भावसार समाज द्वारा मां हिंगलाज का प्राकट्य उत्सव मनाया गया

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sadbhawnapaati
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कोविड नियमों का पालन करते हुए श्रद्धालुओं ने की पूजा अर्चना

इंदौर के आदर्श इंदिरा नगर स्थित मां हिंगलाज के मंदिर में भावसार समाज एवं संगठन के पदाधिकारियों द्वारा मां हिंगलाज का भव्य अभिषेक एवं यज्ञ अनुष्ठान किया गया जिसमें श्रद्धालु कोरोना गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए महाआरती में सम्मिलित हुए।।

समाज के अध्यक्ष विपिन भावसार द्वारा बताया गया की भावसार समाज द्वारा हिंगलाज प्राकट्य उत्सव का आयोजन पिछले 46 वर्षों से इंदौर में मनाया जा रहा है | उसके बाद पूरे भारत में इस उत्सव को मनाने की जागृति फैली हालांकि पूरे देश में यह आयोजन पिछले 15 वर्षों से मनाया जा रहा है लेकिन इंदौर भावसार समाज इस आयोजन को पिछले 46 वर्षों से मनाता आ रहा है ।

बता दें कि इस आयोजन में मां हिंगलाज का भव्य अभिषेक हुआ और ध्वजा परिवर्तन का कार्यक्रम संपन्न हुआ इस आयोजन में मां हिंगलाज को छप्पन भोग का प्रसाद अर्पित किया और महाआरती का आयोजन हुआ। मां हिंगलाज मंदिर में यज्ञ किया गया इस यज्ञ में कोरोना गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए इस बार सिर्फ दो जोड़े ही सम्मिलित हुए । भावसार समाज के सभी सदस्यों द्वारा मां हिंगलाज को सोने का रानी हार अर्पित किया गया । इस दिन विशेष रूप से मां हिंगलाज को चूरमे का भोग लगाया जाता है |

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कोरोना के चलते अधिकतर समाज बंधु मंदिर परिसर में उपस्थित नहीं हुए उन्होंने अपने घर से ही माँ का पूजन अर्चन किया ।

आइए जानते हैं मां हिंगलाज की उत्पत्ति की कथा :-
सती के शव के अंग एवं आभूषण जहाँ-जहाँ गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ बन गए। हिंगुला नदी के किनारे भगवती सती का ब्रह्मरन्ध्र गिरकर मूर्ति बन गया। मातेश्वरी की मांग हिंगुलु (कुमकुम) से सुशोभित थी इससे वह स्थान हिंगुलाय नाम से प्रसिद्ध हो गया। हिंगुलाय शक्तिपीठ में विराजमान माता हिंगुला एवं हिंगलाज नामों से विख्यात हैं। जब परशुराम जी ने धरती से समस्त क्षत्रियों का विनाश करने की कसम खाई तब भावसार बंधु भाव सिंह और सारसिंह मां हिंगलाज की शरण में गए और मां हिंगलाज ने उनकी रक्षा परशुराम जी से करी । हिंगलाज का यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है ।

 
हमारे सहयोगी प्रतिक भावसार की रिपोर्ट |

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