सुप्रीम कोर्ट ने कहा – अवैध शादी में जन्मी संतान पूरी तरह है वैध
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवारको कहा कि किसी भी अवैध शादी से जन्मी संतान का उनके माता-पिता की अर्जित और पैतृक प्रॉपर्टी में अधिकार होगा। ऐसे मामलों में बेटियां भी प्रॉपर्टी में बराबर की हकदार होंगी। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अवैध शादी से जन्मे बच्चे वैध होते हैं। माता-पिता की संपत्ति पर उनका उतना ही अधिकार है, जितना की वैध शादी में दंपती के बच्चे का होता है।
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत किसी विवाह को दो आधार पर अमान्य माना जाता है- एक विवाह के दिन से ही और दूसरा जिसे अदालत डिक्री देकर अमान्य घोषित कर दे। हिंदू सक्सेशन लॉ के आधार पर अमान्य शादियों में जन्मी संतान माता-पिता की संपत्ति पर दावा कर सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि उनका यह फैसला केवल हिंदू मिताक्षरा कानून के तहत ज्वाइंट हिंदू फैमिली की संपत्तियों पर ही लागू होगा। अवैध शादी से पैदा हुई एक महिला ने साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 16(3) को चुनौती दी थी। इस एक्ट के तहत अवैध शादी से पैदा हुए बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के हकदार हैं। माता-पिता की पैतृत संपत्ति पर उनका अधिकार नहीं होता।
हिंदू कानून के अनुसार, शून्य या अमान्य विवाह में पुरुष और महिला को पति-पत्नी का दर्जा नहीं मिलता है। हालांकि, शून्यकरणीय विवाह में उन्हें पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त है। शून्य विवाह में, विवाह को रद्द करने के लिए शून्यता की किसी डिक्री की जरूरत नहीं होती है। जबकि शून्यकरणीय विवाह में शून्यता की डिक्री की आवश्यकता होती है। शून्य विवाह एक ऐसा विवाह है जो शुरुआत से ही अमान्य है जैसे कि विवाह अस्तित्व में नहीं आया हो।
कोर्ट का फैसला 2011 की याचिका पर आया है
शीर्ष कोर्ट का फैसला 2011 की उस याचिका पर आया है जो इस जटिल कानूनी मुद्दे से संबंधित थी कि क्या गैर-वैवाहिक बच्चे हिंदू कानूनों के तहत अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं।