हिन्दू मान्यताओं में प्रकृति को अलौकिक दर्जा दिया गया है। हमारे शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं में पीपल के पेड़ को भी काफी महत्वपूर्ण दर्शाया गया है। इसे एक देव वृक्ष का स्थान देकर यह उल्लिखित किया गया है कि पीपल के वृक्ष के भीतर देवताओं का वास होता है। गीता में तो भगवान कृष्ण ने पीपल को स्वयं अपना ही स्वरूप बताया है। वैसे पीपल का पेड़ केवल धार्मिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि ज्योतिषीय, आयुर्वेद और वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका बड़ा महत्व है। यह बरगद और गूलर की प्रजाति का विशाल वृक्ष होता है और इसकी आयु बहुत लंबी होती है।
शास्त्रों में बताया गया है कि पीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति दीर्घायु होता है और उसके वंश का नाश नहीं होता है। पीपल के वृक्ष को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है जिसके पत्ते कभी समाप्त नहीं होते।पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर तप करने से महात्मा बुद्ध को इस सच्चाई का बोध हुआ था। स्कन्दपुराण में पीपल की विशेषता और उसके धार्मिक महत्व का उल्लेख करते हुए यह कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में हरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत देव निवास करते हैं। इस पेड़ को श्रद्धा से प्रणाम करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं। इस वृक्ष की सेवा करने से व्यक्ति का जीवन कष्टों से मुक्त हो जाता है परंतु ध्यान रहे, पीपल के पेड़ को घर से दूर ही लगाना चाहिए। क्योंकि घर पर पीपल की छाया पड़ने से वास्तु दोष उत्पन्न हो सकता है। प्राचीन समय में ऋषि-मुनि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही तप या धार्मिक अनुष्ठान करते थे, इसके पीछे यह माना जाता है कि पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर यज्ञ या अनुष्ठान करने का फल अक्षय होता है। पीपल के वृक्ष से जुड़ी एक आम धारणा है कि इसके भीतर राक्षस और बुरी शक्तियों का वास होता है। यह माना जाता है कि पीपल का यह वृक्ष प्रेत-आत्माओं का निवास स्थान होता है। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है।
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