- बीस साल से लाभ के पद पर काम कर रहा लैब टेक्नीशियन
- डीएवीवी ने नहीं दी आरटीआई कार्यकर्ता को जानकारी
- जानकारी नहीं मिलने पर अपील में गए कार्यकर्ता की दो माह बाद की सुनवाई
विनय वर्मा.
Indore Davv News। इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में अधिकारियों ने अपने फायदे के लिये लैब टेक्निशियन को एमबीए में प्रभारी के पद पर बैठा दिया जबकि बीस साल पहले विश्वविद्यालय में अनिल पाठक को लैब टेक्निशियन के पद पर नियुक्त किया गया था लेकिन वह अधिकारियों से सांठ गांठ कर लाभ के पद एमबीए में प्रभारी बन बैठा और बीस साल से वहां पर कार्य कर रहा है।
अनिल पाठक की सैंटिंग कितनी तगड़ी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीस साल में कई अधिकारी विश्वविद्यालय में आए और गए लेकिन उक्त कर्मचारी का कोई बाल भी बांका नहीं कर सका, यहां तक कि जब आरटीआई कार्यकर्ता जय आहुजा और ललित पारिख ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो विभाग ने उनको जानकारी देने से इंकार कर दिया।
इस पर दोनों ने फिर अपील की जिस पर विभाग ने लंबे समय तक उनको लटकाए रखा और फिर लगभग दो माह बाद उनसे चर्चा की जिसमें फिर से उनको जानकारी देने से विभाग ने मना किया, जिस पर दोनों ने विश्वविद्यालय की कुलपति ओर रजिस्ट्रार को राज्य सूचना आयोग और सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिखाते हुए कहा कि आप किसी कर्मचारी के विषय में चाही गई जानकारी देने से मना नहीं कर सकते, तब अधिकारियों ने सात दिन में जवाब देने की बात कही और पंद्रह दिन बाद भी उनको कोई जवाब विभाग की तरफ से नहीं मिला है। अब आरटीआई कार्यकर्ता आगे की कार्रवाई के लिये राज्य सूचना आयोग में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
200 से अधिक कॉलेज हैं विश्वविद्यालय के अंडर में –
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अंडर में 200 से अधिक कॉलेज आते हैं जिनकी अनुमति से लेकर सभी कार्य अनिल पाठक देखता है। विश्वविद्यालय में अनिल पाठक की लैब टेक्निशियन के पद पर नियुक्ति हुई थी लेकिन सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि अनिल पाठक ने बड़ी चालाकी से अपनी पोस्टिंग एमबीए के एसडीओ के पद पर करवा ली और वही बीस साल से लैब टेक्निशियन के पद को छोड़ एमबीए में एसडीओ का पद संभाल रहा है। इन बीस सालों में कितने ही अधिकारी विशवविद्यालय में आए और चले गए, कई अधिकारी तो उसके खास रहे हैं लेकिन कोई भी अनिल पाठक का कुछ नहीं कर सका या फिर किसी कारण से करना ही नहीं चाहा। अभी भी जब आरटीआई कार्यकर्ता ने उसके पद और अन्य जानकारी जानना ताही तो विभाग ने उसकी जानकारी देने से इंकार कर दिया ।
आरटीआई कार्यकर्ता को दिखाने पड़े राज्य सूचना आयोग और सुप्रीम कोर्ट के आदेश –
विश्वविद्यालय में कई गड़बड़ियां है लेकिन कोई मानने को भी तैयार नहीं है, यहां तक कि जब समाजसेवी और आरटीआी कार्यकर्ता जय आहूजा और ललित पारिख ने जानकारी नहीं मिलने पर जब वापस कुलपति से अपिल की और जानकारी चाही तो उन्होंने फिर से उनको कर्मचारी की जानकारी नहीं देने की बात कही। इस पर दोनों ने उनको राज्य सूचना आयोग और सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिखाते हुए जिसमें आयोग और कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि “किसी भी कर्मचारी की जानकारी देना अनिवार्य है” का हवाला दिया तब कहीं जाकर अधिकारियों ने उनको सात दिन में जानकारी देने की बात कही लेकिन बीस दिन बीतने के बाद भी उनको कोई जानकारी विभाग ने नहीं दी। अब वे राज्य सूचना आयोग में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं।
वर्सन –
