस्वास्थ्य और पर्यावरणीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक बन गया है।
जानकारों का कहना है कि सल्फ्यूरिक एसिड, सल्फर डाई ऑक्साइड (SO₂) और अन्य प्रदूषकों का प्रभाव लगभग 1–2 किलोमीटर तक फैल सकता है। ऐसे में इस क्षेत्र में बसने वाली भावी आबादी विशेषकर बच्चे, बुज़ुर्ग और श्वास रोगियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो सकता है।
पर्यावरण मानकों के अनुसार, रेड श्रेणी के वृहद रासायनिक उद्योगों के 1–2 किमी के भीतर आवासीय कॉलोनी स्वीकृति देना पूर्णतः अनुचित और नियम विरुद्ध है। सवाल यह उठता है कि क्या संबंधित नगर नियोजन व पर्यावरणीय विभागों ने उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव क्षेत्र का मूल्यांकन किए बिना स्वीकृति प्रदान की? या फिर यह किसी सुनियोजित मिलीभगत का परिणाम है? नई रहवासी बस्ती आने से क्षेत्र में स्थापित उद्योगों के विस्थापन की मांग भी उठेगी, जो वहां काम करने वाले कर्मचारियों के रोजगार को प्रभावित कर सकती है।
यहाँ “Midas Touch” जैसी सोच की उपस्थिति दिखाई देती है
जहाँ ज़मीन को सिर्फ़ सोने में बदलने की होड़ लगी है,
भले ही उसके पास ज़हर ही क्यों न फैला हो।
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता इस स्थिति को “साँसों पर सौदा” बता रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि कॉलोनी की स्वीकृति प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच हो, साथ ही क्षेत्रीय जनस्वास्थ्य व वायुमंडलीय गुणवत्ता का परीक्षण भी कराया जाए।
यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह अनदेखी भविष्य की एक स्थायी स्वास्थ्य आपदा में बदल सकती है।