भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार ने 11 साल पहले हिंदी भाषा में विश्वविद्यालय शुरू करने का निर्णय लिया था। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय को हिंदी में उच्च शिक्षा के कोर्स शुरू करने की जिम्मेदारी दी गई थी। अंग्रेजी भाषा के पाठ्यक्रम को हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम में अनुवाद करके उच्च शिक्षा के छात्र छात्राओं को हिंदी भाषा में बेहतर शिक्षा मिले। सरकार ने पिछले 11 सालों में अरबों रुपए हिंदी भाषा के लिए खर्च कर दिए।
विश्वविद्यालय के लिए सुखी सेवनिया में लगभग 500 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद नया भवन तैयार हो गया है। विश्वविद्यालय द्वारा इतिहास,गणित,भौतिक शास्त्र,रसायन शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, पत्रकारिता, जीव विज्ञान इत्यादि के कई कोर्स संचालित किए जा रहे हैं।
विश्वविद्यालय में विभिन्न कोर्सों के लिए 1447 छात्र छात्राओं को प्रवेश देने की व्यवस्था है। विश्वविद्यालय में केवल 257 छात्र शिक्षारत हैं। 8 विषय ऐसे हैं जिनमें मात्र एक -एक छात्र ने प्रवेश ले रखा है। जो प्रोफेसर और अन्य लोगों की नौकरी को सुरक्षित बनाता है।
पाठ्यक्रम का सही अनुवाद नहीं होना
पिछले 11 वर्षों में जिस तरह से विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली रही है। शुरुआती दौर में हिंदी भाषा में छात्र उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने उत्साहित हुए थे।लेकिन विश्वविद्यालय में अफरा-तफरी का माहौल था। पाठ्यक्रम सही तरीके से हिंदी भाषा में तैयार नहीं होने, पर्याप्त संख्या में प्रोफेसर प्रोफेसर इत्यादि नहीं होने से छात्रों की रुचि खत्म होती गई।
पिछले 11 वर्षों में जिस तरह से विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली रही है। शुरुआती दौर में हिंदी भाषा में छात्र उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने उत्साहित हुए थे।लेकिन विश्वविद्यालय में अफरा-तफरी का माहौल था। पाठ्यक्रम सही तरीके से हिंदी भाषा में तैयार नहीं होने, पर्याप्त संख्या में प्रोफेसर प्रोफेसर इत्यादि नहीं होने से छात्रों की रुचि खत्म होती गई।
हालत यह है कि अरबों रुपए खर्च होने के बाद भी हिंदी भाषा में उच्च शिक्षा देने का जो अभियान शुरू किया गया था। वह लालफीताशाही तथा गैर जिम्मेदारी के कारण निष्फल साबित हो रहा है। किसी की कोई जिम्मेदारी भी नहीं है।ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है, जनता के टैक्स और कर्ज़ से जमा राशि को बड़ी बेरहमी से सरकारी सिस्टम द्वारा खर्च किया जाता है। जिम्मेदार किसी की नहीं होती है। जिसके कारण परिणाम भी नहीं मिलते हैं। जनता के ऊपर टैक्स और कर्ज का बोझ जरूर बढ़ता जा रहा है।