इस विषय पर जब डीएवीवी के रजिस्ट्रार अजय वर्मा से बात की तो उनका कहना था कि विश्वविद्यालय में कर्मचारियों की कमी है जिसके कारण कई पद खाली रहते हैं तब जहां पर किसी की जरुरत होती तो उसे वहां पर नियुक्त कर देते हैं हालांकि यह मेरे समय की बात नहीं और मुझे इस विषय पर अभी कोई जानकारी भी नहीं है अब आप बता रहे हैं तो मैं इसकी जानकारी निकलवाता हूं। सूचना के अधिकार में जानकारी की बात पर भी अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि इसकी जानकारी निकलवा कर बताता हूं। अजय वर्मा, रजिस्ट्रार
इस विषय पर जब कुलपति रेणु जैन से बात करनी चाही तो उन्होंने कहा कि वे अभी बाहर है वहां से आकर ही कुछ बता पाएंगी।
समाजसेवी ललित पारिक ने शिकायत की है कि लैब टेक्नीशियन अनिल पाठक की जानकारी सूचना के अधिकार में मांगने के बाद भी विभाग ने उनको समय सीमा में नहीं दी। बावजूद इसके विभाग ने अनिल पाठक के द्वारा स्वयं की जानकारी नहीं देने की सूचना उनको दी है जबकि सूचना के अधिकार में मांगी गई 6 बिंदुओं पर जानकारी देना कानूनन है। इसके खिलाफ जब उन्होंने प्रथम अधिकारी को जानकारी देने के लिए आवेदन दिया तो उसके बाद भी कई महीनों तक उनकी सुनवाई नहीं हुई। शिकायतकर्ता अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।
उन्होंने आरोप लगाया है कि लैब टेक्नीशियन अनिल पाठक को जानबूझकर एमबीए में प्रभारी बनाकर बैठा रखा है जहां से अधिकारियों को अतिरिक्त लाभ भी होता है। ललित पारीक ने कहा है कि वह इसके खिलाफ राज्य सूचना आयोग में अपील कर आगे की कार्रवाई के लिए आवेदन लगाएंगे। उनका तो यह भी कहना है कि यदि सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं देना सीधा-सीधा कानून का उल्लंघन है और यदि ऐसा ही है तो देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में सूचना के अधिकार पर प्रबंध ही लगा देना चाहिए। - ललित पारीक, प्रदेश अध्यक्ष - अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संघ
अधिकारियों की मिली भगत से पहले भी कई गड़बड़िया हो चुकी है विवि में –
इससे से पहले भी विश्वविद्यालय में इस प्रकार की गई गड़बड़िया उजागर हो चुकी हैं। कुछ साल पहले भी विश्वविद्यालय का एक मामला सामने आया था जिसमें सुगनी देवी कॉलेज के प्रोफेसर विश्वविद्यालय में भी कार्यरत थे और दोनो संस्थानों से लगातार कई सालों तक वेतन भी लेते रहे जबकि वे पढ़ाते तो सुगना देवी क़ॉलेज में थे और विश्वविद्यालय में आते ही नहीं थे। बावजूद उसके लाखों रुपए का वेतन उन्होंने अधिकारियों की मिलीभगत से विश्वविद्यालय से लिया था।
सूचना के अधिकार का नियम
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6 (3) के तहत कर्मचारी की जानकारी देना आवश्यक है। कोई भी संस्थान, विभाग या अधिकारी इससे इंकार या फिर भ्रमित नहीं कर सकती है। किसी भी कर्मचारी की चाही गई जानकारी कानूनन देना जरूरी है इसके लिये एक प्रकरण में लोक सूचना अधिकारी अधिष्ठाता चिकित्सा महाविद्यालय भोपाल को निर्देशित कर 19 अप्रैल 2023 को डॉ ए.के श्रीवास्तव अपीलीय अधिकारी ने एक फैसला देते हुए संबंधित विभाग को आदेश भी दिया है।
आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा चाही गई जानकारी
आरटीआई कार्यकर्ता ने सूचना के अधिकार में उक्त कर्मचारी की नियुक्ति, हर 12 माह बाद घोषित की गई चल अचल संपत्ति की जानकारी, विभाग से मिलने वाली सैलरी, नियुक्ति के बाद जिस पद पर कार्य कर रहे हैं उसकी जानकारी के साथ ही अन्य बिंदु पर जानकारी मांगी गई थी जो विभाग ने उनको नहीं दी। इसी प्रकार से एक आदेश में अपीलार्थी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 9 मार्च 2017 को केसली जिला सागर के एक प्रकरण में लोक सूचना अधिकारी को निर्देशित करते हुए जानकारी देने के साथ ही 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया था।