यह याचिका अधिवक्ता एमएल शर्मा ने दाखिल की है। उन्होंने कहा कि अब ईडी के निदेशक संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल भी एक अध्यादेश के तहत शक्तियों का सहारा लेकर बढ़ा दिया गया है।
पीठ ने कहा कि हम इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (संशोधन) अध्यादेश और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अध्यादेश असंवैधानिक, मनमाने और संविधान के साथ छेड़छाड़ करने वाले हैं। जनहित याचिका में इन दोनों ही अध्यादेशों को रद्द करने की मांग की गई है।
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है। यह अनुच्छेद संसद के अवकाश के दौरान राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति से संबंधित है।
याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि इन अध्यादेशों को लाने का उद्देश्य एक अन्य जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से बचना है जिसमें ईडी के निदेशक मिश्रा की 2018 में नियुक्ति के आदेश में किए गए बदलाव को चुनौती दी गई थी, जिससे उनके कार्यकाल में विस्तार किया गया था।टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दी है चुनौती इन अध्यादेशों को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ बताते हुए तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
महुआ मोइत्रा ने इस मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि ये अध्यादेश सीबीआई और ईडी की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हमला करते हैं और केंद्र को उन निदेशकों को चुनने का अधिकार देते हैं जो सरकार की प्राथमिकताओं के अनुरूप कार्य करते हैं।
मोइत्री की याचिका में कहा गया है कि ये अध्यादेश केंद्र सरकार को ‘जनहित’ में इन निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाने की शक्ति का उपयोग करके मौजूदा ईडी निदेशक या सीबीआई निदेशक को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
याचिका में कहा गया है कि दोनों अध्यादेश निष्पक्ष जांच और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जैसा कि हमारे देश के संविधान में समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार के तहत निहित है।